पिछड़ों के दम पर उत्तर प्रदेश में सत्ता में आई बीजेपी अब आरक्षण में वर्गीकरण कर यादवों और कुर्मियों को छाँटने की तैयारी में है। राघवेंद्र समिति की रिपोर्ट में ऐसा प्रावधान किया गया है। पिछड़ा वर्ग को दिए जाने वाले 27 फीसदी आरक्षण को वर्गीकृत करने के लिए प्रदेश की योगी सरकार ने यह समिति गठित की थी। समिति की रिपोर्ट में माना गया है कि इस कोटे का सबसे ज़्यादा लाभ यादवों और कुर्मियों को मिला है लिहाज़ा उनका कोटा घटा देना चाहिए। अब सरकार में शामिल ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने भी योगी सरकार से पिछड़ा वर्ग आरक्षण में कोटा लागू करने की माँग तेज कर दी है।
सरकार के पास मौजूद इस रिपोर्ट के मुताबिक़ ओबीसी आरक्षण को 3 भागों में विभाजित किया गया है। रिपोर्ट में यादव-कुर्मी समेत 9 जातियों को 7 फ़ीसदी आरक्षण का ज़िक्र है। अति पिछड़ा वर्ग में गिरी, गूजर, गोंसाई, लोध, कुशवाहा, कुम्हार, माली, लोहार समेत 65 जातियों को 11 प्रतिशत और मल्लाह, केवट, निषाद, राई, गद्दी, घोसी, राजभर जैसी 95 जातियों को 9 प्रतिशत आरक्षण की सिफ़ारिश की गई है।
रिपोर्ट जल्द लागू करने का दबाव
रिपोर्ट आ जाने के बाद अब योगी सरकार पर इसे लागू करने का दबाव बढ़ेगा। बीजेपी नेताओं का कहना है कि उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ी जातियों ख़ासकर लोध, राजभर, मुराव, गूजर, गोंसाई, कुशवाहा, गड़ेरिया, कुम्हार, तेली समाज के नेताओं की ओर से रिपोर्ट लागू करने का दबाव है। लेकिन बीते लोकसभा व विधानसभा चुनावों में पार्टी के साथ खुल कर खड़ा हुआ कुर्मी समाज इसके विरोध में है। माना जाता है कि अहीरों-यादवों के अलावा सुनार, कुर्मी, जाट, बरई, हलवाई और तमोली समाज के लोग, जो सामाजिक इन्जीनियरिंग की राजनीति के चलते पार्टी के साथ आए हैं, वे आरक्षण में वर्गीकरण की कोशिश से पार्टी से नाराज़ हो सकते हैं।
पर क्या सरकार भी जल्दी में?
जहां अहीरों व कुर्मियों से इतर जातियों के संगठनों ने जल्दी से जल्दी इस रिपोर्ट को विधानसभा में रख कर आरक्षण के वर्गीकरण करने की मांग की है, वहीं सरकार इस मामले पर फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहती है। बीजेपी के एक उच्च पदस्थ नेता के मुताबिक़ विधानसभा के शीतकालीन सत्र में तो रिपोर्ट रखे जाने की संभावना न के बराबर है। विधानसभा का शीतकालीन सत्र महज चार दिनों के लिए बुलाया गया है और कार्य मंत्रणा सूची में इस रिपोर्ट का कोई ज़िक्र नहीं है।
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