ओवल टेस्ट में जीत के बाद अगर क्रिकेट के जानकार और फैंस किसी एक बात पर बिलकुल एकजुट नहीं दिखे तो वो था मैन ऑफ़ द मैच के लिए रोहित शर्मा का चयन। ऐसा नहीं है कि रोहित को इस पुरस्कार के मिलने से किसी को नाराज़गी या आपत्ति थी लेकिन बहुत लोगों का यह मानना था कि रोहित के साथी खिलाड़ी जो मुंबई में उनके साथ बचपन से क्रिकेट खेलते आ रहें हैं, वो भी प्लेयर ऑफ़ द मैच होने के बराबर के हक़दार थे।
शायद शार्दुल ठाकुर को इस पुरस्कार के लिए नज़रअंदाज़ करने की वजह इंग्लैंड के टीवी चैनल स्काई स्पोर्ट्स के पैनल में नासिर हुसैन और माइकल एथर्टन समेत दिग्गज बल्लेबाज़ों का होना एक बड़ी वजह रही हो जिनके वोट से ही इस पुरस्कार का चयन होता है। बहरहाल, इस बात में शायद ही कोई बहस हो कि रोहित और शार्दुल का योगदान किसी भी तरह से एक–दूसरे से कम था।
ठाकुर ने कर दिखाया...
ठाकुर ने ओवल में बहुत ज़्यादा विकेट तो नहीं लिए लेकिन जो लिए वो बेहद क़ीमती रहे। मैच के संदर्भ में। अगर पहली पारी में उन्होंने इंग्लैंड के लिए सर्वाधिक रन बनाने वाले ऑली पॉप का विकेट झटका तो दूसरी पारी में मेज़बान की शतकीय सलामी जोड़ी वाली साझेदारी को पाँचवें दिन सुबह तोड़ा। यानी जीत की बुनियाद रखी। इसके बाद भी इंग्लैंड के लिए मैच को ड्रॉ करने की उम्मीदें ज़िंदा थीं क्योंकि कप्तान जो रुट जमे हुए थे और पूरी सीरीज़ में भारतीय गेंदबाज़ों के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बने थे। लेकिन, ठाकुर ने उन्हें भी लंच के बाद वाले सत्र में चलता कर दिया। जीत के बाद जिस तरह से कप्तान विराट कोहली ने ठाकुर को अलग और भावनात्मक अंदाज़ में गले से लगाया उससे यह साफ़ था कि ये हरफनमौला खिलाड़ी अपने कप्तान के लिए कितना ख़ास है।
दो दोस्तों का दिलचस्प सफर
लंदन के ओवल मैदान में ओपनर रोहित शर्मा और ऑलराउंडर ठाकुर का इस जंक्शन पर मिलना और उसके बाद भारतीय इतिहास की सबसे यादगार जीतों में से एक में योगदान देना अपने आप में एक दिलचस्प इत्तेफाक़ है। युवा किशोर के तौर पर इन दोनों ने क्लब स्तर से जो शुरुआत मुंबई के ओवल मैदान से की उन्होंने अपने करियर का महानतम क्षण लंदन के ओवल में साथ-साथ जिया। अगर रोहित ने बेहद दबाव और चुनौतीपूर्ण समय में बेशक़ीमती 127 रन बनाये तो ठाकुर ने दोनों पारियों में निर्णायक अर्धशतक जमाते हुए मैच में 117 रन का योगदान दिया। बल्ले और गेंद से मुंबई के इन दोनों खिलाड़ियों ने साबित किया कि अब कोई भी उनके खेल को टेस्ट क्रिकेट में संदेह की निगाहों से ना देखे।
34 साल के रोहित ने इससे पहले टेस्ट क्रिकेट में यूँ तो 7 शतक जमाये थे लेकिन ओवल के शतक के आगे वो सातों फीके ही साबित होते। अब उम्मीद की जा सकती है कि आलोचक रोहित की क़ाबिलियत पर ऊँगली नहीं उठायेंगे। और ऐसा ही ठाकुर के साथ भी होना चाहिए।
क्या आपको याद है कि किस तरह से पिछले साल ब्रिसबेन टेस्ट के दौरान ठाकुर ने 67 रनों की पारी खेली और मैच में कुल 7 विकेट लेकर भारत को हारा मैच ही नहीं जिताया बल्कि ऑस्ट्रेलियाई क़िले को भी ध्वस्त किया। इसके बावजूद इंग्लैंड दौरे पर ठाकुर टीम में स्वाभाविक चयन नहीं माने जाते थे। उनसे बेहतर ऑलराउंडर या तो रविंद्र जाडेजा और यहाँ तक कि अश्विन को भी कह दिया जाता था। लेकिन, ठाकुर ने अपने छोटे से ही टेस्ट करियर में दिखा दिया है कि वो भले ही कपिल देव और यहाँ तक कि इरफान पठान जैसे ऑलराउंडर ना हों लेकिन हार्दिक पंड्या से बेहतर ज़रूर हो सकते हैं जिस पर कोहली और रवि शास्त्री की जोड़ी ने पिछले कुल सालों में काफ़ी निवेश किया था।
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मुंबई लोकल ट्रेन में सफर...
