उत्तर प्रदेश की राजनीति इस समय एक नाजुक मोड़ पर खड़ी है। गुजरात लॉबी और योगी आदित्यनाथ के बीच का सीधा संघर्ष जारी है। पिछले एक महीने से योगी आदित्यनाथ को हटाने के कयास लगाए जा रहे हैं। बहुत सारे प्रमाण मौजूद हैं जिससे जाहिर होता है कि उत्तर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन अवश्यम्भावी है। हालांकि इस बीच उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य दिल्ली दरबार में हाजिरी लगा चुके हैं। उन्होंने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की लेकिन नरेंद्र मोदी या अमित शाह द्वारा उन्हें मिलने का समय नहीं दिया गया। इसके बाद अखिलेश यादव ने ट्वीट किया, 'लौट के बुद्धू घर को आए!' इसके बाद अगले ट्वीट में केशव प्रसाद मौर्य को ऑफर दे दिया- 'मानसून ऑफर! सौ लाओ, सरकार बनाओ।'
क्या योगी आदित्यनाथ के लिए खतरा टल गया है? क्या योगी आदित्यनाथ को हटाने की हिम्मत गुजरात लॉबी में नहीं है? बहुत सारे ऐसे सवाल हैं जिन पर विचार करने की जरूरत है। केशव प्रसाद मौर्य की सक्रियता के मायने क्या है? क्या केशव प्रसाद मौर्य इस बार योगी आदित्यनाथ को हटाकर ही दम लेंगे? और सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या केशव प्रसाद मौर्य योगी आदित्यनाथ को हटाने की कूबत रखते हैं? या असली खेल कोई और खेल रहा है, केशव प्रसाद मौर्य केवल मोहरा हैं! बिसात बिछाई जा चुकी है और योगी आदित्यनाथ की विदाई तय है। क्या सही वक्त की तलाश हो रही है?
दरअसल, योगी आदित्यनाथ का हटना उसी दिन तय हो गया था, जब लोकसभा चुनाव के बीचों बीच नरेंद्र मोदी को यह कहना पड़ा था कि योगी आदित्यनाथ उनके मुख्यमंत्री हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने जब जिस मुख्यमंत्री को चाहा, हटा दिया। गुजरात में पहले दो-दो मुख्यमंत्री बदले गए, फिर पूरी कैबिनेट को ही बदल दिया गया। इसी तरह उत्तराखंड में भी दो मुख्यमंत्री बदले गए। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर को हटाकर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बना दिया गया। लेकिन कहीं विरोध की कोई आवाज नहीं सुनाई पड़ी। इतना ही नहीं, मध्य प्रदेश में भारी बहुमत से चुनाव जिताने वाले शिवराज सिंह चौहान भी विद्रोह करने की हिम्मत नहीं जुटा सके। उनकी जगह पर मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना दिया गया। शिवराज सिंह चौहान इतना भर कह पाए कि वे बीजेपी के एक समर्पित कार्यकर्ता हैं। उन्हें जो भी जिम्मेदारी मिलेगी, वे उसका पालन करेंगे।
राजस्थान भारतीय जनता पार्टी की बेहद कद्दावर लीडर वसुंधरा राजे सिंधिया को भी एक झटके में मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर कर दिया गया। दिल्ली से भेजी गई पर्ची में लिखे हुए नाम को उन्हें खुद पढ़ना पड़ा। भजन लाल शर्मा का नाम पढ़कर वह खुद हतप्रभ थीं, कि उनकी जगह पर एक अनजाने से, पहली बार के विधायक को मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है और उसके नाम का एलान खुद उनसे करवाया जा रहा है। तथापि उनमें बगावत करने की हिम्मत नहीं हुई।
ऐसे में यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्या योगी आदित्यनाथ को इसी तरह हटाने की हिम्मत गुजरात लॉबी में नहीं है? नरेंद्र मोदी और अमित शाह का संगठन पर पूरा कब्जा है। पार्टी की कमान उनके हाथों में है। कॉरपोरेट लॉबी उनके पास है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह को चुनौती देने वाला कोई नहीं है। बावजूद इसके योगी आदित्यनाथ को हटाने की हिम्मत अभी गुजरात लॉबी नहीं कर पा रही है। हालांकि नरेंद्र मोदी अगर आज चाहें तो वे योगी आदित्यनाथ को हटा सकते हैं और योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। लेकिन योगी आदित्यनाथ की अपनी यूएसपी है। वे हिंदुत्व का फायर ब्रांड चेहरा हैं।
