डॉक्टर कफ़ील ख़ान ‘हीरो’ थे और आख़िर में भी ‘हीरो’ ही साबित हुए। सरकार ने उन्हें विलेन बनाया था और अब सरकार की ही रिपोर्ट में बेदाग़ बताए गए। गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 2017 में ऑक्सीजन की कमी से जब बच्चे मर रहे थे तब कफ़ील एक हीरो के रूप में बच्चों की जान बचाने में जुटे थे। 60 से ज़्यादा बच्चों की मौत हुई तो डॉक्टर कफ़ील ख़ान पर कई आरोप लगाए गए। लापरवाही बरतने, भ्रष्टाचार करने सहित कई आरोपों में उन्हें पहले निलंबित कर दिया गया था और बाद में गिरफ़्तार कर उन्हें जेल भेज दिया गया था। लेकिन अब इसी सरकार को उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिले, बल्कि रिकॉर्ड तो ये मिले कि वह बच्चों की जान बचाने में ‘जी-जान’ से जुटे थे। ऐसे में बिना किसी सबूत के कफ़ील पर ये आरोप क्यों लगाए गए थे? एक सवाल यह भी है कि इन बच्चों की मौतों का विलेन कौन है?
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित समिति ने 15 पन्नों की रिपोर्ट दी है। डॉ. कफ़ील पर लगे आरोपों की जाँच के लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने प्रमुख सचिव भूतत्व एवं खनन की अध्यक्षता में एक जाँच समिति गठित की थी। इस समिति की रिपोर्ट की एक प्रति गुरुवार को कफ़ील ख़ान को भी सौंपी गई है। इस रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र है कि डॉ. ख़ान किसी भी आरोप में दोषी नहीं हैं। रिपोर्ट में लिखा है-
रिपोर्ट के निष्कर्ष कहते हैं कि डॉ. खान चिकित्सा लापरवाही के लिए दोषी नहीं थे
वह अस्पताल में ऑक्सीजन की आपूर्ति की निविदा प्रक्रिया में शामिल होने या किसी भी संबंधित भ्रष्टाचार में शामिल होने के लिए दोषी नहीं थे।
रिपोर्ट यह भी नोट करती है कि डॉ. खान बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इंसेफ़ेलाइटिस वार्ड के नोडल अधिकारी नहीं थे।
डॉक्टर कफ़ील अगस्त 2016 तक निजी प्रैक्टिस में शामिल थे, लेकिन इसके बाद वह ऐसा नहीं करते थे।
डॉ. खान ने अपने सीनियर्स को ऑक्सीजन की कमी के बारे में सूचित किया था, और जाँच अधिकारी को कॉल विवरण भी दिया था।
डॉ. खान ने जाँच अधिकारी को बताया कि उन्होंने घटना की रात अपनी निजी क्षमता से अस्पताल को सात ऑक्सीजन सिलेंडर दिए।
जिस योगी सरकार की इस रिपोर्ट में उन्हें दोषमुक्त क़रार दिया गया है उसी सरकार के दौरान डॉ. कफ़ील ख़ान पर ये सारे आरोप लगाए गए थे। डॉ. कफ़ील की बच्चों का इलाज करते हुए तसवीरें स्थानीय अख़बारों में प्रकाशित होने और उन्हें बाहर से ऑक्सीजन की व्यवस्था करने संबंधी ख़बरें आने पर सस्पेंड करते हुए उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा लिखा दिया गया था। इतना ही नहीं, इस मामले और अन्य कई मुक़दमों में डॉ. कफ़ील को क़रीब नौ महीने जेल में रखा गया था। इसके बाद वे ज़मानत पर थे। हालाँकि, अभी तक वह सस्पेंड चल रहे हैं। बीते ढाई साल में डॉ. कफ़ील पर जानलेवा हमले से लेकर उन्हें संपत्ति विवाद में भी उलझाया गया। हालाँकि इस दौरान वह गाँव-गाँव जाकर लोगों का मुफ़्त में इलाज भी करते रहे। बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में इन्सेफ़लाइटिस के मामले में भी वह इलाज करने पहुँचे थे। लेकिन इतनी परेशानियों के बाद डॉ. कफ़ील को अब राहत मिली है। लेकिन अब भी सवाल वही है कि फिर इस घटना के लिए कौन ज़िम्मेदार है?
मामला सीधे-सीधे ऑक्सीजन की सप्लाई से जुड़ा है इसलिए ज़िम्मेदार भी इससे जुड़े लोग ही होंगे। जब यह मामला चर्चा में आया था तभी यह साफ़ हो गया था कि बाहर से मँगाई जाने वाली ऑक्सीजन के लिए भुगतान कई महीने से बकाया होने के कारण इसकी सप्लाई बंद कर दी गई थी।
ऑक्सीजन सप्लाई क्यों रोकी?
