आदिपुरुष फ़िल्म में दर्शाए गए भगवान श्री राम, हनुमान जैसे पात्रों के चित्रण को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अब तीखी टिप्पणी की है। इसने फिल्म आदिपुरुष के निर्माताओं की आलोचना की है और कहा है कि एक विशेष धर्म की सहिष्णुता के स्तर की परीक्षा क्यों ली जा रही है?
आदिपुरुष फिल्म में तमाम किरदारों के डायलॉग को लेकर फ़िल्म के निर्माता-निर्देशक और डायलॉग लिखने वाले ग़ुस्सा झेल रहे हैं। वैसे, तो इस फ़िल्म के कई तथ्यों को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर जिसको लेकर तीखी प्रतिक्रिया हुई है वह है- डायलॉग यानी संवाद, वीएफ़एक्स और कुछ पात्रों की वेशभूषा। इस सब को लेकर सोशल मीडिया पर मीम्स की बाढ़ आई। फ़िल्म में 'मरेगा बेटे', 'बुआ का बागीचा है क्या' और 'जलेगी तेरे बाप की' जैसे डायलॉग को लेकर तो बेहद तीखी प्रतिक्रियाएँ आई हैं। इतना ग़ुस्सा झेलने के बाद फिल्म में बदलाव करने की बात कही गई।
फिल्म की टीम द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, 'आदिपुरुष को दुनिया भर में जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है और यह सभी उम्र के दर्शकों का दिल जीत रही है। इसको एक यादगार सिनेमाई अनुभव बनाने वाली टीम ने फिल्म के संवादों में बदलाव करने का फैसला किया है। जनता और दर्शकों के इनपुट को महत्व देते हुए यह किया जा रहा है।'
बयान में आगे यह भी कहा गया, 'निर्माता उक्त संवादों पर फिर से विचार कर रहे हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह फिल्म के मूल सार के साथ प्रतिध्वनित हो और यह अगले कुछ दिनों में सिनेमाघरों में दिखाई देगा। यह निर्णय इस बात का प्रमाण है कि बॉक्स ऑफिस पर शानदार संग्रह के बावजूद टीम प्रतिबद्ध है और कुछ भी उनके दर्शकों की भावनाओं और सद्भाव से परे नहीं है।'
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हमने समाचारों में देखा कि कुछ लोग सिनेमा हॉल में गए और उन्होंने केवल हॉल बंद करने के लिए दबाव डाला, वे कुछ और भी कर सकते थे। सीबीएफसी को इस मामले में प्रमाणपत्र देते समय कुछ करना चाहिए था।
इलाहाबाद हाई कोर्ट
न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान और न्यायमूर्ति प्रकाश सिंह की पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की और कहा, 'अगर हम लोग इसपर भी आँख बंद कर लें क्योंकि ये कहा जाता है कि ये धर्म के लोग बड़े सहनशील हैं तो क्या उसका टेस्ट लिया जाएगा?'
कोर्ट ने कहा कि धार्मिक ग्रंथ, जिनके प्रति लोग संवेदनशील हैं, को छुआ नहीं जाना चाहिए या उनका अतिक्रमण नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि उसके समक्ष दायर याचिकाएँ बिल्कुल भी प्रोपगेंडा याचिका नहीं थीं और वे एक वास्तविक मुद्दे से संबंधित थीं।
रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने कहा, 'यहां मुद्दा यह है कि जिस तरह से फिल्म बनाई गई है, उसमें कुछ ग्रंथ हैं जो अनुकरणीय हैं और पूजा के योग्य हैं। लोग अपने घरों से निकलने से पहले रामचरितमानस का पाठ करते हैं।'
पीठ ने आगे कहा कि कैसे भगवान हनुमान, भगवान राम, भगवान लक्ष्मण, सीता मां को ऐसे चित्रित किया गया जैसे कि वे कुछ भी नहीं थे।
याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली पीठ ने कहा, 'क्या डिस्क्लेमर लगाने वाले लोग देशवासियों और युवाओं को बुद्धिहीन मानते हैं? आप भगवान राम, भगवान लक्ष्मण, भगवान हनुमान, रावण, लंका दिखाते हैं और फिर कहते हैं कि यह रामायण नहीं है?'
कोर्ट ने भारत के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल से सवाल किया कि जब फिल्म में प्रथम दृष्टया आपत्तिजनक दृश्य और संवाद हैं तो वह फिल्म का बचाव कैसे करेंगे। हालाँकि, अदालत ने उनसे इस मामले में सक्षम प्राधिकारी से निर्देश लेने को कहा।
जब पीठ को सूचित किया गया कि फिल्म के कुछ आपत्तिजनक संवादों को बदल दिया गया है, तो पीठ ने फिर से नाराज़गी जताई। इसने कहा, 'अकेले इतने से काम नहीं चलेगा। आप दृश्यों का क्या करेंगे? निर्देश लें, फिर हम जो करना चाहते हैं वो ज़रूर करेंगे... अगर फ़िल्म का प्रदर्शन रोका गया तो जिन लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं, राहत मिलेगी।'
अदालत ने फिल्म के संवाद लेखक मनोज मुंतशिर शुक्ला को जनहित याचिका में प्रतिवादी पक्ष के रूप में शामिल करने की मांग करने वाली याचिका को स्वीकार कर लिया और उन्हें नोटिस जारी करने का निर्देश दिया।
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