किसी के अंग्रेजी में सोचने, बोलने या लिखने से मुझे कभी कोई परेशानी नहीं होती। पर हंसी तब ज़रूर आती है, जब देखता हूँ कि अपने देश में जो लोग हमेशा ‘हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्थान’ का राजनीतिक-जाप करते रहे हैं, वे सत्ता में आने के बाद अपनी हर प्रमुख सैद्धांतिकी या मंतव्य को अक्सर अंग्रेजी में परोसते नज़र आते हैं। तीन उदाहरण देखिये - एक है - ‘नेशन फ़र्स्ट!’ दूसरा है - ‘न्यू इंडिया!’ और तीसरा है - ‘वन नेशन-वन इलेक्शन!’