माननीय आडवाणी जी,
पता चला कि बाबरी मसजिद के ध्वंस के मामले में अदालत से बरी किए जाने से आप बेहद ख़ुश हैं। फ़ैसला आने के बाद आपने जय श्री राम का उद्घोष भी किया। ज़ाहिर है कि इस ऐतिहासिक मोड़ पर आपके अंदर का कारसेवक फिर जाग गया होगा। आप फिर से अट्ठाईस साल पहले अयोध्या के उस परिसर में पहुँच गए होंगे जहाँ पर बाबरी मसजिद मौजूद थी। वे दृश्य आपकी आँखों में तैरने लगे होंगे, जब बीसियों कारसेवक बाबरी मसजिद के गुंबद पर चढ़कर उस पर प्रहार कर रहे थे।
चारों तरफ़ उन्माद भरा वातावारण था। आप भी उल्लास से भरे हुए थे। आख़िर वह ऐतिहासिक क्षण आप सबके समक्ष उपस्थित था, जिसकी प्रतीक्षा आप सभी को थी। आपके मन में कहीं एक खटका रहा होगा कि यह क़ानून सम्मत नहीं है, ऐसा नहीं होना चाहिए, मगर आपने इस खयाल को यह सोचते हुए झटक दिया होगा कि हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए ऐसा करना क़तई नाजायज़ नहीं होगा। इसीलिए आपने कारसेवकों को रोकने के लिए अधूरे मन से कुछ नेताओं को भेजा भी, मगर उनके असफल लौटने पर आपको संतुष्टि भी मिली। अपने मन को समझाने के लिए इतना काफ़ी था।
उस दिन वहाँ श्रीराम के हुंकारों के बीच भी आप अतीत-यात्रा पर निकल पड़े होंगे। आपको 1983 के बाद से वे तमाम दृश्य याद आने लगे होंगे कि कैसे आपकी पार्टी हाशिए पर चली गई थी और किसी को कोई राह नहीं सूझ रही थी कि उसे आगे बढ़ाया जाए। फिर आशा-निराशा के बीच योजना बनाई गई कि बाबरी मसजिद को निशाना बनाते हुए राम जन्मभूमि का आंदोलन चलाया जाए। बाबरी यानी मुसलमान और राम जन्मभूमि यानी हिंदू। इस तरह से हिंदू बनाम मुसलमान का आख्यान रचा जाए और पूरे देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके राजनीतिक आधार मज़बूत किया जाए।
सच है कि बहुत से लोगों की तरह आपको भी इसकी सफलता पर संदेह था, मगर दूसरा कोई आसान विकल्प भी नहीं था। इसीलिए, विश्व हिंदू परिषद को आगे करके आप लोगों ने इस आंदोलन को आगे बढ़ाने का रास्ता अख़्तियार कर लिया। उस समय किसी को भी अंदाज़ नहीं था कि घटनाएँ किस तरह से मोड़ लेंगी और अगले आठ-दस साल में ही आपकी पार्टी राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ जाएगी।
इस बीच किसी व्यवधान से आपकी विचार यात्रा टूटी थी। किसी ने बताया कि गुंबद टूट गया है। आप थोड़ा भाव विह्वल हुए, मगर फिर अपनी भावनाओं पर नियंत्रण पा लिया। आपने कहने की कोशिश की ज़रा सँभल के, मगर आपके मुँह से बोल नहीं फूटे। आप फिर से अतीत में लौट गए।
राममंदिर आंदोलन को मिल रहे जन समर्थन से कांग्रेस घबरा गई या यूँ कह लें कि कांग्रेस के अंदर मौजूदा हिंदुत्ववादियों ने आपसे प्रतिस्पर्धा शुरू कर दी और फिर आपका रास्ता आसान होता चला गया। इससे आप और आपकी पार्टी और भी आक्रामक होते चले गए।
आपने संयत भाषा में वही सब कहा जो साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती, विनय कटियार जैसे दूसरे नेता खुलकर बोल रहे थे। आप हिंदू मध्यवर्ग को लुभा रहे थे और वे अनपढ़ों, नासमझों को।
ठीक यही समय था जब आपने राम मंदिर अभियान के लिए रथयात्रा निकालने की सोची। आपकी पार्टी में इसको लेकर मतभेद था। कुछ लोग इसलिए भी असहमत थे क्योंकि आपका कद तेज़ी से बढ़ रहा था, जो उन्हें मंज़ूर नहीं था। मगर आपकी चल गई और नरेंद्र भाई के कौशल से आप सोमनाथ से रथ पर सवार होकर निकल पड़े। देखते ही देखते आप हीरो बन गए।
हालाँकि जहाँ-जहाँ से आपकी रथयात्रा गुज़री वहाँ सांप्रदायिक तनाव बढ़ता गया। कई जगह झड़पें हुईं और बाद में दंगे भी। मगर आप सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ते रहे। बिहार में लालू यादव ने आपके रथ को रोककर आपको बड़ा झटका दिया, वर्ना आपकी छवि और चमकती। फिर भी आपने काम कर दिया था।
विजयी भव का आशीर्वाद!
