उत्तर प्रदेश में गठबंधन की राजनीति अभी स्थिर नहीं हो पाई है। बीजेपी गठबंधन में शामिल अपना दल ने राज्य के गठबंधनों को अस्थिर कर दिया है और पार्टी नेता आशीष पटेल इस दौर में हार्ड बार्गेनर बनकर उभरे हैं।
आशीष पटेल पेशे से इंजीनियर रहे हैं, जो अब राजनीति की इंजीनियरिंग संभाल रहे हैं। फ़िलहाल राजनीति में उनकी पहचान केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल से जुड़ी हुई है, जो उनकी पत्नी हैं। आशीष के बारे में तरह-तरह की बातें चर्चा में रहती हैं। यह माना जा रहा है कि 2017 के विधानसभा चुनाव के पहले बीजेपी ने वादा किया था कि सत्ता में आने पर आशीष को विधान परिषद में भेजकर उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया जाएगा। वह विधानपरिषद में पहुँचे भी। उनकी पार्टी के कोटे से एक कैबिनेट और एक राज्यमंत्री बनाया जाना था लेकिन राज्य की बीजेपी सरकार ने उन्हें मंत्री नहीं बनाया। आशीष लगातार बीजेपी के प्रदेश नेतृत्व की आलोचना कर रहे हैं। राज्य में पूर्ण बहुमत पा चुकी बीजेपी अपना दल की इस माँग पर ध्यान देना उचित नहीं समझ रही है।
बीजेपी-कांग्रेस दोनों से सौदेबाजी़?
इस बीच यह भी ख़बर चली कि अपना दल नेता अनुप्रिया पटेल ने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी से मुलाक़ात की है। आशीष ने बयान दिया कि उनके अल्टीमेटम का वक़्त खत्म हो गया है और वह कोई भी फ़ैसला करने के लिए स्वतंत्र हैं। बहरहाल, सुनी-सुनाई बात यह भी है कि इस बीच बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने आशीष को कैबिनेट मंत्री बनाने, पार्टी को लोकसभा की 3 सीटें देने, राज्य सभा या विधान परिषद की 1 सीट और उत्तर प्रदेश के निगम में 5 पद देने का आश्वासन दिया है और पार्टी के प्रदेश नेतृत्व के रवैये को लेकर नाराज़गी जताई है।
बीजेपी का साथ कितना फ़ायदेमंद?
बीजेपी का अपना दल के प्रति रवैया 2014 चुनाव के बाद से ही बेहतर नहीं रहा है। प्रचंड बहुमत मिलने के बाद ऐसा स्वाभाविक भी था। बीजेपी ने अनुप्रिया को मंत्री ज़रूर बनाया, लेकिन पार्टी टूटने की क़ीमत पर। अनुप्रिया की माँ कृष्णा पटेल अपनी दूसरी बेटी के साथ अलग दल चला रही हैं। वहीं बीजेपी ने अपना दल के दूसरे सांसद हरिवंश सिंह को भी अपने पाले में मोड़ लिया है। बीजेपी कुल मिलाकर अपना दल को 3 खंडों में तोड़ चुकी है और कम से कम दो गुट को वह अपने साथ हर हाल में रख पाने में कामयाब भी रहेगी। उत्तर प्रदेश में बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में है। उसके लिए यह बहुत आसान होगा कि वह अपना दल के 9 विधायकों में से ज़्यादातर को अपने पाले में कर ले।
- आशीष के सामने यह जोखिम है कि अगर वह बीजेपी का साथ छोड़ते हैं तो बीजेपी उनके 9 विधायकों में से ज़्यादातर को अपने पाले में करके पार्टी को ख़त्म करने की कवायद करेगी। यह भी उग्र रूप से प्रचारित करेगी कि मंत्री न बनाए जाने से नाराज़ आशीष ने गठबंधन तोड़ा है।
बीजेपी ने अनुप्रिया को केंद्रीय मंत्री तब बनाया था, जब उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव नज़दीक थे। मंत्री ही नहीं बनाया, बल्कि राज्य में 12 विधानसभा टिकट दिए। मंत्री बनाने सहित तमाम आश्वासन दिए।
अब एक बार फिर लोकसभा चुनाव के पहले बीजेपी को अपना दल लाभ का सौदा लग रहा है और आशीष हार्ड बार्गेनिंग में लगे हैं। लेकिन मामला सिर्फ़ आशीष के मंत्री बनने तक नहीं है। महत्त्वाकांक्षाएँ और समस्याएँ और भी हैं।
पार्टी पहली बार दिल्ली की सत्ता के गलियारे में पहुँची है और लुटियन जोन में उसे एक बड़ा बंगला मिला है। बंगले को बचाने के लिए राम विलास पासवान सहित तमाम छोटे दलों के नेता कवायद करते हैं। बंगले की अहमियत यह होती है कि उसमें कम से कम 50-60 कर्मचारी समायोजित रहते हैं, साथ ही उनके रहने का भी इंतज़ाम होता है। नेता के पास दिल्ली में दिखाने के लिए हमेशा संख्या बल मौजूद रहता है। आशीष ने भी यह रणनीति अपनाई है। अनुप्रिया को मिले बंगले में जितने कर्मचारी तैनात हैं, वे वंचित तबक़े के हैं और दिल्ली में उन्हें रोज़गार ही नहीं, बल्कि उनके परिचितों को भी आसरा मिला हुआ है। इसलिए लुटियन जोन की कोठी बचाना भी एक अहम मसला है।
कांग्रेस की दिलचस्पी क्यों?
