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चुनाव के बीच अतीक अहमद की प्रयागराज जेल में शिफ़्टिंग क्यों?

क्या बरेली जेल में बंद माफ़िया सरगना अतीक अहमद पर बीजेपी की योगी सरकार फिर मेहरबान है? यदि ऐसा नहीं है तो चुनाव के बीच उसे अपने गृह क्षेत्र की जेल में क्यों भेजा जा रहा है? दरअसल, अतीक को बरेली जेल से नैनी (प्रयागराज) जेल शिफ़्ट करने के आदेश दे दिये गये हैं। इस फ़ैसले को चुनाव आयोग की सहमति प्राप्त बताई जा रही है।

atiq ahmed naini jail transfer from deoria loksabha election - Satya Hindi

अतीक अहमद हाई कोर्ट के आदेश के बाद अपने गृह जनपद की जगह देवरिया जेल में निरुद्ध था। दिसंबर 2018 में एक व्यापारी को लखनऊ से अपहृत कर देवरिया जेल लाकर फ़िरौती के लिये उसके द्वारा डंडों से पीटे जाने की ख़बर वायरल होने पर योगी सरकार को कुछ महीने पहले ही उसे बरेली जेल भेजना पड़ा था। अतीक अहमद फूलपुर उपचुनाव में बीजेपी के काम आया था जहाँ वह निर्दलीय प्रत्याशी बनकर वोट काटने खड़ा हो गया था और इसे क़रीब 50 हज़ार वोट मिले थे। हालाँकि, इस कसरत के बावजूद बीजेपी वह चुनाव हार गई थी।

अतीक अहमद फिर बीजेपी के चुनाव में काम आ सकता है। ऐसी ख़बरें हैं कि वह फिर फूलपुर क्षेत्र से चुनाव लड़ सकता है। उसका इस क्षेत्र में काफ़ी असर रहा है और वह मुसलिम समुदाय के वोट काट सकता है। मुसलिम वोट कटने पर किसे फ़ायदा होगा, यह जगज़ाहिर है।

बता दें कि उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम और ओबीसी चेहरा केशव प्रसाद मौर्य लोकसभा चुनाव के ज़रिए अपने पुत्र योगेश मौर्य की सियासी लॉन्चिंग में जुटे हैं। माना जा रहा है कि फूलपुर लोकसभा सीट से योगेश मौर्य बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतर सकते हैं। हालाँकि बीजेपी ने अभी तक फूलपुर सीट पर अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की है।

2014 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर सीट पर केशव मौर्य कमल खिलाने में कामयाब रहे थे, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में केशव मौर्य को यूपी में उप-मुख्यमंत्री बनाया गया था, जिसके चलते उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया था। इसके बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी ने कौशलेंद्र पटेल को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन सपा उम्मीदवार के आगे जीत नहीं सके थे।

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हाई कोर्ट के हस्तक्षेप से हुई थी गिरफ़्तारी

प्रयागराज निवासी अतीक अहमद पाँच बार विधायक रह चुका है। 15 दिसंबर 2016 को प्रयागराज की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में हमले और तोड़फोड़ के मामले में उसे गिरफ़्तार किया गया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के हस्तक्षेप करने पर ही क़रीब दो महीने बाद उसे गिरफ़्तार किया जा सका था। उस पर बीएसपी विधायक राजू पाल समेत कई लोगों की हत्या, अपहरण, हत्या की कोशिश, फ़िरौती वसूलने और मारपीट करने के मामले दर्ज़ रहे हैं। हालाँकि 2014 में चुनावी शपथ पत्र में उसने लिखा था कि उस पर कोई मामला लंबित नहीं है।

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अतीक अहमद पर सिर्फ़ मायावती सरकार के कार्यकाल में गंभीर क़ानूनी कार्रवाई हो सकी थी, वरना हर सरकार में वह हमदर्द ढूँढ लेता है। आरोप है कि उसे जेल से ही गैंग चलाने, क़त्ल कराने, फ़िरौती वसूलने और जेल में हर क़िस्म का ऐश करने का मौक़ा प्रशासन की मदद से मिलता रहा है। ग़ौरतलब है कि अतीक अहमद के ज़्यादातर शिकार वैसे व्यापारी रहे हैं जो बीजेपी के भी समर्थक हैं और जिसकी बस्ती जेल में पिटाई की गई थी वह भी उनमें से एक था। 

बता दें कि दो दिन पहले ही बीजेपी ने भोपाल में प्रज्ञा ठाकुर को लोकसभा चुनाव के लिये उम्मीदवार बनाया है जो आतंकवाद के मामले में अभियुक्त हैं। ऐसे में दागियों को चुनाव में उतारे जाने का सिलसिला थमता नहीं दिख रहा है।

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क़मर वहीद नक़वी
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