खांटी समाजवादी नेता शरद यादव के एक बार फिर से जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) में लौटने की जोरदार चर्चा है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि स्टेज सज चुका है और बस कभी भी शरद यादव की जेडीयू में फिर से एंट्री हो सकती है।
यहां बताना ज़रूरी होगा कि शरद यादव लंबे समय तक जेडीयू के अध्यक्ष रहे हैं लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के महागठबंधन को छोड़कर फिर से एनडीए के साथ जाने के कारण उन्होंने साल 2017 में पार्टी छोड़ दी थी और लोकतांत्रिक बहुजन दल का गठन किया था।
बिहार के सियासी गलियारों में इसे लेकर खासी गहमागहमी है क्योंकि शरद यादव के क़रीबी लोगों ने भी इसे लेकर हामी भरी है। कहा जा रहा है कि ख़ुद नीतीश कुमार ने फ़ोन पर शरद यादव से बात की है।
मांझी को महागठबंधन से तोड़ने के बाद नीतीश कुमार अगर शरद यादव को भी वापस लाने में सफल होते हैं, तो निश्चित रूप से यह उनकी बड़ी सियासी कामयाबी होगी।
यादव के पास है विशाल अनुभव
मूल रूप से मध्य प्रदेश से आने वाले शरद यादव ने बिहार को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाया। सात बार लोकसभा के सांसद रह चुके यादव ने पिछड़े वर्ग के नेताओं को राजनीति का ककहरा सिखाने वाले डॉ. राममनोहर लोहिया के साथ भी काम किया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव शायद ऐसे अकेले सांसद हैं जो तीन राज्यों से लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। बिहार के अलावा मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से भी वे सांसद रह चुके हैं।
यादव लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम के बाद इस बात को समझ चुके थे कि नीतीश का साथ छोड़ना उनके लिए सियासी फ़ायदे का सौदा नहीं रहा है और उन्हें अपने पुराने साथी के पास लौट जाना चाहिए।
महागठबंधन में अनदेखी
पुष्ट सूत्रों के मुताबिक़, कुछ महीने पहले ही शरद यादव ने जीतन राम मांझी, उपेन्द्र कुशवाहा और मुकेश सहनी से बातचीत शुरू कर विधानसभा चुनाव के लिए उन्हें महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव रखा था। इन तीनों नेताओं की इस मुद्दे पर बैठक भी हुई थी। इसे आरजेडी पर टिकट बंटवारे को लेकर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में भी देखा गया था। लेकिन आरजेडी इस मामले में तेजस्वी यादव के अलावा किसी के नाम पर विचार करने तक के लिए तैयार नहीं है।
ऐसे में शरद यादव को समझ आ गया था कि नीतीश कुमार के साथ रहने तक उनके पास जेडीयू के अध्यक्ष का तो पद था ही, वह राज्यसभा के सांसद भी थे। लेकिन महागठबंधन के साथ रहकर न तो वह अपनी लोकसभा सीट बचा सके और न ही राज्यसभा जाने की कोई उम्मीद दिखती है।
इसके अलावा न तो उनकी पार्टी को बिहार चुनाव में आरजेडी सम्मानजक सीटें देने के मूड में है। यादव की राज्यसभा सदस्यता भी जुलाई, 2022 तक ही है। ऐसे में फिर से राज्यसभा जाने के लिए उन्हें नीतीश के साथ की सख़्त ज़रूरत है।
इकनॉमिक टाइम्स (ईटी) के मुताबिक़, कुछ दिन पहले जब शरद यादव गुड़गांव के एक अस्पताल में भर्ती थे तब नीतीश कुमार के बेहद क़रीबी और जेडीयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने शरद यादव को फ़ोन किया था।
जेडीयू के प्रवक्ता राजीव रंजन ने ईटी से कहा कि अगर शरद यादव जेडीयू में वापस लौटते हैं तो इस पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि शरद यादव पुराने समाजवादी नेता हैं और महागठबंधन में रहकर घुटन महसूस कर रहे हैं।
कोरोना की महामारी के कारण विपक्ष के साथ ही सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के हमले झेल रहे नीतीश कुमार ने अपने सियासी अनुभव से बिहार का सियासी माहौल बदल दिया है। अगर नीतीश शरद यादव को पार्टी में वापस लाने में सफल रहते हैं तो निश्चित रूप से वह अपनी स्थिति काफ़ी मजबूत कर लेंगे क्योंकि शरद यादव के विशाल राजनीतिक अनुभव का भी लाभ उन्हें चुनाव में मिलेगा।
हाल के कुछ महीनों में नीतीश कुमार ने आरजेडी के कई विधायकों और नेताओं को तोड़कर भी उसे जोरदार झटका दिया है। ऐसे में कुछ महीने पहले तक परेशानियों से घिरे नज़र आ रहे नीतीश कुमार अब संभली हुई स्थिति में दिखते हैं।
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