नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में उत्तर प्रदेश में हुए उग्र प्रदर्शनों को रोक पाने में नाकाम रहे पुलिस और प्रशासन अपनी खीज सामाजिक कार्यकर्ताओं, जागरुक नागरिकों, वामपंथी रुझान वाले लोगों और छात्रों के साथ ही अपने इलाक़े की समस्याएं उठाने वाले बुजुर्गों पर निकाल रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘बदला’ लेने वाले बयान के बाद मानो पुलिस को सब कुछ करने की छूट मिल गयी है।
पुलिस के आला अधिकारियों का खुलेआम कहना है कि उन्हें सख्ती करने के निर्देश दिये गए हैं। मुज़फ्फरनगर में एक बुजुर्ग तो लखनऊ में कई उम्रदराज लोगों की पिटाई के वीडियो खूब वायरल हो रहे हैं और पुलिस की ज्यादती की कहानी कह रहे हैं। सरकारी संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने वालों की मकान-दुकान जब्त कर वसूली के नोटिस वॉट्सऐप पर फैला कर सरकार के आला अधिकारी वाहवाही लूटने के भोंडे प्रयासों में जुटे हुए हैं। बनारस, गोरखपुर, लखनऊ, मेरठ सहित कई शहरों में इज्जतदार लोगों की तसवीरें इश्तेहार के तौर पर जारी कर उन्हें गुंडा व बलवाई करार दिया जा रहा है।
बनारस सहित उत्तर प्रदेश में साफ़ आबोहवा के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता रवि शेखर व एकता को गिरफ्तार कर लिया गया है। उनके साथ शहर के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता धनंजय सुग्गू, रामजन्म यादव, दिवाकर, चंदन सागर, राज अभिषेक, संजीव सिंह सहित 70 लोगों को अकेले बनारस में ही नागरिकता क़ानून का विरोध करने के आरोप में जेल में ठूंस दिया गया है।
लखनऊ में मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के पदाधिकारी रहे रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी, रंगकर्मी दीपक कबीर, शिक्षिका, फिल्म अदाकारा व कांग्रेस प्रवक्ता सदफ ज़फर, शिया डिग्री कॉलेज में अंतरर्राष्ट्रीय व्यापार पढ़ाने वाले रॉबिन वर्मा व एक अन्य शिक्षक डॉ. कपिल को बुरी तरह पीटकर जेल में डाल दिया गया है। जाड़ों की रातों में जेल में इन्हें कंबल तक नहीं दिए जा रहे हैं। सरकार की शह पर लखनऊ जेल में छंटे हुए अपराधियों से इन राजनैतिक क़ैदियों की पिटाई तक करवाई गयी है।
फ़ेसबुक पर सरकार के, नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ लिखने वालों और यहां तक कि विभिन्न न्यूज़ साइटों पर प्रकाशित आलोचनात्मक ख़बरें शेयर करने वालों को पुलिस कर्मी फ़ोन कर उठा लेने की धमकी दे रहे हैं। राजधानी में कई लोगों को बाक़ायदा फ़ोन कर फ़ेसबुक से दूर रहने को कहा गया है।
दंगों के मास्टरमाइंड के नाम पर पुलिस राजनैतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी कर रही है। राजधानी में पुलिस से लेकर सरकार के आला अधिकारी रिहाई मंच, पॉपुलर फ्रंट जैसे कुछ ग़ैर-प्रतिबंधित संगठनों के पदाधिकारियों को गिरफ्तार कर अपनी पीठ ठोक रहे हैं और साज़िश का पर्दाफाश करने का दावा कर रहे हैं।
दंगों के आरोप में गिरफ्तार 750 से ज़्यादा लोगों में अधिकतर किसी न किसी राजनैतिक व सामाजिक संगठन से जुड़े हैं, जो महज शांतिपूर्ण तरीक़े से विरोध-प्रदर्शन करने गए थे। बड़ी तादाद में ऐसे लोग भी हैं जो 19 दिसंबर, जिस दिन ज्यादातर जगहों पर बवाल हुआ, अपने घरों से ही नहीं निकले और सोशल मीडिया पर ही विरोध जताते रहे।
रिहाई मंच के मो. शुएब और इंडियन पीपुल्स फ़्रंट के दारापुरी को पुलिस ने ख़ुद बवाल होने के एक दिन पहले नजरबंद किया था और इसकी सार्वजनिक सूचना भी दी थी। अब इन दोनों को उपद्रवियों की भीड़ को भड़काने के आरोप में जेल में डाल दिया गया है।
साथियों की रिहाई के लिए मुहिम शुरू
रंगकर्मी दीपक कबीर की पत्नी व वामपंथी कार्यकर्ता वीना राना ने अपने साथियों की रिहाई के सोशल मीडिया पर मुहिम शुरू की है। बड़ी तादाद में लोग इनका साथ देने के लिए आगे आ रहे हैं। सदफ ज़फर के लिए प्रियंका गाँधी वाड्रा, पूरी कांग्रेस पार्टी से लेकर फ़िल्मकार मीरा नायर व कई अभिनेताओं ने एकजुटता दिखाई है। सदफ ज़फर की पिटाई ने पूरे मामले में राष्ट्रीय मीडिया से लेकर अंतरर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों तक का ध्यान खींचा है।
बनारस में बंद अपने साथियों की रिहाई के लिए देश भर में फैले बीएचयू के पूर्व छात्र लामबंद हो चुके हैं। बीएचयू के पूर्व अध्यक्ष चंचल सिंह ने भी इन गिरफ्तारियों की तुलना आपातकाल से करते हुए सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग की है।
शिगूफा ही है वसूली नोटिस!
सरकारी संपत्ति को हुए नुक़सान को उपद्रवियों से वसूलने संबंधी बयान व कई जगहों पर नोटिस जारी करने जैसे मामलों को क़ानूनविद शिगूफे से ज्यादा नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि सरकार का यह दावा महज प्रपंच है जिसकी क़ानूनी वैधता नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता राजेश तिवारी का कहना है कि सरकार को पहले साबित करना होगा कि अमुक व्यक्ति ने ही सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाई है और कितना नुक़सान हुआ है, इसका आकलन करना होगा।
कुल नुक़सान में संबंधित व्यक्ति की हिस्सेदारी साबित करनी होगी। अदालती प्रक्रिया के तहत रिकवरी नोटिस जारी करवाना होगा और उस व्यक्ति के अदायगी से मुकरने के बाद ही आरोपी की संपत्ति जब्त या अटैच की जा सकेगी। इस सारी प्रक्रिया में लंबा समय लगेगा और यह इतना आसान नहीं होगा।
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