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हाई कोर्ट ने चिन्मयानंद रेप केस में यूपी सरकार की खिंचाई क्यों की?

पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी का नेता रहे स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती को झटका लगा है। यह झटका इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पिछले शुक्रवार को दुष्कर्म के एक मामले में दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने पैरवी की थी कि चिन्मयानंद के ख़िलाफ़ दर्ज उस मुक़दमे को वापस लिया जाए। हाई कोर्ट ने सरकार की दलीलों को खारिज कर दिया और इसने कहा कि मुक़दमा वापस नहीं लिया जा सकता है। कोर्ट ने इसकी पैरवी के लिए सरकार की जमकर खिंचाई की। 

अदालत ने किन आधारों पर सरकार की अपील को खारिज किया और इसके लिए अदालत ने क्या क्या कहा, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर यह मामला क्या है। 

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अगस्त 2019 में शाहजहांपुर स्थित स्वामी शुकदेवानंद विधि महाविद्यालय में पढ़ने वाली एक छात्रा ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो अपलोड कर चिन्मयानंद पर शारीरिक शोषण तथा कई लड़कियों की जिंदगी बर्बाद करने का आरोप लगाया था। उसने यह भी कहा था कि उसको और उसके परिवार को जान का ख़तरा है।

स्वामी चिन्मयानंद उस लॉ कॉलेज की प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष थे। पीड़िता ने आरोप लगाया था कि चिन्मयानंद ने एक साल तक उसका बलात्कार किया था। पीड़िता और उसके परिवार की ओर से आरोप लगाया गया था कि चिन्मयानंद के सियासी रसूख के कारण पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही थी और इसमें जानबूझ कर देरी की जा रही थी। पीड़िता ने आत्मदाह की चेतावनी भी दी थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दख़ल दिया था। 

सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद चिन्मयानंद को 2019 में सितंबर में गिरफ़्तार किया गया था और उनके ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 376सी के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया था।

जब यह मामला सुर्खियों में आया तो चिन्मयानंद की ओर से पीड़िता पर 5 करोड़ रुपये की रंगदारी माँगने का आरोप लगाया गया था। तब पीड़िता ने कहा था कि उसके पास पूर्व सांसद के कम से कम 35 वीडियो हैं।

पीड़िता ने कहा था कि उसे उम्मीद है कि इन वीडियो के आधार पर उसे इंसाफ़ ज़रूर मिलेगा। पीड़िता ने कहा था कि उसे कॉलेज कैंपस में बने चिन्मयानंद के आवास पर मसाज के लिए बुलाया जाता था।

अक्टूबर 2020 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चिन्मयानंद को जमानत दे दी। इसे लेकर काफी आलोचना भी हुई थी। बाद में उसी महीने लॉ कॉलेज की छात्रा अपने बयान से पलट गई थी और उसने आरोप वापस ले लिए थे। तब सरकार के वकील अभय त्रिपाठी के मुताबिक़, छात्रा ने अदालत को बताया था कि उसने बदमाशों द्वारा दबाव बनाए जाने के कारण पूर्व केंद्रीय मंत्री के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न व बलात्कार के आरोप लगाए थे। 

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इसी मामले में सरकार ने शाहजहाँपुर की स्थानीय अदालत में इस केस को वापस लिए जाने की याचिका लगाई गई थी। इस पर अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया था। स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने शाहजहांपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के उस आदेश को चुनौती देने के लिए अदालत का रुख किया था। अब इसी मामले में शुक्रवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट का फ़ैसला आया है। 

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की पीठ ने सरस्वती के खिलाफ मामला वापस लेने के फैसले को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की भी जमकर खिंचाई की। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि सीआरपीसी की धारा 321 (अभियोजन वापस लेने की मांग) के तहत दायर इस तरह के एक आवेदन में एक ठोस कारण होना चाहिए। अदालत ने वरिष्ठ लोक अभियोजक को भी फटकारा और कहा कि अभियोजक कार्यपालिका/राजनीतिक आकाओं के सामने झुक गए।

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अदालत ने कहा कि वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी राज्य सरकार के इशारे पर नाच रहे हैं, उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि वह कोर्ट के भी अधिकारी हैं, इसलिए उन्हें निष्पक्ष होना चाहिए।

याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस राहुल चतुर्वेदी ने कहा, ‘निचली अदालत के फैसले पर गौर करने के बाद इस अदालत का विचार है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ मुकदमा वापस लेने की संपूर्ण प्रक्रिया, उच्चतम न्यायालय द्वारा तय मानकों के अनुरूप नहीं है और इस तरह से यह अदालत इसमें हस्तक्षेप करना ठीक नहीं समझती।’

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क़मर वहीद नक़वी
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