भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी से एक छद्म या नक़ली युद्ध लड़ रहे हैं? मोदी उनके भक्त समर्थक और पार्टी के लोग यह साबित करने में लगे हैं कि 2019 का चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गाँधी है और आम मतदाताओं को समझाने की कोशिश की जा रही है कि राहुल गाँधी किसी भी तरह से प्रधानमंत्री मोदी का विकल्प नहीं हो सकते। इस नक़ली युद्ध के शंखनाद से बीजेपी विरोधी पार्टियों के कई नेता भी भ्रम के शिकार हो रहे हैं और अभी से ही यह तय करने की कोशिश की जा रही है कि मोदी की जगह प्रधानमंत्री कौन हो सकता है। बहुजन समाज पार्टी की मायावती या फिर तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी या कोई और ग़ैर-कांग्रेसी ग़ैर-भाजपाई नेता। प्रधानमंत्री पद के विकल्प पर बयानबाज़ी के साथ ही 2019 के चुनावों के लिए ख़ेमाबंदी शुरू हो गई है।

बीजेपी यह बताने की कोशिश कर रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नहीं है। भारतीय राजनीति में ऐसी कोशिशें पहले भी हुई हैं। 70 के दशक में कांग्रेसियों का नारा था कि इंदिरा गाँधी का कोई विकल्प नहीं है। 1971 के युद्ध की महाविजेता और बैंकों के राष्ट्रीयकरण जैसे साहसी आर्थिक सुधारों की हीरो इंदिरा गाँधी को भी 1977 में मतदाताओं ने धूल चटा दी।
बीजेपी की रणनीति तो नहीं?
बीजेपी के लिए मोदी बनाम राहुल को चुनावी मुद्दा बनाना एक आसान रणनीति का हिस्सा हो सकता है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि 2014 में जिन मुद्दों पर चुनाव लड़ कर बीजेपी विजेता के रूप में उभरी, उन पर बहस अब आसान नहीं है। 2014 में बीजेपी विकास का सपना बेच रही थी। युवा वर्ग को रोज़गार की उम्मीद दिलाई गई। किसानों को भी फ़सल की अच्छी क़ीमत मिलने की आशा जगाई गई। और जब मोदी ने देवालय से पहले शौचालय का नारा दिया तो लोगों को लगा कि बीजेपी अपने सांप्रदायिक अजेंडे से दूर हट रही है। 2014 के बाद विधानसभा चुनावों में भी आम मतदाता बीजेपी के पीछे लामबंद दिखाई दिया।- देश में बीस से ज़्यादा राज्यों में बीजेपी की सरकार बन गई। लेकिन पिछले साढ़े चार सालों में बीजेपी आर्थिक मोर्चे पर अपने दावों के मुताबिक़ कारगर साबित नहीं हो पाई। नोटबंदी और जीएसटी जैसे आर्थिक सुधार के कार्यक्रम अभी तक सफलता की कोई उम्मीद नहीं दिला पा रहे हैं।
- बैंकों से हज़ारों करोड़ कर्ज़ के नाम पर लूटने वाले माल्या नीरव मोदी और चोकसी जैसे लोग विदेश फुर्र होने लगे तो मोदी का ‘न खाऊंगा और न खाने दूँगा’ जैसा उद्घोष भी असफल साबित होने लगा। मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रम भी महज जुमला साबित हो रहे हैं।
असफलता को ढँकने की कोशिश?
आर्थिक मोर्चे पर असफलता को गाय-राम मंदिर और अंधराष्ट्रवाद से ढँकने की कोशिश भी नाकामयाब साबित हो रही है। अब राहुल गाँधी और उनके परिवार पर हल्ला बोल कर बीजेपी यह बताने की कोशिश कर रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नहीं है। भारतीय राजनीति में ऐसी कोशिशें पहले भी हुई हैं। 70 के दशक में कांग्रेसियों का नारा था कि इंदिरा गाँधी का कोई विकल्प नहीं है। 1971 के युद्ध की महा विजेता और बैंकों के राष्ट्रीयकरण जैसे साहसी आर्थिक सुधारों की हीरो इंदिरा गाँधी को भी 1977 में मतदाताओं ने धूल चटा दी।
शैलेश कुमार न्यूज़ नेशन के सीईओ एवं प्रधान संपादक रह चुके हैं। उससे पहले उन्होंने देश के पहले चौबीस घंटा न्यूज़ चैनल - ज़ी न्यूज़ - के लॉन्च में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। टीवी टुडे में एग्ज़िक्युटिव प्रड्यूसर के तौर पर उन्होंने आजतक