loader

बीजेपी की 'बी' टीम तैयार कर रहे हैं केसीआर?

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव यानी केसीआर क्या 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के लिए 'बी' टीम बनाने में जुटे हैं? पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाक़ात के बाद दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में इस मुद्दे पर चर्चा तेज़ हो गई है। केसीआर फ़िलहाल एक ऐसा मोर्चा बनाने में जुटे हैं जो लोकसभा चुनाव तक न तो बीजेपी के साथ हो और न कांग्रेस के साथ। यानी तीसरा मोर्चा जो 2019 के चुनावों के बाद भविष्य की राजनीति का फ़ैसला करे। केसीआर इस तरह की कोशिश पिछले आठ-नौ महीनों से कर रहे हैं। वह चाहते हैं कि ऐसे नेताओं को इकट्ठा किया जाए जिनका अपने राज्य में बीजेपी और कांग्रेस दोनों से तालमेल संभव नहीं है।

ममता और नवीन पर नज़र 

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का मुक़ाबला सीपीएम की अगुआई वाले वामपंथी गठबंधन के साथ-साथ कांग्रेस से भी है। केसीआर के निशाने पर उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक दूसरे नंबर पर हैं। पटनायक के बीजू जनता दल का मुक़ाबला कांग्रेस और बीजेपी से है। उधर, केसीआर उत्तर प्रदेश में मायावती और अखिलेश यादव को भी साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं। 

केसीआर ने प्रारंभिक दौर में शरद पवार की एनसीपी और आँध्र में चंद्रबाबू नायडू के तेलुगू देशम को भी साथ लाने की कोशिश की। लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। 

तेलंगाना विधानसभा के हाल के चुनाव में चंद्रबाबू नायडू कांग्रेस के साथ चले गए। शरद पवार ने भी कांग्रेस से अलग होने में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं दिखाई। दोनों की वजह साफ़ है। चंद्रबाबू नायडू जहाँ आंध्र-विभाजन के समय हैदराबाद के हाथ से निकल जाने का दंश भूले नहीं हैं, वहीं शरद पवार को अच्छी तरह मालूम है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस का साथ छोड़ देने से उन्हें कितना नुक़सान उठाना पड़ेगा, जिसकी भरपाई केसीआर या उनकी कोशिशों से बनने वाला कोई तीसरा मोर्चा क़तई नहीं कर सकता।

तीसरे मोर्चे का फ़ॉर्मूला अभी क़ामयाब होता नहीं दिखाई देता। ममता और नवीन अभी इसके लिए तैयार नहीं दिखते। शरद पवार, मायावती और अखिलेश भी अभी इसमें दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं।

तेलंगाना में लोकसभा की 17, उड़ीसा में 21 और बंगाल में 42 यानी कुल मिलाकर 80 सीटें है। तीनों ही राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही हाशिये पर हैं। हिंदी पट्टी के राज्यों में बीजेपी की सीटें अधिकतम हैं। राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि 2019 में हिंदी पट्टी के राज्यों में बीजेपी की सीटें कम हो सकती हैं। ज़ाहिर है कि बीजेपी की नज़र बंगाल, उड़ीसा, तेलंगाना और आँध्र जैसे राज्यों पर है, जहाँ पिछले चुनावों में उसे नाममात्र की सीटें मिली थी। कांग्रेस को पुनर्जीवन के लिए इन राज्यों में बेहतर करना होगा। 

ममता और केसीआर अपने राज्यों में शानदार प्रदर्शन के लिए काफ़ी हद तक मुस्लिम मतदाताओं पर निर्भर हैं। इसलिए लाेकसभा चुनावों से पहले बीजेपी के साथ उनका जाना असंभव है। 2014 के चुनावों में बीजेपी पर लगाम लगाने में इन तीनों राज्यों की भूमिका काफ़ी अहम थी। पश्चिम बंगाल की 42 में से 34 सीटें तृणमूल कांग्रेस ने, 4 कांग्रेस ने तथा सीपीएम और बीजेपी ने दो-दो सीटें जीती थीं। उड़ीसा में बीजू जनता दल ने 19 सीटों पर क़ब्ज़ा किया था। तेलंगाना की सत्रह सीटों में से केसीआर की पार्टी के पास नौ, कांग्रेस के पास दो और बीजेपी के पास एक सीट है।