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योगी आदित्यनाथ के सामने मोदी और शाह को खतरा यह है कि आगे चलकर वे भाजपा के हिंदुत्व के असली दावेदार के रूप में अपने आप को पेश कर सकते हैं।
गौरतलब है कि इस समय आरएसएस दो धड़ों नें बंटा हुआ है। इसी दरम्यान मोहन भागवत ने भी नरेंद्र मोदी के नॉन बायोलॉजिकल वाले बयान पर अप्रत्यक्ष रूप से प्रहार किया है। अब यह बहुत आसानी से समझा जा सकता है कि मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी के बीच दूरियां हैं। आरएसएस का मोहन भागवत वाला धड़ा गुजरात लॉबी का विकल्प चाहता है। असल में यह गुट, नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बीजेपी पर पकड़ को ढीली करना चाहता है। जाहिर तौर पर मोहन भागवत योगी आदित्यनाथ के साथ अप्रत्यक्ष रूप से खड़े हो सकते हैं।
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इसलिए नरेंद्र मोदी और अमित शाह योगी आदित्यनाथ को इतना कमजोर कर देना चाहते हैं, ताकि हटाने के बाद योगी कोई चुनौती ना बन सकें।
योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व का कट्टर चेहरा हैं। वे सोशल इंजीनियरिंग करना नहीं जानते। शायद उनकी फितरत भी ऐसी नहीं है। जाहिर है कि भारत की सामाजिक व्यवस्था में सोशल इंजीनियरिंग या सामाजिक न्याय की राजनीति के बगैर अब सत्ता हासिल करना असंभव है। कोरोना काल में नरेंद्र मोदी ने एक जुमला दिया था- आपदा में अवसर। उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार नरेंद्र मोदी के लिए आपदा में अवसर बन गयी है। यूपी में केवल तैतीस सीटों पर भारतीय जनता पार्टी सिमट गई। फिर भी नरेंद्र मोदी सरकार बनाने में कामयाब रहे। लेकिन यह एनडीए की सरकार है।
उत्तर प्रदेश बीजेपी के राम मंदिर आंदोलन का केंद्र है। एक तरह से हिंदुत्व का सबसे बड़ा गढ़ यूपी है। बीजेपी की हिंदुत्व राजनीति का सबसे ऊर्जस्वित और आक्रामक नारा जय श्रीराम रहा है। लेकिन नरेंद्र मोदी ने 4 जून के बाद जय श्रीराम का नारा लगाना बंद कर दिया। क्या उत्तर प्रदेश में केवल पराजय के कारण नरेंद्र मोदी ने ऐसा किया है? अथवा इसमें भी कोई राजनीतिक खेल छिपा हुआ है।
उत्तर प्रदेश में बीजेपी की हार को विपक्ष हिंदुत्व की पराजय के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। खासतौर पर अयोध्या की हार ने हिंदुत्व पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। दरअसल, नरेंद्र मोदी भी आरएसएस के सामने यूपी की हार को इसी रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं। हालांकि, आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर में, कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद ही, यह लिखा गया था कि अब केवल नरेंद्र मोदी के ब्रांड और हिंदुत्व के सहारे चुनाव नहीं जीते जा सकते। इसलिए अन्य रणनीति पर विचार किया जाना चाहिए।
अलबत्ता, नरेंद्र मोदी ने कारपोरेट मीडिया, आईटी सेल और पार्टी पर मजबूत पकड़ के कारण अपने ब्रांड को बहुत कमजोर नहीं होने दिया। भाजपा के 240 के आंकड़े को नरेंद्र मोदी केवल ब्रांड मोदी की परफॉर्मेंस के रूप में दिखाना चाहते हैं। उनका मकसद यह दिखाना है कि बहुमत नहीं मिलने के पीछे हिंदुत्व की असफलता है। इस तीर से नरेंद्र मोदी सीधे तौर पर योगी आदित्यनाथ का शिकार करना चाहते हैं। मोदी का मकसद यह बताना है कि योगी के हिंदुत्व के सहारे भारतीय जनता पार्टी कभी सत्ता में नहीं पहुंच सकती।
