इंग्लैंड के पूर्व कप्तान डेविड गावर अपने देश में टेस्ट क्रिकेट की वापसी से बेहद खुश हैं। उन्हें इस बात पर भी गर्व है कि उनके पुराने विरोधी और साथी माइकल होल्डिंग ने टेस्ट से पहले ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ का मुद्दा भी बेहद संजीदगी से उठाया। आपको बता दें कि अपने ज़माने में गावर को बेहद स्टाइलिश बल्लेबाज़ माना जाता था। खेल से रिटायर होने के बाद क़रीब दो दशक तक गावर स्काई स्पोर्ट्स की एक्सपर्ट कामेंट्री टीम का हिस्सा रहे और पिछले साल ही रिटायर हुए। गावर से हमने रोहित शर्मा के मुद्दे पर ख़ास बात-चीत की क्योंकि अक्सर यह कहा जाता है कि रोहित के लिए भी कई शॉट खेलना बेहद आसान है क्योंकि उन्हें ये ‘गिफ्ट’ मिला है।
सवाल- कई लोगों को लगता है कि रोहित की शैली में भी आपकी बल्लेबाज़ी की तरह एक खूबसूरती है, अलग लय है। क्या आपको सुंदर दिखने के लिए ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है?
जवाब- एक तरह से कहा जाए तो कोई भी एकदम अलग तरीक़े से नहीं ही खेल सकता है। मेरी शैली बचपन से ही वैसी ही थी। मेरे बल्लेबाज़ी के हीरो सर गैरी सोबर्स और ग्रेम पॉलक जैसे खिलाड़ी थे जिनका अंदाज़ अनूठा था। आपकी कोशिश होनी चाहिए कि आप अपने तरीक़े से खेलें और ऐसा खेलें जो आपके काम आये। रोहित हों या माहेला जयावर्देने, जब ये क्रीज़ पर होतें हैं तो एक ख़ास गरिमा दिखती है बल्लेबाज़ी में लेकिन कोई सिर्फ़ आपकी गरिमा देखने के लिए मैदान पर नहीं आता। आपको क्रीज़ पर टिके रहकर रन बनाना पड़ता है जो सबसे अहम बात होती है। आज हम रोहित के टैलेंट की चर्चा इसलिए कर रहें है कि हाल में उन्होंने भरपूर मात्रा में रन बनाये हैं। उन्होंने विकेट पर टिककर खेला है। अगर टिकेंगे तभी गरिमा अपनी शैली में दिखा पायेंगे।
सवाल- क्या यह शैली पूरी तरह से कुदरती होती है या इसके लिए काफ़ी मेहनत करनी पड़ती है… क्या आपको लगता है कि कुछ लोग चाहे कितनी भी मेहनत कर लें आपकी या रोहित की शैली में बल्लेबाज़ी नहीं कर सकते हैं?
जवाब- मैं किसी को ऐसी सलाह नहीं देता कि वो अपना स्वाभाविक खेल छोड़कर किसी और की तरह बल्लेबाज़ी करना शुरू कर दे। आपकी कोशिश हमेशा ख़ुद को बेहतर करने की, ज़्यादा अच्छा करने की और ज़्यादा प्रभावी होने की होनी चाहिए। ये तो ऊपर वाले का तोहफा ही होता है कि आपमें शतक लगाने की योग्यता भी होती है और वो शतक आँखों को सुखद भी लगता है। लेकिन, सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि जो मुझे लगता है कि रोहित को भी समझ में आ गया होगा, अगर आप उसी अंदाज़ में आउट होते हैं तो लोगों को ऐसा लग सकता है कि आप परवाह नहीं करते हैं। आप या तो ज़रूरत से ज़्यादा इत्मिनान दिखाते हैं या फिर ऐसा लगता है कि आपको कोई फर्क ही नहीं पड़ता है। आपका आउट होना भी आलोचकों को उतना सहज़ लगता है जितना आपका चौका लगाना। ऐसे मौक़ों पर आपको यही कहने की ज़रूरत है- देखिये, दो दिन पहले ही तो मैंने शतक लगाया था, वही मैं हर रोज़ करने की कोशिश करता हूँ, अगर मैं कामयाब आज नहीं हुआ तो इसका क़तई मतलब यह नहीं है कि मैंने कोशिश नहीं की है। हम सभी के लिए अल्टिमेट कामयाबी तो इसी बात पर निर्भर करती है कि हमारे अच्छे दिन ज़्यादा हों।
सवाल- आपको हैरानी होती है कि इतनी प्रतिभा वाला रोहित सफेद गेंद की कामयाबी को लाल गेंद यानी कि टेस्ट मैचों में नहीं दोहरा पाता है?
जवाब- ज़रा भी हैरानी नहीं होती है। कितने सारे ऐसे खिलाड़ी मैंने देखे हैं जो सफेद गेंद में असाधारण और लाल गेंद में नौसिखिए नज़र आते हैं। इसका यह मतलब कभी नहीं निकाला जाना चाहिए कि वो प्रतिभाशाली नहीं हैं। उदाहरण के लिए इंग्लैंड के ही जैसन रॉय को लें। वन-डे में ओपन करतें हैं, शतक जमाते हैं। मेरा मानना है कि उन्हें टेस्ट मैचों के लिए अपने खेल में और नियंत्रण की दरकार है। इसलिए मेरा मानना यह है कि नई पीढ़ी के खिलाड़ियों का असली टेस्ट तो टेस्ट क्रिकेट ही है जहाँ उन्हें अलग-अलग हालात से ख़ुद को जूझना पड़ता है। सफेद गेंद की क्रिकेट में आप कई कमियों को आसानी से छिपा लेते हैं। इसलिए जो हर फ़ॉर्मेट में रन करेगा, उसका सम्मान सबसे ज़्यादा होगा। लेकिन, ऐसा कहने का मतलब यह नहीं है कि जो आईपीएल में ख़ूब रन बनाते हैं या 50 ओवर के वर्ल्ड कप में अपना जलवा बिखेरते हैं उनको आप पसंद नहीं करेंगे। उन सबमें भी योग्यता है, गुण हैं। वो भी लोगों का मनोरंजन करते हैं क्योंकि खेल एक बिज़नेस भी है जहाँ मनोरंजन की माँग है। हाँ, मेरे लिए तो वो खिलाड़ी सबसे शानदार है जो हर फ़ॉर्मेट में ख़ास तौर पर टेस्ट में बेस्ट है।
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