साल 2000 में असम के ख़िलाफ़ महेंद्र सिंह धोनी ने जमशेदपुर में अपना पहला फ़र्स्ट क्लास मैच खेला। विकेटकीपर के तौर पर उनका पहला शिकार विरोधी टीम के विकेटकीपर पराग दास का था जो स्टंपिंग के शिकार हुए। इसे महज एक इत्तफाक ही कहा जायेगा कि 19 साल बाद जयपुर में एक आईपीएल मैच के दौरान धोनी ने पराग दास के बेटे रियान पराग का कैच विकेट के पीछे लपका।
एक पूरी नई पीढ़ी आ चुकी थी, लेकिन धोनी वहीं थे। विकेट के पीछे, फुर्ती से डटे हुए। पिता- पुत्र दोनों का धोनी के ख़िलाफ़ खेलने का अपने आप में एक अनूठा संयोग है, लेकिन यह इस बात को भी दर्शाता है कि सचिन तेंदुलकर की तरह धोनी को भी हर परिस्थिति का सामना करते हुए टिके रहने की ईश्वरीय ताकत का तोहफा भी मिला था।
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एडम गिलक्रिस्ट जैसा बनना चाहते थे
मुझे याद है शुरुआती दौर में जब मैं धोनी से मिलता था और उनसे पूछता था कि वह किसकी तरह बनना चाहतें हैं तो वह अक्सर एडम गिलक्रिस्ट की चर्चा करते थे। वह गिल्क्रिस्ट से कभी मिले भी नहीं थे, लेकिन अक्सर गुरु द्रोणाचार्य और एकलव्य वाली कहानी ज़ेहन में आ जाती थी।ऑस्ट्रेलियाई गिल्क्रिस्ट अपने आप में सर्वकालीन महानतम विकेटकीपर बल्लेबाज़ हैं और धोनी से आगे।
अगर धोनी की कप्तानी को उनकी विकेटकीपिंग और बल्लेबाज़ी के साथ जोड़ दिया जाए तो धोनी अनूठे बन जाते हैं। कोहिनूर हीरे की तरह। क्रिकेट दिग्गजों की बात करें तो वेस्टइंडीज़ के सर गारफ़ील्ड सोबर्स की तरह।
महानतम खिलाड़ियोे में एक
क्रिकेट में महानतम बल्लेबाज़ की बात आती है तो सर डॉन ब्रैडमैन, विवियन रिचर्ड्स और सचिन तेंदुलकर पर आकर बहस रुक जाती है। बात महानतम गेंदबाज़ की होती है तो डेनिस लिली, मैल्कम मार्शल, ग्लैन मैक्ग्रा जैसे दिग्गज सामने आ जातें हैं।लेकिन, हर कोई यह भूल जाता है कि जब सोबर्स ने क्रिकेट को अलविदा कहा तो उनसे ज़्यादा रन टेस्ट क्रिकेट में किसी के नहीं थे, उनसे ज़्यादा बड़ी पारी टेस्ट क्रिकेट में किसी ने नहीं खेली थी, उनसे ज़्यादा विकेट टेस्ट के इतिहास में सिर्फ 6 गेंदबाज़ों ने लिए थे, फील्डर के तौर पर सिर्फ 2 खिलाड़ियों ने उनसे ज़्यादा कैच लपके थे और तो और फर्स्ट क्लास क्रिकेट में किसी ने 6 गेंद पर 6 छक्के भी नहीं लगाये थे। लेकिन, सोबर्स को अक्सर हम भूल जातें हैं। उनके बेमिसाल आकंड़ों को भूल जाते हैं। लेकिन धोनी के केस में हम उनकी बल्लेबाज़ी शैली को भूल जाते हैं।
यह भूल जातें हैं कि कैसे स्वच्छंद शैली से बेहद आक्रामक मिज़ाज के खिलाड़ी ने सिर्फ टीम हित के लिए अपने पूरे खेल को बदल डाला। पांचवे-छठे नंबर पर दबाव झेलने के लिए खुद को फौलाद बना डाला।
क्रिकेट इतिहास हमेशा उन्हें वानखेडे स्टेडियम में 2011 वर्ल्ड कप के छक्के के लिए याद करेगा लेकिन ये भूल जायेगा कि 50 से ज़्यादा का औसत इस खिलाड़ी ने वन-डे क्रिकेट में बनाये रखा।
न भूतो न भविष्यति
लोग अक्सर कहतें थे कि विजय मर्चेंट के बाद कौन आयेगा। सुनील गावस्कर आये। गावस्कर के बाद कौन? तेंदुलकर आये। तेंदुलकर के बाद कौन तो कोहली आ गये। लेकिन, आपने कभी सोचा है कपिल देव से पहले कौन और उनके बाद कौन? ना भूतो ना भविष्यति... धोनी भी कपिल देव की तरह इकलौते हैं... उनके जैसा ना तो पहले कोई था और उनके जैसा ना कोई आगे आयेगा...जो बात कभी अलबर्ट आइंस्टाइन ने महात्मा गांधी के लिए कही थी कि शायद ही आने वाली पीढ़ियों को ये एहसास हो कि हाड़-मांस का बना एक ऐसा शख्स पृथ्वी पर आया था। ठीक उसी तरह कई दशक बाद क्रिकेट फैंस को इस बात पर यकीन करना मुश्किल हो कि सोशल मीडिया वाले दौर में एक ऐसा खिलाड़ी भी इतना कूल था कि वह शायद ही उस पर कुछ लिखे या कहे। लेकिन जब उसने वो दो वाक्य लिखे, तो उन शब्दों को अमरत्व हासिल हो गया... 15 अगस्त 2020 को सूर्यास्त के समय, 7 बजकर 29 मिनट को शब्दों में परिभाषित करने वाले धोनी को क्रिकेट जगत हमेशा अपनी पहचान को चमकाने के लिए याद करेगा...
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