बीते कुछ सालों से पेट्रोल-डीज़ल के दाम तेल कंपनियाँ बढ़ाती रही हैं। जब कभी बड़ी बढ़ोतरी होती और आम जनता असंतोष ज़ाहिर करती, सरकार की ओर से कहा जाता रहाः ‘हम क्या कर सकते हैं, दाम बढ़ाने-घटाने का अधिकार तो कंपनियों को है!’ लेकिन इस बार बजट पढ़ते-पढ़ते पेट्रोल-डीज़ल महंगे हो गए! वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पेट्रोल-डीज़ल के ज़रिए जनता से और ज़्यादा वसूलने की तरकीब लगाई है। इस बार अधिभार (सेस) और एक्साइज, दोनों में एक-एक रुपए का इज़ाफा किया गया है। इससे पेट्रोल-डीज़ल एकबारगी में ही प्रति लीटर दो-ढाई रुपये महंगे हो गए। लेकिन बजट को 10 में 10, 9 या 8 नंबर दे रहे न्यूज़ चैनलों के विशेषज्ञों को इसमें कोई ख़ास बात नहीं लगी। पर मेरे जैसे आर्थिक मामलों के ‘अविशेषज्ञ’ को यह बढ़ोतरी ग़ैरबाज़िब और जनता के साथ धोखा लगा। सिर्फ़ मध्य और निम्न मध्य वर्ग ही नहीं, किसान भी इस भारी बढ़ोतरी से बुरी तरह प्रभावित होंगे। इससे महँगाई तेज़ी से बढ़ेगी। यह तो हुई कंज्यूमर के नज़रिए से एक शुरुआती टिप्पणी!