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आईपीएल : ‘विराट-कप्तानी’ युग के अंत की शुरुआत ‘पंत-प्रभुत्व’ के अध्याय से?

पिछले 13 सीज़न में दिल्ली के पास एक से बढ़कर एक कप्तान (वीरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर, माहेला जयावर्द्धने) और दिग्गज खेले, लेकिन यह टीम चैंपियन कभी नहीं बन पाई। पिछले साल दिल्ली ने श्रेयस अय्यर की कप्तानी में दिलेर खेल दिखाया और कप जीतने की उम्मीदें भी जगायीं। अब पंत को अपनी टीम को वह आखिरी सीढ़ी चढ़ानी है।
विमल कुमार

साल 2008 से लेकर 2012 तक पाँच साल के दौरान मुंबई इंडियंस ने सचिन तेंदुलकर से लेकर रिकी पोंटिंग तक को कप्तानी की ज़िम्मेदारी दी, लेकिन दोनों दिग्गजों में से कोई भी टीम को ख़िताब नहीं जीता पाया। एक साल मौका तो हरभजन सिंह को भी दिया गया, लेकिन जैसे ही पोंटिंग ने अचानक ही ख़राब फॉर्म के चलते कप्तानी से हटने का फ़ैसला किया और बागडोर रोहित शर्मा को दे दी, तो ना सिर्फ मुंबई की किस्मत बदली बल्कि आईपीएल में एक नया इतिहास भी रच दिया गया।

अब तक रोहित की कप्तानी में यह टीम सबसे ज़्यादा 5 बार ट्रॉफी जीत चुकी है। रोहित की बल्लेबाज़ी में एक अलग तरह का निखार तो आया ही है उनकी कप्तानी ने हर किसी को इस कदर प्रभावित किया कि वह विराट कोहली के तगड़े विकल्प के तौर पर देखे जाने लगे। 

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कप्तान ऋषभ पंत

2013 में पोंटिंग ने कप्तान के तौर पर रोहित के लिए जैसा फ़ैसला लिया 2021 में डेलही कैपटिल्स के कोच के तौर पर उन्होंने एक बार फिर से वही रवैया अपनाया। इस बार रोहित की बजाए पोंटिंग ने ऋषभ पंत को भारतीय क्रिकेट का भविष्य और कप्तानी का दावेदार मनाते हुए इस सीज़न कैपिटल्स की कप्तानी दिलवायी है।

तब पोंटिंग ने हरभजन समेत कई और सीनियर खिलाड़ियों को नज़रअंदाज़ किया था तो आज रविचंद्रन अश्विन और अंजिक्या रहाणे जैसे सीनियर से ज़्यादा अहमियत पोटिंग ने पंत को दी है। 

सवाल यह है कि क्या ऋषभ पंत दिल्ली के लिए वह कर पायेंगे जो रोहित शर्मा ने 2013 में मुंबई के लिए किया था?

पिछले 13 सीज़न में दिल्ली के पास एक से बढ़कर एक कप्तान (वीरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर, माहेला जयावर्द्धने) और दिग्गज खेले, लेकिन यह टीम चैंपियन कभी नहीं बन पाई। पिछले साल दिल्ली ने श्रेयस अय्यर की कप्तानी में दिलेर खेल दिखाया और कप जीतने की उम्मीदें भी जगायीं। अब पंत को अपनी टीम को वह आखिरी सीढ़ी चढ़ानी है।

लेकिन, अगर पंत के लिए साल 2021 को देखें तो उन्होंने वह हर काम किया है जिसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था।

ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ टेस्ट सीरीज़ में अगर टीम इंडिया 36 पर ऑल आउट ना हुई होती तो पंत को मेलबर्न में मौका ही नहीं मिलता और ना ही वह सिडनी और ब्रिसबेन में हैरतअंगेज पारियाँ खेल पाते। 

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सफेद गेंद का खेल

साल 2019 के वर्ल्ड कप में पंत को तो पहले चुना ही नहीं गया और जब शिखर धवन को चोट लगी तो जैसे-तैसे वह 4 नंबर पर बल्लेबाज़ी करने पहुँचे। लेकिन, उस साल सफेद गेंद में खेले गये 21 मैचों में सिर्फ एक अर्धशतक ने पंत को पिछले साल ऑस्ट्रेलिया दौरे पर सफेद गेंद के मैचों से दूर रखा। 

लेकिन, इस साल के शुरुआत में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ पंत सफेद गेंद की क्रिकेट में इस कदर छाये कि उन्होंने के. एल. राहुल जैसे विकेटकीपर बल्लेबाज़ को ना सिर्फ पीछे किया बल्कि लोगों को यह कहने पर मजबूर किया कि कीपिंग को छोड़ भी दें तो सिर्फ बल्लेबाज़ी के बूते यह लड़का किसी भी प्लेइंग इलेवन का हिस्सा होना चाहिए। ऐसी बात तो महेंद्र सिंह धोनी के लिए भी कभी-कभी ही कही जाती थी। 

वैसे पंत को इस बात की आदत हो चुकी है कि जब जब उनके खेल की चर्चा होगी, धोनी के साथ उनकी तुलना ज़रूर होगी। शुरुआती दौर में ऐसा हुआ भी और किसी भी युवा की तरह पंत भी दबाव में और परेशान दिखे, क्योंकि एक दिग्गज से कभी किसी युवा की तुलना सही नहीं।

पिछले कुछ महीनों में ऋषभ पंत ने दिखा दिया है कि उनके बारे में जो लोग यह मानते थे कि विराट कोहली के बाद वह भारतीय टीम के अगल सबसे बड़े सुपर स्टार हैं, वे ग़लत नहीं थे।

परीक्षा की घड़ी

लेकिन, पंत के लिए परीक्षा की घड़ी आईपीएल में कप्तान के तौर पर कामयाबी से ही शुरू होती है। यहाँ अगर धोनी ने 3 ख़िताब जीते हैं तो कोहली को 8 साल में एक बार भी ट्रॉफ़ी नसीब नहीं हुई है। टीम इंडिया के लिए तमाम कामयाबी हासिल करने के बावजूद यह बात अक्सर कोहली के ख़िलाफ़ जाती है कि अगर उनकी कप्तानी में वाकई में दम है तो वो रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर को ख़िताब़ क्यों नहीं जीता पाते हैं। 

पंत के लिए इस बार दुहरी चुनौती है। पिछली बार वह बल्लेबाज़ के तौर पर उतने ना तो आक्रामक हो पाये थे और ना ही ख़ास रन जुट पाये थे।

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अब 23 साल की उम्र में उनके अंडर में शिखर धवन (जो उनके सोनेट क्लब के सीनियर हुआ करते थे और पंत अक्सर नैट्स पर धवन को बल्लेबाज़ी करते देख काफी बातें सीखते थे), अश्विन और रहाणे जैसे खिलाड़ी खेलेंगे। अगर पंत पहले बल्लेबाज़ और फिर कीपर के तौर पर शानदार खेल दिखाते है तो इसका सकारात्मक असर उनकी कप्तानी पर भी देखने को मिल सकता है। 

और अगर दिल्ली की टीम उनकी अगुवाई में पहली बार ट्रॉफी जीतती है तो ‘विराट-कप्तानी’ युग के अंत की शुरुआत पंत के प्रभुत्व का असली अध्याय भी आईपीएल 2021 से हो सकती है।

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