उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर कई दिनों तक जारी रही हिंसा और अब तक सुलग रहे असंतोष का मुख्य जिम्मेदार योगी सरकार ने इसलामिक संगठन पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया (पीएफ़आई) को माना है। हालांकि सरकार के निशाने पर अकेले पीएफ़आई नहीं बल्कि वामपंथी रुझान के लोग, सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से लेकर छात्र तक हैं। यूपी के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ओपी सिंह के द्वारा पीएफ़आई की संदिग्ध गतिविधियों को लेकर भेजे गए पत्र को प्रदेश के गृह विभाग ने केंद्र सरकार को भेज दिया है और इस संगठन पर बैन लगाने को कहा है।
प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध को लेकर बीते 19 दिसंबर को भड़की हिंसा के सिलसिले में पीएफ़आई के प्रदेश संयोजक, कोषाध्यक्ष सहित दर्जनों कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था। बीते कई दिनों से प्रदेश के लगभर हर जिले में पीएफ़आई से जुड़े लोगों की धरपकड़ जारी है। बताया जा रहा है कि इस संगठन से जुड़े होने के आरोप में सैकड़ों लोगों को जेल भेज दिया गया है।
सरकार को पहले से था शक
मंगलवार को कैबिनेट की बैठक के बाद उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि पीएफ़आई पर बैन लगाया जा रहा है। मौर्य ने कहा कि प्रतिबंधित संगठन सिमी किसी भी रूप में प्रकट होगा तो उसे कुचल दिया जायेगा। उन्होंने कहा कि योगी सरकार में देशद्रोही आचरण बर्दाश्त नहीं होगा और ऐसे संगठनों पर प्रतिबंध लगेगा, इस बारे में प्रस्ताव लाने की तैयारी चल रही है।
वहीं, साल के आख़िरी दिन आयोजित विधानसभा के विशेष सत्र में भाग लेने से पहले दूसरे उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा कि प्रदर्शन में कुछ आपराधिक तत्व शामिल थे। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों का संबंध पीएफ़आई से था और इन्हें गिरफ्तार किया गया है। शर्मा ने कहा कि मामले की जांच की जा रही है और गृह मंत्रालय कार्रवाई करेगा।
‘पश्चिम बंगाल से लाए गए लोग’
हिंसक प्रदर्शनों के तुरंत बाद सरकार का पक्ष रखने सामने आए उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने जहां पीएफ़आई का नाम लिया था, वहीं उन्होंने गिरफ्तार किए गए कुछ लोगों के बंगाल के मालदा से होने की जानकारी देते हुए उनके संबंध भी इस संगठन से जुड़े होने की आशंका जतायी थी। उनका कहना था कि दंगा भड़काने के लिए कुछ संगठनों ने बाहर से लोग बुलाए थे और साज़िश गहरी थी। हालांकि प्रदर्शन से जुड़े लोगों का कहना है कि बाहर से न तो किसी को बुलाया गया था, न ही ऐसे कोई तथ्य प्रकाश में आए हैं।
दो साल से सक्रिय है पीएफ़आई
यूपी में पीएफ़आई का संगठन महज दो साल पहले अस्तित्व में आया है। संगठन ने अब तक किसी चुनाव में खुल कर हिस्सा नहीं लिया है। संगठन के संयोजक नदीम अक्सर मानवाधिकार के मुद्दों पर धरना-प्रदर्शन करते नज़र आते रहे हैं। लखनऊ में जहां संगठन सांकेतिक रूप में ही हाजिरी रखता है, वहीं पड़ोस के बाराबंकी, बहराइच, गोंडा, बलरामपुर में बक़ायदा इसके दफ्तर काम कर रहे हैं। पश्चिम के कई जिलों में इसका विस्तार हाल के कुछ दिनों में हुआ है।
प्रदेश सरकार का कहना है कि 19 दिसंबर को राजधानी में हुए हिंसक प्रदर्शनों में लोगों को जमा करने में पीएफ़आई ने मुख्य भूमिका निभाई और एक अन्य संगठन रिहाई मंच ने इसका साथ दिया है।
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