पूरे करियर में, ख़ासतौर पर टेस्ट क्रिकेट में रोहित को अक्सर आलोचनाओं के दौर से गुज़रना पड़ा लेकिन वो भाग्यशाली थे कि भारतीय क्रिकेट ने उन पर कभी भी भरोसा नहीं खोया, भले ही खरा उतरने के लिए उन्हें 43 टेस्ट मैचों का इंतज़ार ही क्यों न करवाना पड़ा। वहीं ठाकुर भी भाग्यशाली हैं कि वो उस दौर में टेस्ट क्रिकेट खेल रहे हैं जहां कोहली जैसा कप्तान आपके खेल के कौशल से ज़्यादा खुद पर भरोसा और बड़ा जिगरा रखने को ज़्यादा अहमियत देता है।
ऑस्ट्रेलिया के गाबा में टीम इंडिया जब 186-7 के स्कोर पर जूझ रही थी तो ठाकुर ने 67 रन से मैच और सीरीज़ का नतीजा ही पलट दिया। ओवल में पहले दिन जब टीम इंडिया 127-7 के स्कोर पर बुरी तरह से जूझ रही थी तो उनके 57 रनों ने मैच में 157 रन की जीत की बुनियाद डाली।
करीब दो दशक के क्रिकेट सफर में मुंबई के रोहित और ठाकुर को एक बात और जोड़ती है। मुंबई के लोकल ट्रेन में सफ़र करते हुए दोनों ने मध्यवर्गीय परिवारों के संघर्ष और त्याग को क़रीब से देखा लेकिन क्रिकेट में वो सिर्फ़ सफेद गेंद में ही अपना लोहा मनवा पाये। उन्हें छोटे फॉर्मेट का बढ़िया खिलाड़ी ही माना गया। लेकिन, पिछले 5 सालों में रोहित ने भारत के लिए सफेद गेंद में ऐसी कामयाबी हासिल की कि उन्हें बार बार टेस्ट क्रिकेट में नाकामी के बावजूद मौक़ा देना ही पड़ा। ठाकुर को अपने पहले टेस्ट में सिर्फ़ 10 गेंद डालने का ही मौक़ा मिला और उसके बाद वो अगले तीन साल तक लाल गेंद का मुँह भी नहीं देख पाये। लेकिन, 37 अंत्तराष्ट्रीय मुक़ाबलों के बाद आख़िरकार अब ठाकुर भी लाल गेंद में अपना लोहा मनवा चुके हैं।
धोनी और आईपीएल फैक्टर का योगदान
दोनों दोस्तों को इस मुकाम पर लाने में धोनी और आईपीएल फैक्टर का योगदान भी कोई कम नहीं है। अगर रोहित को मुंबई इंडियंस की कप्तानी ने उनकी बल्लेबाज़ी में एक नया ठहराव और परिपक्वता दी तो ठाकुर ने भी दबाव वाले लम्हों में अपने कौशल से एम एस धोनी जैसे धुरंधर कप्तान को अपना मुरीद बना लिया जो आईपीएल में उनके कप्तान भी थे। भारत की कप्तानी करते हुए धोनी ने हमेशा रोहित पर अटूट भरोसा बनाये रखा और चेन्नई सुपर किंग्स की कप्तानी करते हुए वो ठाकुर पर भी ऐसा ही भरोसा रखते नज़र आये। दुबई में फ़िलहाल आईपीएल के लिए अभ्यास में जुटे गुरु धोनी को अपने दो एकलव्यों पर काफ़ी नाज़ हो रहा होगा क्योंकि तमाम कामयाबी के बावजूद कई पारंपरिक जानकार धोनी को शुरुआती दिनों में न तो टेस्ट विकेटकीपर बल्लेबाज़ और न ही टेस्ट कप्तान के तौर पर स्वीकार कर पाये थे। लेकिन जो धोनी ने किया वो इतिहास है और जो रोहित और ठाकुर ने किया वो भी इतिहास है।
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