इतना ही नहीं योगी आदित्यनाथ को केवल एक जाति के नेता के तौर पर टैग करने की भी कोशिश चल रही है। विपक्ष का आरोप रहा है कि योगी आदित्यनाथ ठाकुरवादी हैं। गुजरात लॉबी भी विपक्ष के इस आरोप को पुख्ता करना चाहती है। सरकारी नियुक्तियों से लेकर डीएम, एसपी और थानेदारों की तैनातियां; इस आरोप को मजबूत करती हैं। अगड़ी जातियों को छोड़कर अन्य जातियों पर हिंदुत्व का प्रभाव नगण्य है। अनुमान के तौर पर यह कहा जा सकता है कि हिंदुत्व के आधार पर भारतीय जनता पार्टी को 15 से 20 फ़ीसदी वोट मिल सकता है। योगी आदित्यनाथ को ब्राह्मण विरोधी भी स्थापित करने का खेल चल रहा है। इसीलिए केशव प्रसाद मौर्य के साथ बृजेश पाठक भी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी के साथ होने वाली गुप्त मीटिंग में शामिल थे।
4 जून के नतीजों के बाद लम्बे समय तक उत्तर प्रदेश में बीजेपी की हार पर खामोशी बनी रही। लेकिन जब नरेंद्र मोदी एनडीए की सरकार बनाने में कामयाब हो गए तो उसके बाद उत्तर प्रदेश के नेताओं द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से योगी आदित्यनाथ को हार के लिए जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की जाने लगी। रमेश चंद्र मिश्र, मोती सिंह, देवेंद्र प्रताप सिंह, फतेह बहादुर सिंह, बाबूलाल तिवारी जैसे कई नेताओं ने पार्टी कार्यकर्ताओं और संगठन की अवहेलना करने तथा प्रशासन द्वारा प्रताड़ना के आरोप योगी सरकार पर लगाए हैं।
यह आरोप लगभग चस्पां कर दिया गया है कि योगी सरकार के प्रशासनिक अधिकारी पार्टी के कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों और यहां तक कि विधायकों और मंत्रियों की भी नहीं सुनते। योगी आदित्यनाथ पर तो यह भी आरोप लगाया गया कि चुनाव में प्रशासन ने बीजेपी की मदद नहीं की। गोया, बीजेपी चुनाव प्रशासन की मदद से जीतना चाहती थी, जनता के जरिए नहीं। इसी दरमियान पिछड़ी जाति से आने वाले अनेक नेता अचानक योगी आदित्यनाथ पर हमलावर हो गए। अनुप्रिया पटेल ने योगी सरकार पर ओबीसी आरक्षण की अनदेखी करने का आरोप लगाया।
ओमप्रकाश राजभर और संजय निषाद ने तो यहां तक आरोप लगा दिया कि उन्हें चुनाव हराने में योगी सरकार का योगदान है। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में योगी पर हमला बोलते हुए कहा कि संगठन सरकार से बड़ा है। इसके बाद दिल्ली से लौटकर उन्होंने योगी आदित्यनाथ की सरकार पर बड़ा हमला बोलते हुए आरक्षण के साथ खिलवाड़ करने का आरोप जड़ दिया। केशव प्रसाद मौर्य ने मांग की, कि कॉन्ट्रैक्ट और ठेके की नौकरियों में भी आरक्षण का अनुपालन होना चाहिए। दरअसल, इसके जरिए गुजरात लॉबी योगी आदित्यनाथ को पिछड़ा विरोधी साबित करना चाहती है।
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केशव प्रसाद मौर्य हों या अनुप्रिया पटेल, संजय निषाद हों या ओमप्रकाश राजभर ये तमाम मोहरे हैं। इन मोहरों के जरिए वजीर को निशाना बनाया जा रहा है।
जाहिर तौर पर योगी आदित्यनाथ सोशल इंजीनियरिंग के लिए नहीं जाने जाते। पिछड़ों में उनकी कोई खास पहुंच और पहचान भी नहीं है। पहले विपक्षियों द्वारा और अब उनकी ही पार्टी के तमाम नेताओं द्वारा आरक्षण नहीं देने और ओबीसी समाज की अवहेलना करने का आरोप पुख्ता करने की कोशिश हो रही है। यही असली दांव है जिसके जरिए गुजरात लॉबी योगी आदित्यनाथ को राजनीतिक रूप से निपटाना चाहती है। आरोपों का यह दौर अभी और चलने वाला है। योगी आदित्यनाथ को ठाकुरवादी और खास तौर पर पिछड़ा विरोधी साबित करने के बाद उनकी विदाई की तारीख पक्की होगी। इस प्रकार सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी!
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