शरद यादव के निधन को समाजवाद के संदर्भ में कैसे देखा जाएगा? क्या उन्हें लोहिया, जयप्रकाश, कर्पूरी ठाकुर की परंपरा का माना जाएगा या फिर जॉर्ज, लालू, मुलायम और नीतीश की? आख़िर समाजवादियों की साख क्यों ख़त्म हो गई? समाजवादियों ने सम्मान कैसे गँवा दिया? क्या देश में बढ़ती सांप्रदायिकता के लिए उनके अवसरवादी चरित्र को भी ज़िम्मेदार माना जा सकता है?