'मुसलमान तो बवाली होता है,' उसकी बात को सुनकर में चौका नहीं। आजकल ऐसे जुमले अकसर सुनने को मिल जाते है। वे आज सुबह मॉर्निंग वाक पर मिल गए। उनके चक्कर में मैंने पार्क का एक चक्कर और लगा लिया। पैर दुखने लगे। मैंने उनसे पूछा, 'ऐसा आप क्यों कहते हैं?' वे बोले, 'भाई साहब, वे जहाँ रहते है, हंगामा करते हैं। शांत नहीं रहते हैं। अब अपना ही अपार्टमेंट ले लीजिए। जब से आए हैं, गंदगी फैला रहे हैं।' मैंने कहा, 'गंदगी तो हिंदू भी फैलाते हैं। घर से कूड़ा निकाल कर बाहर फेंक देते हैं। रेड लाइट पर कार का गेट खोलकर पिच से पान की पीक सड़क पर थूक देते हैं। हम सब यही करते हैं।' 'नहीं भाई साहब, ये ख़ुराफ़ाती होते हैं। चैन से नहीं रहने देते। पाँच सौ पर भारी होते हैं। एकजुट रहते हैं। हम बँटे रहते हैं।' मैं उनकी बात को गंभीरता से सुनता रहा। मैं समझ गया कि वो वॉट्सऐप ग्रूप का शिकार हैं। मैंने उनसे कहा कि हिंदू एक हो जाएँ, इसमें तो कोई बुराई नहीं है। एकजुट होना ही चाहिए। अगर मुसलमान एक रह सकते हैं तो हिंदू क्यों नहीं?' उन्हे मेरी बात सुनकर संतुष्टि हुई।

भारी बहुमत और तमाम अहम पदों पर होने के बावजूद कुछ हिदुओं को ऐसा क्यों लगता है कि वे अपने ही देश में असुरक्षित हैं? क्या हमारे धर्मग्रंथ हमें दूसरे समुदायों से घृणा करना सिखाते हैं? अगर नहीं तो क्यों कुछ हिंदू कट्टर मुसलमानों की तरह बनना चाहते हैं? यदि आप भी मुसलमानों से घृणा करते हैं तो यह ब्लॉग आपको नए तरीक़े से सोचने को बाध्य करेगा।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।