“बाग़बां ने आग दी जब आशियाने को मिरे,
जिनपे तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे।”
मशहूर शायर साक़िब लखनवी का ये शेर यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हालत बयां कर रहा है। इस चुनाव में कांग्रेस अपना वजूद बचाने की लड़ाई लड़ रही है। पार्टी का दूसरे नंबर के सबसे बड़े चेहरे के रूप में प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी की साख़ दांव पर लगी है। ऐसे में तमाम नेताओं की ज़िम्मेदारी एकजुट पार्टी का वजूद और अपनी नेता की साख बचाने बचाने की है। ये ज़िम्मेदारी निभाने की बजाय वो ऐसे पार्टी छोड़कर भाग रहे हैं जैसे पतझड़ में पेड़ से पत्ते झड़ते हैं।
प्रियंका गांधी के उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव रहते कांग्रेस छोड़ने वालों की फेहरिस्त में ताज़ा नाम आरपीएन सिंह का जुड़ गया है। डॉ. मनमोहन सिंह की यूपीए-दो सरकार में राज्यमंत्री रह चुके आरपीएन सिंह ने गणतंत्र दिवस के एक दिन पहले पार्टी छोड़ दी। उसी दिन चंद घंटों बाद ही बीजेपी मुख्यालय पर भगवा चोला पहनकर मोदीमय हो गए। आरपीएन पडरौना से चुनाव लड़ते रहे हैं। आरपीएन कांग्रेस में टीम राहुल का हिस्सा थे। राहुल के ख़ास लोगों में उनकी गिनती होती थी। लिहाजा, पार्टी में उनका प्रभाव और सुनवाई दोनों थी। वो पिछले कई साल से झारखण्ड के प्रभारी थे। उन्हीं के प्रभारी रहते झारखंड में झामुमो-कांग्रेस गठबंधन सत्ता में आया। टिकट बंटवारे से लेकर मंत्री बनवाने तक में उनकी पसंद नापसंद को पार्टी ने ख़ासी तरजीह दी।
आरपीएन सिंह पूर्वांचल में पार्टी का बड़ा चेहरा थे। वो पार्टी राज घराने के साथ-साथ पार्टी में पिछड़ों की नुमाइंदगी करने वाला कुर्मी चेहरा थे। उनके महल में कई बार सोनिया और राहुल ठहरे हैं। उनके पार्टी छोड़ने पर कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि कांग्रेस यूपी में जो
लड़ाई लड़ रही है वो बुज़दिलों के बस की नहीं है। इससे पहले प्रियंका गांधी ने एक निजी टीवी चनल के इंटरव्यू में कहा था उन्होंने यूपी की प्रभारी बनने के बाद किसी भी नेता के पार्टी छोड़ने पर उन्हे रोकने की कोशिश नहीं की। वो आगे भी ऐसा नहीं करेंगी।
आरपीएन के पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थामने की चर्चा तो दो साल से चल रही थी। लगता है पार्टी को उनके जाने का इंतेज़ार था। शायद यही वजह है कि उनके जाते ही पार्टी ने उनके दफ्तर पर लगी उनके नाम की तख़्ती हटाने में देर नहीं लगाई।
बीजेपी ने कांग्रेस से आरपीएन को तोड़कर स्वामी प्रसाद मौर्य के जाने की भरपाई कर ली है। लेकिन सपा-भाजपा की नूराकुश्ती में कांग्रेस का हाथ छोड़ने वालों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही । चुनाव से ठीक पहले और चुनावों के ऐलान के बाद प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग वर्गों से आने वाले कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने कांग्रेस का हाथ झटका है। जब चुनावों में मतदान की तारीख़ें नज़दीक आ रही हैं तो कांग्रेस के प्रमुख जाट, मुसलिम, ब्राह्मण और कुर्मी नेता पार्टी का साथ छोड़कर दूसरी पार्टियों में जा चुके है।
