उत्तर प्रदेश बीजेपी में अंदरुनी हलचल के बीच बीजेपी ने अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ भी शुरू कर दी हैं। वह राज्य में छोटे लेकिन काफ़ी अहम दलों के साथ क़रार करने के लिए बातचीत कर रही है। फ़िलहाल जो ख़बरें आई हैं उसमें कहा जा रहा है कि बीजेपी के नेताओं की अपना दल और निषाद समाज के नेताओं के साथ बातचीत चल रही है। अपना दल के यूपी में बीजेपी नेतृत्व से नाराज़ चलने की रिपोर्टें आती रही हैं और 2019 के चुनाव से पहले तो इसने बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन को छोड़ने की धमकी भी दे दी थी।
लेकिन अब लगता है कि फिर से बीजेपी और अपना दल के बीच में क़रार की बातचीत चल रही है। गुरुवार को देश के गृहमंत्री और बीजेपी नेता अमित शाह से अपना दल की अनुप्रिया पटेल मिलीं। इसके अलावा अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी के क़रीबी पूर्व नौकरशाह एके शर्मा की निषाद समाज पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ.. संजय कुमार निषाद और संत कबीर नगर के सांसद प्रवीण निषाद से मुलाक़ात होने की ख़बर है।
इनके साथ बीजेपी नेताओं की बैठकें और क़रार इसलिए अहम हैं कि यूपी में मौजूदा बीजेपी सरकार के ख़िलाफ़ नाराज़गी है और ख़बरें हैं कि बीजेपी आलाकमान को यूपी की रिपोर्ट अच्छी नहीं मिली है। ऐसी ही रिपोर्टों के बीच बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अनबन की अटकलें हैं। ये अटकलें और ज़्यादा तब लगाई जाने लगीं कि योगी आदित्यनाथ दिल्ली में आए हैं और वह केंद्रीय नेतृत्व से मुलाक़ात कर रहे हैं।
योगी दिल्ली में गुरुवार को जब अमित शाह से मिले थे तो उसी दिन अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल भी अमित शाह से मिलीं। ख़ुद अमित शाह ने इस मुलाक़ात की तसवीर को ट्वीट किया।
अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती @AnupriyaSPatel जी से भेंट की। pic.twitter.com/zIut3hTn6y
— Amit Shah (@AmitShah) June 10, 2021
इस बीच ख़बर है कि अनुप्रिया पटेल ने बीजेपी नेतृत्व के सामने अपनी कुछ मांगें रखी हैं। एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि उन्होंने केंद्र और उत्तर प्रदेश में एक-एक मंत्री के पद की मांग रखी है। इसके अलावा अपना दल ने कुछ ज़िलों में ज़िला पंचायत अध्यक्ष के पद में भी दिलचस्पी दिखाई है। हालाँकि बीजेपी और अपना दल 2014 के चुनाव से पहले से ही गठबंधन में हैं, लेकिन बाद में अपना दल की नाराज़गी बढ़ी है। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में अपना दल को 9 सीटें मिली थीं। उससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे 2 सीटें मिली थीं और तब अनुप्रिया पटेल कुछ समय के लिए केंद्र में मंत्री भी रही थीं।
लेकिन बाद में नाराज़गी बढ़ती गई और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले तो अपना दल ने एनडीए गठबंधन से बाहर निकलने की धमकी दे दी थी। तब उसने आरोप लगाया था कि बीजेपी गठबंधन के साथियों का ख्याल नहीं रखती।
अब बीजेपी यूपी में 2017 के चुनाव से पहले की तरह ही सामाजिक समीकरण देखकर विपक्ष के छोटे-छोटे दलों और ग़ैर यादव ओबीसी समुदायों को जोड़ने की कोशिश कर रही है। और बीजेपी के लिए यह ज़रूरी भी लगता है। यह इसलिए कि उत्तर प्रदेश में चल रही जबरदस्त राजनीतिक उथल-पुथल के बीच कई तरह की चर्चाएँ हैं। एक चर्चा का खुलासा तो वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता ने ‘सत्य हिन्दी’ के साथ बातचीत में किया है। उन्होंने कहा कि यूपी बीजेपी के 325 विधायकों में से 250 के हस्ताक्षर कराए जा चुके हैं। उन्होंने दावा किया कि बीएल संतोष ने लखनऊ दौरे के दौरान बीजेपी विधायकों, नेताओं से रायशुमारी की थी और इसमें 99 फ़ीसदी विधायकों ने कहा था कि वे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली से ख़ुश नहीं हैं। इसके बाद इन लोगों से कहा गया कि अगर आप ख़ुश नहीं हैं तो हस्ताक्षर करें।
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