कांग्रेस के साथ जाने पर अपना दल बड़े सपने देख सकता है। प्रखर वक्ता और ओबीसी की हिमायती होने के कारण अनुप्रिया में पिछड़े वर्ग को अपनी तरफ़ खींच लेने का दम है। कांग्रेस को इसकी ज़रूरत भी है। वह भविष्य में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने के सपने कांग्रेस के साथ आकर देख सकती हैं, जो बीजेपी के साथ रहकर सपने में भी नहीं सोच सकतीं। लेकिन उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कोई जनाधार नहीं बचा है और उसके पास काम करने के लिए महज 3 महीने हैं।
- कांग्रेस के साथ समझौता करके आशीष के लिए एक लोकसभा सीट बचाना भी मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि सपा-बसपा का गठजोड़ इस समय बड़ी चुनौती है। कांग्रेस-अपना दल गठजोड़ की तुलना में बीजेपी-अपना दल गठजोड़ ज़्यादा मज़बूत नज़र आ रहा है।
सपा-बसपा गठजोड़ और व्यापक होगा?
भविष्य के ऊँचे सपने लेकर आशीष इस कवायद में हैं कि सपा-बसपा गठजोड़ और व्यापक हो। उसमें कांग्रेस भी आए। अपना दल और ओम प्रकाश राजभर की भारतीय समाज पार्टी को भी स्पेस मिल जाए, जो लगातार आशीष के संपर्क में हैं। वहीं सपा-बसपा ने आपस में सीटें बाँट ली हैं। अखिलेश यादव अपनी सीटों में समझौता करके अजित सिंह की पार्टी को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रहे हैं, लेकिन मायावती हिलने को तैयार नहीं हैं। हालाँकि यह भी ख़बर आ रही है कि सपा-बसपा गठबंधन ने कांग्रेस को 9 सीटें देने की पेशकश की है, जिसे कांग्रेस ने मानने से इनकार कर दिया है। अगर सपा-बसपा गठबंधन में अपना दल को भी शामिल किया जाता है तो उसकी भी 3 सीटों की दावेदारी बनेगी, इतना देने के लिए बीजेपी पूरी तरह तैयार है। और आशीष पटेल इससे कम पर समझौता क्यों करें, जबकि बीजेपी से समझौता करने पर उनके 9 विधायक और उत्तर प्रदेश में मंत्री का पद 2022 तक सुरक्षित रहेगा? यही स्थिति राजभर के साथ भी है।
सपा-बसपा गठबंधन की समस्या यह है कि वह राज्य की 80 लोकसभा सीटों में इतने ज़्यादा दलों को कैसे समायोजित व संतुष्ट करे।
- यह अपना दल को तय करना है कि कुछ स्वार्थ में दीर्घकालीन हित और बहुजनों के लिए एक उम्मीद बनी अनुप्रिया की ऊँची छलांग के सपने की भ्रूण हत्या करके मौजूदा अस्तित्व बचाने की कवायद करती है या जोखिम लेती है।और सपा-बसपा गठबंधन की समस्या यह है कि वह राज्य की 80 लोकसभा सीटों में इतने ज़्यादा दलों को कैसे समायोजित व संतुष्ट करे।
क्या अनुप्रिया जोखिम लेंगी?
आशीष के सामने एक विकल्प अब भी मौजूद है कि बड़ा सपना देखने के लिए जोखिम लें। लेकिन यह कांग्रेस की बड़ी पेशकश पर ही संभव हो सकता है। आशीष के लुटियन जोन के बंगले को बचाने के लिए कांग्रेस यह फॉर्मूला दे सकती है कि वह आशीष या अनुप्रिया को हर हाल में राज्यसभा में भेजेगी। अगर सपा-बसपा गठजोड़ से इतर कांग्रेस और अपना दल का चुनावी समझौता होता है तो उसमें अपना दल कांग्रेस का दूसरा बड़ा साझेदार होगा और महान दल, भारतीय समाज पार्टी, निषाद पार्टी, पीस पार्टी जैसे दलों का भी समायोजन आराम से हो सकता है। लेकिन यह भविष्य के मुख्यमंत्री पद के सपने के लिए बड़ा जोखिम है। यह अपना दल को तय करना है कि कुछ स्वार्थ में दीर्घकालीन हित और बहुजनों के लिए एक उम्मीद बनी अनुप्रिया की ऊँची छलांग के सपने की भ्रूण हत्या करके मौजूदा अस्तित्व बचाने की कवायद करती है या जोखिम लेती है।
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