पिछले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर जीते विधायकों में से प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के अलावा सभी पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। टिकट न मिलने पर प्रियंका गांधी के ‘लड़की हूं ,लड़ सकती हूं’ अभियान की पोस्टर गर्ल रहीं प्रियंका मौर्य ने बीजेपी का दामन थाम लिया है।
ताज़ा नाम बरेली कैंट से प्रत्याशी सुप्रिया ऐरन का है। उन्होंने सपा का दामन पकड़ा है। इससे पहले रामपुर की स्वार टांडा के प्रत्याशी हैदर अली खां कांग्रेस छोड़ बीजेपी की सहयोगी अपना दल से उम्मीदवार हो गए है। हैदर अली पुरानी खांटी कांग्रेसी बेगम नूरबानो के पोते हैं। उनके पिता नवाब काज़िम अली कांग्रेस के टिकट पर रामपुर से चुनाव लड़ रहे हैं।रामपुर की चमरौआ सीट से प्रत्याशी यूसुफ अली ने भी सपा का दामन थाम लिया है हालांकि वहां टिकट न मिलने के वो फिलहल वो कांग्रेस में वापसी की कोशिश रहे हैं।
पार्टी छोड़कर गए दिग्गज
पिछले साल भर में कांग्रेस के कई दिग्गजों ने पाला बदला है। पहले जितिन प्रसाद और हाल ही में राजेशपति त्रिपाठी और उनके बेटे ललितेशपति त्रिपाठी ने काग्रेस का दामन छोड़ी। ये दोनों पार्टी में ब्राह्मण चेहरा माने जाते थे। जितिन प्रसाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो राजेशपति त्रिपाठी पूर्वांचल में कांग्रेस का ब्राह्मण चेहरा थे। जितिन प्रसाद बीजेपी के कमल पर भरोसा जता चुके हैं। राजेश पति त्रिपाठी व उनके पुत्र ललितेश पति त्रिपाठी तृणमूल के टिकट पर इस पर चुनाव में उतर रहे हैं। क़रीब दो-ढाई महीने पहले अक्तूबर में पार्टी के प्रमुख जाट नेता हरेन्द्र मलिक अपने बेटे पंकज मलिक के साथ कांग्रेस छोड़ सपा में शामिल हो गए थे।
हरेंद्र मलिक काग्रेस से राज्यसभा सदस्य रहे हैं। उनके बेटे पंकज शामली से विधायक रहे हैं। इस बार वो मुज़फ्फर नगर की चरथावल सीट से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
साल 2019 से अब तक पार्टी छोड़ने वालों की लंबी फेहरिस्त है। पूर्व केंद्रीय मंत्री सलीम शेरवानी, अमेठी के संजय सिंह, उन्नाव की पूर्व सांसद अन्नू टंडन, अंबेडकरनगर के पूर्व सांसद राजाराम पाल, मिर्जापुर के बाल कुमार पटेल, सीतापुर से कैसर जहां ने दूसरी
पार्टियों का दामन थामा तो हमीरपुर के राठ से पूर्व विधायक गयादीन अनुरागी भी पार्टी से किनारा कर चुके हैं।
साल 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से यूपी में सियासी सूखा ख़त्म करने में जुटी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के सामने चुनावी रणछोड़ों ने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। पार्टी से ब्राह्मण, मुसलमान, दलित चेहरों के बाद अब कुर्मी चेहरे के भी किया किनारा करने के बाद ये सवाल है कि क्या यूपी में कांग्रेस का हाल पिछले साल पश्चिम बंगाल जैसा होने वाला है। यानि यूपी में कांग्रेस के सामने खाता खोलने का संकट पैदा हो गया है।क्या कांग्रेस इस चुनाव में पूरी तरह दफ़्न हो जाएगी? अगर ऐसा होता है तो इसमें पीढियों से कांग्रेस का हिस्सा रहे नेताओं के ऐन चुनाव से पहले और बीच चुनावें में पार्टी को मंझदार में छोड़ने वाले नेता ज़्यादा ज़िम्मदार होंगे। साक़िब लखनवी का ये शेर कांग्रेस के इन हालात को बाख़ूबी बयां करता हैः
“मुट्ठियों में ख़ाक ले कर दोस्त आए वक़्त-ए-दफ़्न
ज़िंदगी भर की मोहब्बत का सिला देने लगे.”
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