बीजेपी ने रविवार को उत्तर प्रदेश में पसमांदा यानी पिछड़े मुसलमानों का सम्मेलन आयोजित किया। पार्टी का कहना है कि देश में यह अपने तरह का पहला कार्यक्रम है। याद दिलाना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद में हुई बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से कहा था कि वे सभी समुदायों के पिछड़े वर्गों तक पहुंचें।
सवाल यह है कि क्या बीजेपी पसमांदा मुसलमानों के बीच सम्मेलन करके इस वर्ग तक अपनी पैठ बढ़ा पाएगी।
इस सम्मेलन को पसमांदा बुद्धिजीवी सम्मेलन का नाम दिया गया। सम्मेलन में उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक, योगी सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री दानिश आजाद अंसारी, बीजेपी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के महासचिव साबिर अली, जम्मू और कश्मीर के मनोनीत राज्यसभा सांसद गुलाम अली खटाना शामिल रहे। सम्मेलन में प्रदेशभर से मुसलिम पसमांदा समुदाय से जुड़े हुए बुद्धिजीवी शामिल हुए।
उत्तर प्रदेश में बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि बैठक के जरिए पार्टी पसमांदा समाज के बुद्धिजीवियों को यह बताएगी कि इस समुदाय के 4.5 करोड़ लोगों को सरकारी योजनाओं का फायदा किस तरह मिला है और ऐसे सम्मेलनों के जरिए हम पसमांदा मुसलमानों के साथ बातचीत को आगे बढ़ाएंगे।
सरकारी योजनाओं का फायदा
कुंवर बासित अली ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उत्तर प्रदेश में 3 करोड़ से ज्यादा पसमांदा मुसलिम समुदाय के लोगों को फ्री राशन मिला, सवा लाख से ज्यादा लोगों को आयुष्मान हेल्थ कार्ड का फायदा मिला, पीएम किसान सम्मान निधि के जरिए 75 लाख लोगों को फायदा हुआ और 40 लाख लोगों को बिजली के मुफ्त कनेक्शन मिले। इसके साथ ही 20 लाख लोगों को घर भी मिले हैं।
कुंवर बासित अली ने कहा कि अल्पसंख्यक मोर्चा इस बात पर मंथन करेगा कि उत्तर प्रदेश में जल्द होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव से पहले किस तरह पसमांदा मुसलमानों को बीजेपी के साथ जोड़ा जाए।
मुसलिम समुदाय में 80 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले पसमांदा मुसलमानों को अगर बीजेपी अपने साथ जोड़ने में कामयाब रहती है तो निश्चित रूप से इससे विपक्षी दलों के लिए चिंता पैदा हो सकती है।
30 विधायक पसमांदा
उत्तर प्रदेश की विधानसभा में कुल 34 मुसलिम विधायक हैं और इनमें से 30 विधायक पसमांदा समाज से हैं। पसमांदा मुसलिम समाज के नेताओं के मुताबिक, इस समुदाय में अंसारी, मंसूरी, राईन, गुर्जर, घोसी, कुरैशी, इदरीसी, नाइक, फकीर, सैफी, अल्वी और सलमानी आदि बिरादरियों के लोग आते हैं। इस समुदाय के लोग बड़ी संख्या में काम, धंधों और व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।
मोहन भागवत की पहल
बताना होगा कि पिछले कुछ महीनों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी मुसलिम समुदाय तक पहुंच बढ़ाने की कोशिश की है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने अगस्त के महीने में मुसलिम समुदाय के 5 बुद्धिजीवियों से मुलाकात की थी। भागवत ने ज्ञानवापी मसजिद विवाद के बीच बयान दिया था कि हर मसजिद के नीचे शिवलिंग खोजने की क्या जरूरत है। इससे पहले उन्होंने कहा था कि हम सभी का डीएनए एक है। संघ प्रमुख ने यह भी कहा था कि राम मंदिर के बाद हम कोई आंदोलन नहीं करेंगे और मुद्दों को आपस में मिलकर-जुलकर सुलझाएं।
आजमगढ़ और रामपुर की जीत
बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने आजमगढ़ और रामपुर संसदीय क्षेत्रों के उपचुनाव में बीजेपी को मिली जीत का विशेष जिक्र किया था। इन दोनों ही सीटों पर मुसलिम मतदाता अच्छी-खासी संख्या में हैं लेकिन बावजूद इसके यहां बीजेपी को जीत मिली थी। दोनों ही सीटें समाजवादी पार्टी के पास थीं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ से सपा प्रमुख अखिलेश यादव जीते थे जबकि रामपुर से दिग्गज नेता आजम खान को जीत मिली थी।
अंसारी को बनाया मंत्री
उत्तर प्रदेश में दूसरी बार सरकार बनाने के बाद बीजेपी ने जब दानिश आजाद अंसारी को सरकार में मंत्री बनाया तो इसकी काफी चर्चा हुई थी। दानिश आजाद अंसारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से निकले हैं और अल्पसंख्यक मोर्चा में विभिन्न पदों पर रहे हैं।
बीते कुछ महीनों में नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल के बयानों के बाद मुसलिम समुदाय के लोग सड़क पर उतर आए थे। बीजेपी ने दोनों नेताओं पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की थी। हाल ही में तेलंगाना में बीजेपी के विधायक टी. राजा सिंह और दिल्ली बीजेपी के सांसद प्रवेश वर्मा ने भड़काऊ बयानबाजी की तो पार्टी की ओर से उन्हें इस बारे में सफाई देने के लिए कहा गया है।
2024 पर है नजर
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में यह साफ दिखाई दिया था कि मुसलिम समुदाय ने समाजवादी पार्टी के पक्ष में लगभग एकतरफा मतदान किया था। बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा सीटें झटकना चाहती है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे उत्तर प्रदेश में अपने दम पर 71 सीटों पर जीत मिली थी जबकि 2019 में यह आंकड़ा घटकर 62 रह गया था। रामपुर और आजमगढ़ सीट पर चुनाव जीतने के बाद यह आंकड़ा बढ़कर 64 हो गया है।
देखना होगा कि इस तरह के सम्मेलनों के जरिए बीजेपी कितने बड़े पैमाने पर पसमांदा मुसलिम समुदाय के लोगों तक पहुंच बना पाती है।
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