नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन के दौरान हिंसा को लेकर मुज़फ़्फ़रनगर में गिरफ़्तार किए गए लोगों में से चार को दस दिन तक हिरासत में रखने के बाद छोड़ दिया गया है। अब पुलिस का कहना है कि वह उन चारों के ख़िलाफ़ हिंसा में शामिल होने के सबूत नहीं जुटा पाई। अब सवाल है कि जब उनके ख़िलाफ़ सबूत नहीं थे तो किस आधार पर गिरफ़्तार कर लिया गया था? क्या यह किसी भी तरह से सही है कि पहले किसी भी व्यक्ति को घर से गिरफ़्तार कर लिया जाए और फिर सबूत ढूँढा जाए? क्या यह इस न्याय के सिद्धांत के ख़िलाफ़ नहीं है कि किसी निर्दोष को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए? यदि उन चारों के ख़िलाफ़ सबूत नहीं थे तो फिर दस दिन तक उनको हिरासत में रखना क्या उनके साथ अन्याय नहीं है?