राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव के साथ ही विपक्षी दलों का एक हिस्से की भी पोल खुल गई .कई विपक्षी नेताओं ने इन चुनाव में मोदी का साथ दिया है .ममता बनर्जी हों या सोरेन या फिर उद्धव ठाकरे .यूपी में ओम प्रकाश राजभर को तो चुनाव का नतीजा आते ही वाई श्रेणी की सुरक्षा भी मिल गई .आज की जनादेश चर्चा इसी पर .
राष्ट्रपति के चुनाव में विपक्ष एकजुट क्यों नहीं दिखा? राष्ट्रपति चुनाव के इतिहास में क्या विपक्ष कभी कभी एकजुट हुआ भी है? जानिए, यशवंत सिन्हा के मामले में विपक्ष का रवैया कैसा रहा।
बीजेपी के विधायक राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग न कर सकें, इसके लिए उन्हें कोलकाता के फाइव स्टार होटल में रखा गया है। महाराष्ट्र के शिवसेना गुट के बागी विधायकों को मुंबई के फाइव स्टार होटल में रखा गया है। सवाल है कि बीजेपी और अन्य पार्टियों को अब अपने विधायकों पर क्या जरा भी विश्वास नहीं रह गया है।
राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस के विधायकों की खरीद-फ़रोख्त और क्रॉस वोटिंग के आरोप बीजेपी नेताओं पर लगे हैं। मध्य प्रदेश के आदिवासी विधायक उमंग सिंघार ने अपने आरोपों में क्या कुछ और कहा है, जानिए।
यूपी में राष्ट्रपति चुनाव के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा को शुक्रवार को बड़ा झटका लगा। ओमप्रकाश राजभर की पार्टी ने द्रौपदी मुर्मू के समर्थन का ऐलान किया है। यूपी में राजभर की पार्टी अखिलेश यादव की सपा के साथ है। सपा ने सिन्हा का समर्थन किया है। राजभर के समर्थन से यूपी में मुर्मू और मजबूत हो गई हैं। राजभर के इस ऐलान से अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश और यूपी में विपक्ष की स्थिति क्या है।
बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए की राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के आदिवासी होने से विपक्षी दल भी उनके समर्थन में आ रहे हैं, लेकिन क्या ऐसी कोई यूएसपी विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा की है जिससे उनका समर्थन बढ़े?
कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति का उम्मीदवार उतारा, लेकिन अब इसी विपक्ष के कई दल बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करते क्यों नज़र आ रहे हैं?
आखिरकार शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी राष्ट्रपति पद की एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन कर दिया। पार्टी के 16 सांसदों ने सोमवार को उनसे स्पष्ट कह दिया था कि वो मुर्मू को समर्थन करना चाहते हैं। आखिरकार उद्धव को झुकना पड़ा।
शिवसेना प्रमुख उद्धव अगर द्रौपदी मुर्मू के नाम का समर्थन करते हैं तो उन्हें कांग्रेस और एनसीपी की नाराजगी का सामना करना होगा जबकि यशवंत सिन्हा का समर्थन करने पर उन्हें पार्टी के भीतर एक और बगावत का सामना करना पड़ सकता है।