प्रियंका के सुझाव पर बदले नेताओं के कमरे
मंगलवार को कांग्रेस मुख्यालय 24 अकबर रोड पर प्रियंका को राहुल गाँधी के बगल वाला कमरा दिया गया था और ज्योतिरादित्य को उनके सामने वाला। सूत्रों के मुताबिक़, प्रियंका और ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए कांग्रेस दफ़्तर में जगह बनाने के चक्कर में बड़े नेताओं को आपस में कमरा साझा करना पड़ रहा था। इसे लेकर कई दिग्गज नेताओं में बेचैनी थी। हालाँकि उन्होंने इस पर खुलकर एतराज जाहिर नहीं किया था। लेकिन समझा जा रहा था कि बैठने की इस नई व्यवस्था से वो खुश नहीं हैं। इस नाराज़गी को प्रियंका ने भाँप लिया।
मंगलवार देर शाम को राहुल गाँधी के साथ हुई बैठक में प्रियंका ने ही सुझाव दिया था कि ज्योतिरादित्य और उन्हें एक ही कमरे में बैठा दिया जाए। क्योंकि दोनों के पास उत्तर प्रदेश का प्रभार है। लिहाजा, दोनों एक कमरे से काम चला लेंगे।
क़द ऊँचा, कमरे छोटे
एक जमाना था जब कांग्रेस दफ़्तर में बड़े नेता दिन भर बैठते थे। उनके यहाँ कार्यकर्ताओं की भीड़ लगी रहती थी। आज हालत यह हैं कि बड़े नेता कभी-कभार ही दफ़्तर आते हैं। उनके इंतजार में कार्यकर्ता कांग्रेस मुख्यालय के लॉन में चक्कर लगा कर चले जाते हैं।
राहुल गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद तमाम बड़े नेताओं को अहम जिम्मेदारियाँ तो दे दी गई हैं लेकिन दफ़्तर में उनके बैठने की माकूल व्यवस्था नहीं है। लिहाज़ा बड़े नेता छोटी जगह पर बैठने से कतराते हैं और इसीलिए वे दफ़्तर कम आते हैं।
खड़गे, आज़ाद कम आते हैं दफ़्तर
लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और राज्यसभा में विपक्ष के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद दोनों ही पार्टी के महासचिव भी हैं लेकिन दोनों ही पार्टी दफ़्तर में बहुत कम दिखाई देते हैं। खड़गे को जो कमरा मिला है वह काफ़ी छोटा है। आज़ाद का कमरा बड़ा है लेकिन उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस मुख्यालय में वह कभी-कभार ही देखे गए हैं।
वोरा और आज़ाद नहीं थे राजी
बताया जाता है कि वोरा और आजा़द आपस में कमरा साझा करने पर राजी नहीं थे। इसकी एक वजह यह है कि मोतीलाल वोरा अपने दफ़्तर में सुबह से सुबह ही आ जाते हैं और शाम तक बैठते हैं। सूत्रों के मुताबिक़, उन्होंने इस पर एतराज भी जताया था। वहीं, गुलाम नबी आजाद को लग रहा था कि पहले उनसे 80 सीटों वाला उत्तर प्रदेश जैसा बड़ा राज्य छीन कर महज़ 10 सीटों वाला हरियाणा थमा दिया गया है और अब उन्हें अपना कमरा भी साझा करने के लिए कहा जा रहा है। इसे लेकर कांग्रेस दफ़्तर में दिनभर चर्चा गरम रही। बाद में प्रियंका के दख़ल के बाद पुरानी व्यवस्था बहाल की गई। इसके हिसाब से ग़ुलाम नबी आज़ाद और मोतीलाल वोरा को को उनके पुराने कमरों के साथ सम्मान भी लौटा दिया गया।
नेता ज़्यादा, कमरे कम
