खेल मंत्रालय द्वारा भारतीय कुश्ती महासंघ की नवनिर्वाचित संस्था को निलंबित किए जाने के कुछ ही दिनों बाद भारतीय ओलंपिक संघ ने महासंघ के मामलों को देखने के लिए बुधवार को एक अस्थायी पैनल बनाया है। नयी बनायी गयी यह एड हॉक कमिटी ही अब अस्थायी तौर पर महासंघ का कामकाज देखेगी।
समिति का नेतृत्व वुशू एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह बाजवा करेंगे। इसमें ओलंपियन एमएम सोमाया और पूर्व अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी मंजूषा कंवर भी शामिल होंगी।
भारतीय ओलंपिक संघ यानी आईओए की अध्यक्ष पीटी उषा ने कहा, 'आईओए को हाल ही में पता चला है कि हाल ही में नियुक्त अध्यक्ष और डब्ल्यूएफआई के अधिकारियों ने इसके संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए और आईओसी द्वारा समर्थित सुशासन के सिद्धांतों के खिलाफ मनमाने फैसले लिए हैं और उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना आईओए के फैसलों को पलट दिया है। एड हॉक कमिटी नियुक्त की गई।'
उन्होंने कहा, 'चूँकि आईओए निष्पक्ष खेल, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने और आईओसी द्वारा समर्थित खिलाड़ियों के हितों की रक्षा करने और निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए मानदंडों के पालन को अहम मानता है, इसलिए एक एड हॉक कमिटी नियुक्त करने का निर्णय लिया गया है…।'
खेल मंत्रालय ने कहा था कि राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की घोषणा जल्दबाजी में की गई और उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
मंत्रालय ने पूर्व प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के करीबी सहयोगी संजय सिंह की अध्यक्षता वाली नई डब्ल्यूएफआई समिति पर 'स्थापित कानूनी और प्रक्रियात्मक मानदंडों के प्रति घोर उपेक्षा' करने का आरोप लगाया गया।
गुरुवार को बीजेपी सांसद बृजभूषण द्वारा समर्थित और संजय सिंह के नेतृत्व वाले पैनल ने विवादास्पद परिस्थितियों में हुए चुनावों के बाद डब्ल्यूएफआई का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया था। चुनाव संजय सिंह की जीत के बाद बृजभूषण ने कहा था- 'दबदबा है और दबदबा रहेगा'। खेल मंत्रालय ने कहा था, 'फेडरेशन का काम पूर्व पदाधिकारियों द्वारा नियंत्रित परिसर से चलाया जा रहा है। यह कथित तौर पर वही परिसर भी है जिसमें खिलाड़ियों के यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया है और वर्तमान में अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही है।'
इसके अलावा संजय सिंह के अंडर-15 और अंडर-20 राष्ट्रीय चैंपियनशिप बृजभूषण के क्षेत्र गोंडा में आयोजित करने के फ़ैसले ने भी मंत्रालय को नाराज़ किया। बयान में कहा गया, 'यह घोषणा जल्दबाजी में की गई है, उन पहलवानों को पर्याप्त सूचना दिए बिना, जिन्हें उक्त राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेना है और डब्ल्यूएफआई के संविधान के प्रावधानों का पालन किए बिना है।' खेल मंत्रालय ने कहा कि कार्यवाही में अध्यक्ष की पूरी मनमानी की बू आती है, जो सुशासन के स्थापित सिद्धांतों के खिलाफ है और पारदर्शिता और उचित प्रक्रिया का अभाव है।
बता दें कि संजय सिंह की नियुक्ति का पहलवान विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया ने विरोध किया था। जहां साक्षी ने विरोध स्वरूप संन्यास की घोषणा कर दी, वहीं बजरंग ने अपना पद्मश्री पुरस्कार लौटा दिया। यह वही बृजभूषण शरण सिंह हैं जिनपर देश की शीर्ष महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न के मामले में कार्रवाई करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। पुलिस से घसीटीं गईं। मेडल तक को गंगा में बहाने की नौबत आन पड़ी, लेकिन आखिर में उन्हें ऐसा नहीं करने के लिए मना लिया गया था।
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