अस्पताल में मई 2017 क़रीब 12 लाख 80 हज़ार और जून में 18 लाख़ 59 हज़ार रुपये का बिल बना था। पहले से भी बकाया था। आॉक्सीज़न के लिए जुलाई 2017 तक कुल मिलाकर क़रीब 63 लाख 65 हज़ार रुपये का बकाया हो गया था।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज को ऑक्सीजन की यह सप्लाई आईनॉक्स नाम की एक निजी कंपनी कर रही थी। राजस्थान में आईनॉक्स के केंद्र से क़रीब 800 किलोमीटर दूर गोरखपुर में ऑक्सीजन भेजी जा रही थी। इसमें एक मध्यस्थ कंपनी यानी डीलर के तौर पर पुष्पा सेल्स नाम की कंपनी भी जुड़ी थी। पुष्पा सेल्स ही आईनॉक्स और बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बीच डीलिंग का काम करती थी। इनके बीच एक कॉन्ट्रैक्ट हुआ था।
क्या थीं कंपनी की शर्तें?
पुष्पा सेल्स की भूमिका सिर्फ़ इतनी थी कि वह इसे इंस्टॉल करे, उपकरणों को व्यवस्थित करे, भुगतान के लिए अस्पताल का बिल बनाए, इसे इकट्ठा करे और आईनॉक्स को कुछ अग्रिम भुगतान करे। जब मामले की सुनवाई चल रही थी तब हाई कोर्ट ने भी यह कहा था कि पुष्पा सेल्स ऑक्सीजन सप्लाई करने के लिए अधिकृत नहीं थी।
मीडिया रिपोर्टों में तब कहा गया था कि अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई करने के लिए कॉन्ट्रैक्ट की शर्तें सप्लाई करने वालों के पक्ष में थीं। अन्य शर्तों के अलावा एक शर्त यह भी थी कि यदि आईनॉक्स को भुगतान करने में पुष्पा सेल्स विफल रहती है तो शर्तों के तहत ही सप्लाई रोकी जा सकती है, भुगतान और अग्रिम भुगतान की शर्तों को बदला जा सकता है और यहाँ तक कि उपकरण भी हटाए जा सकते हैं।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में यही हुआ भी। कई महीनों से भुगतान नहीं होने के कारण दोनों कंपनियों ने ऑक्सीजन सप्लाई को रोक दिया। फिर जो मेडिकल कॉलेज में हुआ वह सबके सामने है।
गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन सप्लाई बंद किए जाने से पहले महीनों के अटके भुगतान के लिए कई बार मुख्यमंत्री कार्यालय को पत्र भेजा गया कि संकट गहराने वाला है। घटना से चार महीने पहले भी 6 अप्रैल 2017 को पुष्पा सेल्स ने मुख्यमंत्री कार्यालय और स्वास्थ्य मंत्री को पत्र भेजा था। उस पत्र में साफ़-साफ़ लिखा है, 'हम आग्रह करते हैं कि बिना किसी देरी के पिछले बकाये का भुगतान कर दिया जाए ताकि हम आईनॉक्स कंपनी को समय से भुगतान कर सकें। भुगतान की देरी होने पर हम सप्लाई नहीं कर पाएँगे और इसके लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज ज़िम्मेदार होगा...।'
घटना से दो दिन पहले भी लिखा था पत्र
घटना से दो दिन पहले भी चेतावनी देते हुए पुष्पा सेल्स ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज को 8 अगस्त 2017 को पत्र लिखा था। इसमें कहा गया था, 'हम यह बताना चाहते हैं कि गैस प्लांट में सिर्फ़ 2-3 दिनों के लिए ही स्टॉक उपलब्ध है और हम आपसे आग्रह करते हैं कि जंबो सिलेंडर का इस्तेमाल करने के लिए व्यवस्था करें। ...इसके लिए हम ज़िम्मेदार नहीं होंगे।'
मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि इसके अलावा भी कई पत्र मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल, मेडिकल सुप्रीन्टेंडेंट, पीडिएट्रिक्स डिपार्टमेंट के प्रमुख व डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, यूपी सरकार के मुख्य सचिव और मेडिकल एजुकेशन के महानिदेशक को भी भेजे गए थे।
क़ानूनी नोटिस का भी असर नहीं
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कई बार पत्र भेजने के बाद भी जब कहीं से कोई जवाब नहीं आया तो पुष्पा सेल्स ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल राजीव मिश्रा को 30 जुलाई 2017 को क़ानूनी नोटिस भेजा। इसकी एक कॉपी मेडिकल एजुकेशन के महानिदेशक को भी भेजी गई। इसमें 15 दिन में भुगतान करने को कहा गया। भुगतान नहीं हुआ और इस बीच 11 अगस्त को ऑक्सीजन का स्टॉक पूरी तरह ख़त्म हो गया। फिर ऑक्सीजन नहीं मिलने से एक के बाद एक बच्चों की मौत होने लगी। 60 से ज़्यादा बच्चे मर गए, लेकिन यह साबित नहीं हो पाया कि इसका विलेन कौन है।
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