कोरोना संकट के चलते देश के बड़े शहरों- दिल्ली, मुंबई, पंजाब से शुरू हुआ मज़दूरों, ग़रीबों का पलायन भीड़ की शक्ल में अब नहीं दिख रहा है, लेकिन पैदल गाँवों के रास्ते या कस्बाई सड़कों पर लौटते हज़ारों लोग दिख रहे हैं। परदेस से लौटे मज़दूरों को अब क्वरेंटाइन में रखा जा रहा है जहाँ से ये लोग भाग रहे हैं। कई जगहों से ऐसी शिकायतें मिल रही हैं कि उन्हें भरपेट खाना नहीं मिल रहा है, जबकि सरकार ने पूरी व्यवस्था करने के निर्देश दे रखे हैं।
सुल्तानपुर में दो दिन पहले बाहर से लौटने वाले 26 प्रवासी मज़दूर क्वरेंटाइन छोड़ भाग गए। लखीमपुर में क्वरेंटाइन में रह रहे दलित युवक रोशनलाल ने भूख लगी तो भाग कर गाँव से खाने को बिस्किट खरीदा लेकिन लौटने पर पुलिस ने पीट दिया। पिटाई से आहत नौजवान ने फाँसी लगा ली। बीते चार दिनों से आजमगढ़, सीतापुर, रायबरेली, सुल्तानपुर, हाथरस और खीरी से क्वरेंटाइन किए गए गरीबों व मज़दूरों के भागने की ख़बरें आ रही हैं। क्वरेंटाइन छोड़कर भागे कई लोगों पर आपदा प्रबंधन अधिनियम व आईपीसी की धारा 269, 270 व 188 के तहत मुक़दमा भी दर्ज कराया गया है। कई जगहों पर क्वरेंटाइन किए गए लोगों, गाँव वालों का पुलिस के साथ संघर्ष भी हुआ है। मैनपुरी में तो बाहर से लौटे एक व्यक्ति के बारे में सूचना देने वाली गाँव की महिला का क़त्ल तक कर दिया गया है।
अब भी चोरी-छिपे जारी है पलायन
राज्य की सीमा सील कर देने, बसों का संचालन बंद कर देने और बाहर से लौटने वाले लोगों को क्वरेंटाइन कर देने की कार्रवाई के बाद पलायन कर रही भीड़ काफ़ी हद तक थमी है। हालाँकि अब भी मुख्य सड़कों, गाँवों, कस्बों के रास्ते पर दूर से अपने घर लौटते ग़रीब, मज़दूर नज़र आते हैं। राजधानी लखनऊ में हर रोज़ अपने घर से कुछ पैकेट खाना बना इन पलायन कर ग़रीबों को बाँटने वाली गोमतीनगर की मीनाक्षी सिंह बताती हैं कि ग़रीब अब मुख्य रास्तों को छोड़ अंदर का रास्ता पकड़ रहे हैं। उनका कहना है कि हर रोज़ फैज़ाबाद-गोंडा रोड पर उन्हें दर्जनों मज़दूर बीबी बच्चों समेत मिल जाते हैं। क्वरेंटाइन के बारे में बताने पर ये मज़दूर कहते हैं कि चलो गाँव की सरहद तक तो पहुँच जाएँगे।
उधर कोरोना संकट के चलते पड़ोसी देश नेपाल की सीमाएँ भी सील कर दी गयी हैं। इसके चलते नेपाल में फँसे हज़ारों मज़दूर सीमा पर बसे गाँवों के रास्ते लौट रहे हैं। बलरामपुर नेपाल सीमा पर कोयलाबास के जंगलों, सीरिया नाका व कृष्णानगर के गाँवों से होकर लोग नेपाल से लौट रहे हैं। कई दिनों तक बढ़नी बार्डर पर मज़दूरों की भीड़ भारत में प्रवेश का इंतज़ार करने के बाद लौटी है।
क्वरेंटाइन क्यों रास नहीं आ रहा?
लंबा मुश्किलों भरा सफर तय कर अपने घरों को पहुँचे लोगों को सरकार के आदेश पर क्वरेंटाइन कर गाँव से बाहर रखा गया है। इन क्वरेंटाइन की जगहों पर सुविधाओं के अभाव में लोगों ने भागना शुरू कर दिया है।
सुल्तानपुर के अपने गाँव में फँसे पत्रकार राजेश मिश्रा बताते हैं कि महामारी से बचाव के लिए सभी ग्राम पंचायतों में बाहर से आने वाले मुसाफिरों को क्वैरेंटाइन करके रखा गया है। उनका कहना है कि कुछ ग्राम पंचायतों से ऐसी सूचना मिल रही है कि लॉकडाउन के दौरान बाहर से आने लोग वहाँ न रुककर बिना भय के अपने-अपने घरों में रहना शुरू कर दिए हैं। उनका कहना है कि दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि एक ग्रामपंचायत में लेखपाल, आशा, सफ़ाईकर्मी, कोटेदार, ग्रामपंचायत सचिव, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी सहायिका जैसे सरकार के प्रतिनिधि मात्र प्रतीकात्मक रूप से सम्बन्धित को सूचना देकर अपने कार्यों की इतिश्री कर रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जगहों पर क्वरेंटाइन कर रखे लोगों ने भरपेट खाना न मिलने की शिकायत की है। सामाजिक कार्यकर्त्ता आशीष बताते हैं कि मज़दूरों की खुराक के मुक़ाबले उन्हें आधा पेट भरने लायक पका हुआ भोजन दिया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा है- डीएम निगरानी करें
शनिवार को कोरोना से रोकथाम को लेकर एक बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि बिना भेदभाव के हर ज़रूरतमंद को समय से भोजन मिलना चाहिए। उन्होंने निर्देश दिया कि सभी डीएम, एसपी ख़ुद जाकर क्वरेंटाइन सेंटरों की निगरानी करें। इन सेंटरों के संबंध में किसी प्रकार की कोताही होने पर उन्हें ज़िम्मेदार माना जाएगा। जिन ज़िलों में अब तक कम्यूनिटी किचन शुरू नहीं हुए हैं, मुख्य सचिव वहाँ के डीएम से बात कर भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित कराएँ। इसके साथ ही संबंधित डीएम की जवाबदेही भी तय करें। मुख्यमंत्री ने कहा कि भोजन वितरण के कार्य में गाँवों में प्रधानों के अलावा नगर निकायों में पार्षदों और अन्य कर्मचारियों की भी इसमें मदद लें।
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