संयुक्त किसान मोर्चा अब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनाव में हुंकार भरने जा रहा है। इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकार है और 7 महीने बाद इन राज्यों में चुनाव होने हैं। किसानों की इस हुंकार की शुरुआत 5 सितंबर को मुज़फ्फरनगर से होगी, जहां इस दिन राष्ट्रीय महापंचायत रखी गई है।
हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान भी किसानों ने इन चुनावी राज्यों का दौरा किया था और बीजेपी को वोट न देने की अपील की थी।
यूपी-उत्तराखंड में होंगी बैठकें
संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में फ़ैसला लिया गया है कि 5 सितंबर की राष्ट्रीय महापंचायत से पहले अगस्त के महीने में उत्तर प्रदेश के हर जिले में बैठक की जाएंगी। महापंचायत के बाद उत्तर प्रदेश के 17 और उत्तराखंड के 2 मंडलों में अक्टूबर व नवंबर में बैठकें होंगी। इसे ‘मिशन यूपी-उत्तराखंड’ नाम दिया गया है। मोर्चा ने कहा है कि मोर्चा के नेता इस दौरान लोगों के बीच में पहुंचेंगे।
सभी राज्यों से आएंगे किसान
किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने दोहराया कि अगले कुछ महीनों में किसान ‘मिशन यूपी-उत्तराखंड’ में पूरी ताक़त के साथ जुटेंगे। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में इस आंदोलन को मज़बूत करना है। किसान नेता युद्धवीर सिंह ने कहा है कि किसानों की यह लड़ाई नवंबर, 2021 में बुलंदियों पर होगी और मुज़फ्फरनगर की महापंचायत में देश के सभी राज्यों के किसान संगठन भाग लेंगे।
किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहा कहते हैं कि हम लोगों को बताएंगे कि किसान पिछले आठ महीनों से दिल्ली के बॉर्डर्स पर बैठे हुए हैं और यह बात उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की बीजेपी सरकारों के ख़िलाफ़ माहौल बनाने का काम करेगी। किसान पिछले 7 महीने से दिल्ली के बॉर्डर्स पर कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे हैं।
संसद के सामने देंगे धरना
संयुक्त किसान मोर्चा ने यह भी कहा है कि 22 जुलाई से 200 लोगों की संख्या में हर दिन किसान संसद की ओर कूच करेंगे और यह क्रम संसद का सत्र चलने तक जारी रहेगा। मोर्चा के नेताओं ने कहा कि उनका यह कार्यक्रम पूरी तरह शांतिपूर्ण रहेगा और वे संसद के सामने धरना देंगे।
गर्म है सियासी माहौल
उत्तर प्रदेश के पश्चिमी और उत्तराखंड के तराई के इलाक़े में किसान आंदोलन के कारण सियासी माहौल ख़ासा गर्म है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के नेताओं का अपने ही गांवों में निकलना मुश्किल हो गया है और पंचायत चुनाव ने इस बात की तसदीक की है कि इस इलाक़े में बीजेपी की हालत ख़राब है जबकि 2013 के मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद से ही वह यहां वोटों की फसल काटती आ रही थी।
2022 की शुरुआत में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अलावा पंजाब में भी चुनाव होने हैं। पंजाब भी किसान आंदोलन के कारण उबल रहा है और वहां किसान कई बार बीजेपी के नेताओं का विरोध कर चुके हैं।
सिंघु बॉर्डर पर अधिकतर पंजाब के किसान बैठे हैं तो ग़ाजीपुर बॉर्डर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के तराई वाले इलाक़े के। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ से लेकर मथुरा, बाग़पत और बिजनौर, सहारनपुर से आगे जाकर उत्तराखंड के हरिद्वार और उधमसिंह नगर के इलाक़े आते हैं। इन सभी इलाक़ों में किसानों की अच्छी-खासी संख्या है और इस वजह से यहां कई किसान संगठन सक्रिय हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां 120 सीटें हैं वहीं हरिद्वार और उधमसिंह नगर जिलों में 20 सीटें हैं जो उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों का लगभग एक-तिहाई है।
दबाव में आएगी सरकार?
26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद से ही किसानों और सरकार के बीच बातचीत बंद है। क्या केंद्र सरकार किसानों की 5 सितंबर को होने वाली राष्ट्रीय महापंचायत के दबाव में आएगी। क्या वह उन्हें बिना शर्त बुलाएगी। किसान नेता राकेश टिकैत ने साफ कहा है कि मुज़फ्फरनगर की महापंचायत में किसान अपनी रणनीति का एलान करेंगे और तब तक सरकार के पास वक़्त बचा हुआ है।
ऐसा नहीं है कि बीजेपी को यह नहीं पता है कि किसान आंदोलन के कारण इन दोनों राज्यों की सत्ता उससे छिन सकती है। कोरोना की दूसरी लहर से पहले पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुई किसान महापंचायतों से उसे किसानों की ताक़त का अंदाजा लग चुका है।
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