बीजेपी ने लक्ष्य बना लिया है कि देश भर में ओबीसी समुदाय के बड़े हिस्से को अपने पाले में करना है। ख़ासकर चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश में इसके लिए वह जमकर पसीना बहाने जा रही है। उत्तर प्रदेश में 45 फ़ीसदी के आसपास ओबीसी समुदाय की आबादी है और इसमें भी अति पिछड़ा वर्ग को जोड़ने पर पार्टी का ज़्यादा जोर है।
सभी जातियों को जगह
संसद के दोनों सदनों में ओबीसी विधेयक पास हो चुका है और बीजेपी मोदी सरकार के इस क़दम को उत्तर प्रदेश में इस समुदाय के लोगों के बीच जोर-शोर से लेकर जाने वाली है। पार्टी ने अपने ओबीसी मोर्चा को कुछ इस तरह बुना है कि इसमें इस समुदाय की लगभग सभी जातियों को प्रतिनिधित्व मिला है।
पार्टी ने कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश ओबीसी मोर्चा की जो 26 सदस्यों वाली प्रदेश स्तरीय टीम का एलान किया है, उसमें इस समुदाय की ताक़तवर जातियों- यादव, कुर्मी, लोध, जाट से लेकर अति पिछड़ी जातियों- निषाद, राजभर, कुशवाहा, प्रजापति, पाल, चौरसिया और तेली (साहू) समाज से आने वाले नेताओं को जगह दी है। जबकि अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी कश्यप समाज से आने वाले नरेंद्र कश्यप को दी गई है।
नरेंद्र कश्पय ने ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ से कहा कि सभी जातियों को जगह मिलने से उन्हें बीजेपी के और नज़दीक लाने में मदद मिलेगी। उत्तर प्रदेश में ओबीसी की 79 जातियां हैं, इसमें से यादव 18-20%, कुर्मी 8%, लोध और हिंदू जाट भी 8% हैं जबकि अति पिछड़ी जातियों का बड़ा हिस्सा भी ओबीसी की ताक़त को मज़बूत करता है।
इन जातियों से इतर कुशवाहा, मौर्या, सैनी और शाक्य भी 12-14% की हैसियत रखते हैं। इनके बाद निषाद, कश्यप, बिंद, मल्लाह, केवट और कहार की आबादी ओबीसी समुदाय की 6-8% फीसद है।
बीजेपी उत्तर प्रदेश में ‘मोदी समर्थन सम्मेलन’ भी करेगी। प्रदेश में ऐसे 70 सम्मेलनों की योजना तैयार कर ली गई है। उत्तर प्रदेश के हर जिले में एक सम्मेलन होगा और ये सम्मेलन तीन महीने तक चलेंगे। इस दौरान पार्टी ओबीसी समुदाय के हक़ में मोदी सरकार के द्वारा उठाए गए क़दमों का प्रचार करेगी।
पार्टी ने मोदी कैबिनेट में ओबीसी से 27 मंत्री होने के दावे का जमकर प्रचार किया है। इसके अलावा नीट परीक्षा में ओबीसी छात्रों के लिए 27 फ़ीसदी आरक्षण को भी सोशल मीडिया पर जमकर भुनाया जा रहा है।
दबाव में है बीजेपी
यूपी में बीजेपी के पास केशव प्रसाद मौर्य के रूप में एक बड़ा चेहरा है। लेकिन पार्टी इस सवाल को लेकर दबाव में है कि उसने 2017 के चुनाव में ओबीसी समुदाय के किसी नेता को मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया। जबकि केशव प्रसाद मौर्य ओबीसी समुदाय से ही आते हैं।
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बीजेपी अति पिछड़ी जातियों के नेताओं की सियासी आकांक्षाओं को पंख लगाकर और उन्हें संगठन व सरकार में जगह देकर किसी भी क़ीमत पर अपने साथ ही रखना चाहती है। बीते कुछ दिनों में उठाए गए क़दम इस बात की तसदीक करते हैं।
राजभर बड़ा फ़ैक्टर
बीजेपी की चिंता ओमप्रकाश राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चा को लेकर भी है। इस मोर्चे में 10 छोटे दलों का गठबंधन है, जो अति पिछड़ा वर्ग की जातियों में बीजेपी के वोटों में बड़ी सेंध लगा सकता है। पूर्वांचल की 100 सीटों पर राजभर समुदाय के मतदाता अच्छी-खासी संख्या में हैं। इसीलिए, स्वतंत्र देव सिंह ने कुछ दिन पहले राजभर से मुलाक़ात की थी और बीजेपी उन्हें अपने पाले में खींचना चाहती है।
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निषाद समुदाय
निषाद समुदाय भी बेहद अहम है और ओबीसी समुदाय में इसकी आबादी 18 फ़ीसदी है। निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद मोदी मंत्रिमंडल के हालिया विस्तार में अपने बेटे प्रवीण निषाद को मंत्री न बनाए जाने से ख़फा हैं और उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले अपनी राहें अलग कर सकते हैं।
बीजेपी इस बात की तैयारी कर रही है कि अगर राजभर साथ नहीं आए और संजय निषाद भी अलग हो गए तो उस हालात में भी उसे ओबीसी और अति पिछड़े वोटों का नुक़सान नहीं होना चाहिए।
मोदी सरकार ने नाराज़ चल रहीं अनुप्रिया पटेल को फिर से मंत्री बनाकर कुर्मियों को साथ रखने की कोशिश की है। बीजेपी जानती है कि ओबीसी समुदाय जिस तरह एकजुट हुआ है, उसमें उसे हर वह काम करना होगा जिससे यह समुदाय उसके साथ रहे और उत्तर प्रदेश के चुनाव में उसकी नैया पार लग सके।
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