पहली बार सौरव गांगुली जैसे ‘बंगाल के टाइगर’ की टक्कर ‘दिल्ली के बब्बर शेर’ से हुई है। पहली बार गांगुली को सरेआम किसी दिग्गज खिलाड़ी ने इतनी बुरी तरह से झकझोरा है। आप कह सकते हैं कि ग्रेग चैपल ने भी तो 2005 में यही किया था लेकिन वो भारतीय नहीं थे। लेकिन, विराट कोहली ना सिर्फ़ भारतीय हैं बल्कि गांगुली की तरह टीम इंडिया के लिए दिग्गज कप्तानों की श्रेणी में भी हमेशा गिने जायेंगे।
गांगुली की तरह कप्तान के तौर पर टेस्ट क्रिकेट में तमाम उपलब्धियों के बावजूद वो भी वर्ल्ड कप जीतने में नाकाम रहे हैं। लेकिन, बल्लेबाज़ के तौर पर कोहली का दर्जा गांगुली से निश्चित तौर पर बड़ा है। लेकिन, गांगुली ने जिस तरीक़े से बड़े से बड़े विवादों से आसानी से निकलकर वापसी की, उसकी तुलना में विराट के पास सिर्फ़ अनिल कुंबले वाला एपिसोड ही है जहाँ उन्होंने खुलेआम भारतीय क्रिकेट के हर दिग्गज की अवहेलना की और सब पर भारी भी पड़े।
लेकिन, अहम सवाल ये है कि अब फिर से इस नई जंग में कौन जीतेगा? कोहली ने अपनी बेबाक प्रेस कांफ्रेंस से न सिर्फ करोड़ों की संख्या में सोशल मीडिया में हिट्स पाये बल्कि वह बहुत सारे आलोचकों की सहानुभूति भी हासिल करने में कामयाब रहे।
ऐसा माना जा रहा था कि गांगुली आग-बबूला हो चुके थे और तुरंत प्रेस कांफ्रेंस करके पलटवार करना चाहते थे। दरअसल, गांगुली तो आक्रामकता दिखाने के मामले में कोहली के आदर्श रहे हैं तो ऐसे में ये बिल्कुल चौंकाने वाला फ़ैसला नहीं था। लेकिन, गांगुली फ़िलहाल बीसीसीआई के अध्यक्ष भी हैं। वो इस बात को भूल रहे थे लेकिन युवा सचिव जय शाह ने उन्हें सही समय पर रोका। ऐसा माना जा रहा है कि शाह ने उन्हें समझाया-बुझाया और ये कहा कि फ़िलहाल सार्वजनिक तौर पर ये तू-तू मैं-मैं सिर्फ और सिर्फ बोर्ड की छवि का ही नुक़सान करेगी। न चाहते हुए भी गांगुली को ख़ून का घूँट फ़िलहाल पीकर चुप रहना पड़ा है।
लेकिन, जो कोई गांगुली को कप्तान और प्रशासक के तौर पर जानता है वो इस बात से कहाँ इंकार कर सकता है कि गांगुली को शांत करना इतना आसान नहीं है। अगर दादा ने ठान ली, तो विराट को इसका खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा। विराट भी शायद इस बात को बखूबी जानते हैं। उन्होंने इशारों ही इशारों में यह कहने की कोशिश की है कि उन्हें हाल के महीने में बोर्ड की तरफ से वो समर्थन नहीं मिल पा रहा है।
विराट ये भी जानते हैं कि अगर साउथ अफ्रीका में वो बल्लेबाज़ और कप्तान दोनों के तौर पर नाकाम होते हैं तो टेस्ट क्रिकेट से उनकी कप्तानी जानी तय है।
एक बात और आपको बता दूँ कि फ़िलहाल पूरी बीसीसीआई कोहली के रवैये से इतना नाराज़ है कि अगर कोहली सिर्फ़ बल्लेबाज़ के तौर पर टेस्ट सीरीज़ में नाकाम रहते हैं, भले ही टीम टेस्ट सीरीज़ क्यों ना जीत ले, उन्हें एक बल्लेबाज़ के तौर पर बाहर किया जा सकता है! बिल्कुल सही पढ़ा आपने, कोहली की टेस्ट टीम से छुट्टी भी हो सकती है।