किसी ने आकर बताया कि कारसेवक अब दीवारों को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। दीवारें चूँकि बहुत मज़बूत हैं इसलिए मुश्किल आ रही है। लेकिन कारसेवक पूरे प्रशिक्षण और तैयारी से आए हैं इसलिए वे यह काम कर डालेंगे। उस समय भी आप अतीत यात्रा पर थे मगर आपने विजयी भव का आशीर्वाद देने की मुद्रा में हाथ उठा दिया। लोगों ने समझा कि आप कह रहे हैं जल्दी करो और वे उत्साह से भर गए।
फिर आया वह क्षण जब तय करना था कि अयोध्या में इस बार क्या करना है। बहुत से कार्यकर्ताओं में बेचैनी थी। उन्हें लग रहा था कि खाली-पीली में अयोध्या बुला लेते हैं और कुछ होता नहीं है, इसलिए आंदोलन को जीवित रखने के लिए इस बार कुछ करना ज़रूरी था।
अधिकांश नेताओं का कहना था कि अब समय आ गया है जब बाबरी मसजिद को ढहा दिया जाना चाहिए। आप इस विचार से आशंकित थे। कई तरह की मुश्किलें भी थीं।
कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दिया हुआ था कि बाबरी मसजिद को नुक़सान नहीं होने दिया जाएगा। फिर वहाँ पर सीआरपीएफ़ होगी, बड़ा ख़ून-ख़राबा हो सकता है। आप पार्टी के सबसे बड़े नेता थे। सारी ज़िम्मेदारी आप पर आती इसलिए आप चिंतित भी थे। लेकिन आख़िरकार एक ठोस रणनीति बन गई। लखनऊ से लेकर दिल्ली तक पक्की व्यवस्था कर ली गई। और आज उस योजना को साकार होते हुए वे देख रहे थे।
अचानक जयश्रीराम के नारों से आपकी तंद्रा टूटी। आपने देखा कि सब खुशियाँ मना रहे थे। एक-दूसरे के गले मिल रहे थे। उमा भारती तो मुरली मनोहर जोशी के कंधों पर सवार हो गई थीं। वहाँ मौजूद सभी कार्यकर्ताओं और नेताओं का यही हाल था। आपने अपनी नज़रें उस तरफ़ घुमाईं जहाँ बाबरी मसजिद थी, वहाँ अब सफ़ाचट मैदान था। बाबरी मसजिद का नाम-ओ-निशान भी नहीं था। आपकी आँखें छलक आई थीं। आपने किसी तरह से उन्हें छिपाया। आपने संतुष्टि की साँस ली थी, एक बड़ा कार्य निर्विघ्न संपन्न हो गया था।
लेकिन आपने जिसे महान कार्य समझा था दरअसल क़ानून की निगाह में वह अपराध था। इसकी वज़ह से देश भर में भयानक दंगे हुए, हज़ारों निरपराध लोग मारे गए। आप और आपके तमाम साथी इस अपराध के भागीदार थे, इसलिए आपके ख़िलाफ़ मुक़द्दमा दायर हुआ। अट्ठाईस साल तक आपके सिर पर तलवार लटकती रही। इसकी वज़ह से आपको बहुत कुछ सहना पड़ा, बहुत कुछ खोना पड़ा।
लेकिन अब आप दोषमुक्त कर दिए गए हैं। आपके सिर से बोझ उतर गया है। लेकिन क्या सचमुच में बोझ उतर गया है? क्या आप सचमुच में दोषमुक्त हो गए हैं? क्या अदालत ने इंसाफ़ किया है? ये सब जानते हैं, आप भी कि बाबरी ध्वंस के कसूरवार ख़ुद को कभी दोषमुक्त नहीं मान सकते। आप उस पूरे आंदोलन के अगुआ थे जिसने बाबरी मसजिद को गिराकर देश के माथे पर कलंक का टीका लगा दिया और जिसकी वज़ह से हज़ारों जानें गईं, देश आंतरिक रूप से विभाजित हो गया। इसलिए आप इस अपराध के दोष से कभी मुक्त नहीं हो सकते।
श्रीराम का जयघोष लगाते समय भी आपके मन में खटका तो ज़रूर रहा होगा। आपको पता है कि अगर कोई रामराज्य था तो उसमें इस तरह का न्याय नहीं होता होगा। अरे इतना बड़ा अपराध करके कोई बाइज्ज़त बरी हो जाए तो फिर वह रामराज्य काहे का?
ये सही है कि इस उम्र में आप जेल जाने से बच गये या अपराधी होने का कलंक नहीं लगा, मगर जब भी बाबरी मसजिद को याद किया जाएगा आप उसके विध्वंसक के रूप में चिन्हित ज़रूर किए जाएँगे। यह इतिहास में दर्ज़ हो चुका है, जनमानस में छप चुका है।
आपके दीर्घ जीवन की कामना के साथ-
एक अकिंचन पत्रकार
मुकेश कुमार
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