कांग्रेस मुख्यालय में जगह की किल्लत इसलिए भी हो रही है क्योंकि इस वक़्त संगठन में पदाधिकारियों की संख्या कांग्रेस पार्टी के इतिहास में सबसे ज़्यादा है। पार्टी संगठन में इस वक़्त कुल मिलाकर 99 पदाधिकारी हैं। इनमें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी, पार्टी कोषाध्यक्ष अहमद पटेल के साथ 13 महासचिव हैं। इतने ही नेता स्वतंत्र रूप से राज्यों के प्रभारी हैं। इनके अलावा पार्टी में 64 सचिव और साथ संयुक्त सचिव हैं।
पार्टी के काम पर पड़ता है असर
कांग्रेस में सभी विभागों के पदाधिकारियों की कुल संख्या 200 से ज़्यादा है जबकि कमरे 50 ही हैं। एक कमरे में एक से ज़्यादा नेताओं को बैठाना पार्टी की मज़बूरी भी है। पार्टी नेताओं का कहना है कि एक कमरे में 2 लोगों के बैठने से बड़ी दिक्कत होती है। एक वक़्त में एक ही नेता कमरे में बैठ सकता है। इससे पार्टी के काम पर भी असर पड़ता है।
राहुल ने बदला वर्क कल्चर
राहुल गाँधी चाहते हैं कि नेताओं पर काम का बोझ कम से कम रहे। उन पर काम का जितना कम बोझ होगा, उतना ही ज़्यादा वे काम पर फ़ोकस कर पाएँगे। इससे नतीजे भी अच्छे आएँगे। सोनिया के दौर में पार्टी में क़रीब 8 महासचिव हुआ करते थे। एक महासचिव पर कई राज्यों की ज़िम्मेदारी होती थी। बाद में इनकी तादाद बढ़कर 10-11 तक पहुँच गई थी। अब राहुल ने 13 महासचिव और इतने ही स्वतंत्र प्रभारी बनाकर पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। अब एक नेता को सिर्फ़ एक राज्य की ज़िम्मेदारी दी गई है। पहले जहाँ कांग्रेस में 30-35 सचिव हुआ करते थे, वहीं, अब राहुल ने 64 सचिव बना दिए हैं।
नेताओं का कमरों से है ख़ास लगाव
कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं को अपने कमरों से ख़ास लगाव रहा है। कई नेता बरसों से जिस कमरे में बैठकर अपनी राजनीति चलाते रहे हैं, उस कमरे से उन्हें ऐसा लगाव हो जाता है कि छूटते नहीं बनता। इसकी सबसे अच्छी मिसाल मिसाल ग़ुलाम नबी आज़ाद और उनके पुराने कमरे की है।
आज़ाद ने मुश्किल से खाली किया कमरा
आज जिस कमरे में मोतीलाल वोरा बैठते हैं, उस कमरे में कभी गु़लाम नबी आज़ाद बैठा करते थे। आज़ाद के पास यह कमरा कई साल तक रहा है। साल 2002 में जब उन्हें जम्मू-कश्मीर का अध्यक्ष बनाकर राज्य में भेजा गया तो काफ़ी दिन तक उन्होंने कमरा खाली नहीं किया। उनकी ग़ैर-मौजूदगी में भी उनके नाम की तख़्ती उस कमरे पर लगी रही। इस बीच भी वह कमरा किसी और नेता को नहीं दिया गया। जम्मू-कश्मीर से लौटने के बाद आज़ाद ने फिर उसी कमरे में बैठना शुरू कर दिया था। 2004 में यूपीए सरकार बनने के बाद जब आज़ाद मंत्री बने, तब जाकर वह कमरा खाली हुआ।
पार्टी मुख्यालय में नेताओं के बैठने की जगह की कमी की वजह से उन्हें काम करने में काफ़ी परेशानी हो रही है। पहले एक ही कमरे में 2-2 सचिव बैठते थे। अब कई कमरों में 3 और 4 सचिवों के बैठने का इंतजाम किया गया है।
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