जिस मणिपुर में इस महीने की शुरुआत से ही बड़े पैमाने पर हिंसा हो रही थी वहाँ अब बड़े पैमाने पर शांति लाने का प्रयास किया शुरू किया गया है। देश के गृहमंत्री अमित शाह मणिपुर पहुँचे। अलग-अलग समूहों और समुदायों से मिले। मेइती व कुकी रिलीफ़ कैंपों में पहुँचे। एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के नेतृत्व में एक जांच की घोषणा की गई है। और इस बीच अब केंद्र ने मणिपुर के मौजूदा पुलिस प्रमुख की जगह नये प्रमुख की नियुक्ति की है।
मणिपुर हिंसा में 3 मई से कम से कम 80 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए। समय समय पर आ रही हिंसा की ख़बरों के बीच ही मणिपुर में पुलिस नेतृत्व में बड़ा फेरबदल किया गया है। त्रिपुरा कैडर के एक भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी राजीव सिंह को राज्य पुलिस का नया महानिदेशक यानी डीजीपी नियुक्त किया गया है।
राजीव सिंह पहले केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल यानी सीआरपीएफ के महानिरीक्षक थे। उनको 29 मई को केंद्र से मणिपुर में एक अंतर-कैडर प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया था। वर्तमान डीजीपी पी डौंगेल को गृह विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया है।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार इस क़दम को गृह मंत्रालय द्वारा गैर-आदिवासी, गैर-मेइती पुलिस प्रमुख को लाकर संतुलन करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। समझा जाता है कि इसका उद्देश्य किसी भी संभावित विवाद से बचना है और शांति के प्रयास को आगे बढ़ाना है।
जातीय संघर्ष में अब तक कम से कम 80 लोग मारे जा चुके हैं। क़रीब महीने भर से जारी इस हिंसा को रोकने के लिए सेना तक को बुलाना पड़ा, इंटरनेट को बंद करना पड़ा, कर्फ्यू लगाना पड़ा और राहत शिविर तक स्थापित करने पड़े।
अमित शाह ने कहा, 'उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक न्यायिक जांच की जल्द ही घोषणा की जाएगी। उन्होंने कहा कि शांति समिति मणिपुर के राज्यपाल अनुसुइया उइके के अधीन होगी। इसमें सभी राजनीतिक दलों, कुकी और मेइती दोनों समुदायों और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
गृह मंत्री ने मणिपुर में हिंसा के पीछे पांच आपराधिक साजिशों और एक सामान्य साजिश की केंद्रीय जांच ब्यूरो जांच की योजना का भी खुलासा किया। उन्होंने स्थिति के जल्द ही सामान्य होने की उम्मीद जताई।
हिंसा की वजह क्या?
दरअसल, हुआ यह कि इंफाल घाटी में उपलब्ध भूमि और संसाधनों में कमी और पहाड़ी क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों द्वारा भूमि खरीदने पर प्रतिबंध के कारण 12 साल पहले मेइती के लिए एसटी का दर्जा मांगने की मांग उठी थी। मामला मणिपुर हाई कोर्ट पहुँचा। इस साल 19 अप्रैल को मणिपुर उच्च न्यायालय ने भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को एसटी सूची में मेइती को शामिल करने पर विचार करने के लिए केंद्र को सिफारिशें देने और अगले चार सप्ताह के भीतर मामले पर विचार करने का निर्देश जारी किया था।
इस बीच संरक्षित वनों में राज्य सरकार द्वारा किए गए भूमि सर्वेक्षण को लेकर कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में तनाव बढ़ रहा था। हाल ही में राज्य सरकार ने चुराचंदपुर-खौपुम संरक्षित वन क्षेत्र में एक सर्वेक्षण किया था। आरोप है कि उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की राय लिए बिना और उन्हें बेदखल करने के इरादे से सर्वेक्षण किया गया। स्थानीय लोगों को डर था कि इस अभियान का उद्देश्य उन्हें जंगलों से बेदखल करना है, जहां वे सैकड़ों वर्षों से रह रहे हैं। यही वजह है कि 27 अप्रैल को मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के व्यायामशाला और खेल परिसर का उद्घाटन करने के लिए उनके दौरे से एक दिन पहले चुराचंदपुर में एक भीड़ ने मुख्यमंत्री के कार्यक्रम स्थल में आग लगा दी थी।
मणिपुर की क्या है स्थिति
मणिपुर मुख्य तौर पर दो क्षेत्रों में बँटा हुआ है। एक तो है इंफाल घाटी और दूसरा हिल एरिया। इंफाल घाटी राज्य के कुल क्षेत्रफल का 10 फ़ीसदी हिस्सा है जबकि हिल एरिया 90 फ़ीसदी हिस्सा है। इंफाल घाटी के इन 10 फ़ीसदी हिस्से में ही राज्य की विधानसभा की 60 सीटों में से 40 सीटें आती हैं। इन क्षेत्रों में मुख्य तौर पर मेइती समुदाय के लोग रहते हैं।
आदिवासियों की आबादी लगभग 40% है। वे मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं जो मणिपुर के लगभग 90% क्षेत्र में हैं। आदिवासियों में मुख्य रूप से नागा और कुकी शामिल हैं। आदिवासियों में अधिकतर ईसाई हैं जबकि मेइती में अधिकतर हिंदू। आदिवासी क्षेत्र में दूसरे समुदाय के लोगों को जमीन खरीदने की मनाही है। लेकिन इस बीच कुछ बदलावों ने समुदायों के बीच तनाव को बढ़ा दिया।
अपनी राय बतायें