राष्ट्रपति पद के लिए सत्ताधारी पक्ष की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का चुना जाना तय है। उनकी जगह भाजपा किसी और को भी उम्मीदवार बनाती तो उसके जीतने में भी कोई समस्या नहीं आती। लेकिन प्रतीकों की राजनीति करने में माहिर भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बना कर जहां एक ओर यह जताने की कोशिश की है कि वह आदिवासियों की परम हितैषी है, वहीं उसने इस बहाने विपक्षी खेमे में सेंध लगा कर कुछ क्षेत्रीय पार्टियों का समर्थन भी द्रौपदी मुर्मू के लिए हासिल कर लिया।

राष्ट्रपति चुनाव में कुछ विपक्षी दलों के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा क्या एनडीए की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू के सामने बेहद कमजोर पड़ गए हैं?
इसके अलावा सबसे बड़ी बात यह है कि उसने 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर ओडिशा, पश्चिम बंगाल और झारखंड में राजनीतिक जमीन को मजबूत करने का दांव भी चला है, क्योंकि इन राज्यों में संथाल जाति के आदिवासी बड़ी संख्या में निवास करते हैं और द्रौपदी मुर्मू भी इसी समुदाय से आती हैं।
लेकिन भाजपा के बरक्स विपक्षी पार्टियों ने अपने उम्मीदवार का चयन करने में ज्यादा सोच-विचार नहीं किया। ले-देकर उन्हें सिर्फ गोपाल कृष्ण गांधी का ही नाम याद आया, जो पिछली बार उप राष्ट्रपति के चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार थे। इस बार जब उन्होंने इनकार कर दिया तो एचडी देवगौडा, शरद पवार और फारुक अब्दुल्ला जैसे निस्तेज नामों पर विचार किया गया था लेकिन इन तीनों ने भी जब इनकार कर दिया तो ममता बनर्जी के सुझाव पर उनकी पार्टी के नेता यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बना दिया गया।