क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी जैसे उससे जुड़े संगठन बाबरी मसजिद के विध्वंस के बाद किसी दूसरी मसजिद को निशाना नहीं बनाएंगे या यह सिर्फ उनकी 'टैक्टिकल रिट्रीट' है? क्या यह माना जाए कि केंद्र की सत्ता हासिल करने के बाद आरएसएस सबको साथ लेकर चलने की नीति अपनाएगा और मुसलमानों को निशाने पर नहीं लेगा, या यह समझा जाए कि जिस हिन्दुत्व को जगा कर उसने सत्ता हासिल की है, उसे वह आगे भी चलाएगा और मौजूदा समझदारी दिखावा और रणनीति का हिस्सा है? ये सवाल हैं।