बोर्ड को अब कोहली को उनका कद बताने के लिए बस एक और नाकामी की ज़रूरत है। हां, बोर्ड की दलील ये हो सकती है कि कोहली को आराम दिया गया है या फिर कोई और बहाना गढ़ा जा सकता है।
बीसीसीआई में सब कुछ कितनी तेज़ी से कोहली के ख़िलाफ़ बदल रहा है कि ये बात कोहली को भी पता है। कोहली अपने टेस्ट करियर का 100वाँ मैच केपटाउन में खेलेंगे। य़े उनके करियर का एक शानदार लम्हा होगा। कोहली दरअसल चाहते थे कि वो ये मैच बैंगलोर के चिन्नास्वामी स्टेडियम में, जो श्रीलंका के ख़िलाफ़ 2022 की शुरुआत में होने वाली है, में खेलें लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा।
कोहली को इस बात का अंदेशा था, और वो कानपुर टेस्ट न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ खेलना चाहते थे ताकि केपटाउन में वो अपना 99वां खेल पायें। लेकिन, चयनकर्ताओं ने उन्हें पहले टेस्ट के लिए आराम करने दिया।
ख़ैर, पूरे प्रकरण में एक बात तो साफ़ उभरकर सामने आयी है कि गांगुली के कद को झटका लगा है। लेकिन, क्या सिर्फ गांगुली को विराट के एक ब्यान के आधार पर झूठा या फिर राजनीतिज्ञ मान लेना सही आकलन होगा?
शायद नहीं। कोहली की प्रेस कांफ्रेंस के बाद मुझे भी ऐसा लगा कि उनका वर्ज़न ही सही है लेकिन 2-3 पूर्व खिलाड़ियों ने बताया कि मामला इतना पेचीदा है कि इस पर एकदम से ठोस राय नहीं बनायी जा सकती है।
इन खिलाड़ियों का एक तर्क बड़ा शानदार है। उनका कहना है कि एक साथी खिलाड़ी और कप्तान के तौर पर शायद द्रविड़ को दादा से सबसे ज़्यादा परेशानी हुई होगी। उन दोनों के बीच कई बार तकरार और तनाव की बातें भी दबी ज़ुबां में आयीं बावजूद इसके दोनों का एक-दूसरे के प्रति सम्मान वही है। दोनों जानते हैं कि वो भारतीय क्रिकेट के हित में हमेशा सोचते हैं भले ही ऐसा करने का तरीक़ा दोनों का अलग अलग क्यों ना रहा हो। और यही वजह है कि जिस द्रविड़ को कोच पद के लिए कोई भी मना नहीं सकता था उनको दादा ही फिर से ड्रेसिंग रूम में वापस लेकर आये।
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द्रविड़ और गांगुली की ही तरह कोहली और रोहित शर्मा की भारतीय क्रिकेट के प्रति निष्ठा पर बिलकुल संदेह नहीं किया जा सकता है। ये बिलकुल बचकानी बातें हैं कि एक की कप्तानी में दूसरा खेलना नहीं चाहता है, और अगर खेलना पड़ा तो वो अपना सौ फ़ीसदी नहीं देगा। ये बिल्कुल बेबुनियाद और मनगढ़त बातें हैं। भारतीय क्रिकेट में दिग्गज खिलाड़ियों के बीच शख्सियत का टकराव कोई नई बात नहीं, क्योंकि ऐसा 1932 से होता आ रहा है लेकिन जब कभी किसी खिलाड़ी ने टीम हित को प्राथमिकता नहीं दी तो उनका पत्ता ही टीम से कट गया।
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