केसीआर का खेल 

राजनीतिक पंडितों के मुताबिक़ तीसरा मोर्चा बनाकर केसीआर डबल फ़ायदे की तैयारी कर रहे हैं। सबसे पहले तो वह मतदाताओं को ये बताना चाहते हैं कि उनका गठबंधन देश में सरकार बनाने की रेस में शामिल है ताकि लोकसभा चुनावों में उन्हें मतदाताओं का अच्छा समर्थन प्राप्त हो। दूसरी तैयारी इस अनुमान पर आधारित है कि 2019 में अगर किसी पार्टी या गठबंधन को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है तो तीसरा मोर्चा मोल-तोल करने की बेहतर स्थिति में रहेगा। एक सोच यह भी है कि बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने पर तीसरा मोर्चा किसी नए व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाने के लिए सौदेबाज़ी भी कर सकता है। ज़ाहिर है ऐसी स्थिति में तीसरा मोर्चा बीजेपी की 'बी' टीम साबित हो सकता है। 

किंगमेकर बनने की जुगत में 

किसी बड़ी राजनीतिक उथल-पुथल के बाद अगर कांग्रेस और उसका मोर्चा बड़ी ताक़त बनकर उभरता है तो तीसरा मोर्चा उसके साथ भी जा सकता है। इसीलिए तीसरे मोर्चे की पूरी थ्योरी यह है कि केंद्र सरकार पर फ़ैसला 2019 के चुनावों के बाद किया जाए और फ़िलहाल अपने-अपने राज्यों में मज़बूती के साथ लड़कर अगली सरकार के लिए किंगमेकर बनने की कोशिश हो। चुनाव के बाद मायावती, अखिलेश और शरद पवार जैसे नेताओं के साथ आने पर एक कोशिश ग़ैर-बीजेपी और ग़ैर-कांग्रेसी सरकार बनाने की भी हो सकती है। लेकिन ये फ़ॉर्मूला अभी क़ामयाब होता नहीं दिखाई देता। ममता और नवीन पटनायक अभी इस इस मोर्चे के लिए तैयार नहीं दिखाई देते हैं। शरद पवार, मायावती और अखिलेश यादव भी अभी संभावित गठबंधन में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। 

तीसरे मोर्चे से कांग्रेस को नुक़सान हो सकता है। बीजेपी लगातार कांग्रेस को घेर रही है। केसीआर की मुहिम से बीजेपी को फ़ायदा मिल सकता है।

बीजेपी को फ़ायदा? 

राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि तीसरे मोर्चे से कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे को नुक़सान हो सकता है। ज़ाहिर है कि बीजेपी इसका फ़ायदा उठाने की कोशिश करेगी। 2019 के लिए बीजेपी जो रणनीति तैयार कर रही है, उसमें केंद्र में मज़बूत सरकार बनाना उसका एक प्रमुख लक्ष्य होगा। राहुल गाँधी और कांग्रेस को घेरने के लिए बीजेपी लगातार उन्हें कमज़ोर नेता और कमज़ोर पार्टी के रूप में प्रचारित कर रही है। केसीआर की मुहिम से बीजेपी के इस अभियान को फ़ायदा मिल सकता है। 

आसान नहीं गठजोड़ 

लेकिन शत्रुओं की अपनी समस्याएं भी हैं। बंगाल में ममता ने 2011 में कांग्रेस के साथ मिलकर क़रीब 30 साल पुराने सीपीएम वाले वामपंथी गठबंधन को उखाड़ फेंका था। 2016  के विधानसभा चुनावों में वह कांग्रेस से अलग हो गईं, फिर भी चुनाव में शानदार जीत हासिल की। कांग्रेस और सीपीएम गठबंधन ने 2016 का विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा लेकिन वे तृणमूल कांग्रेस से बुरी तरह हारे।

ज़ाहिर है कि राज्यों में राजनीतिक समीकरण बनते-बिगड़ते रहते हैं। कांग्रेसी ख़ेमा 2019 के चुनावों में तृणमूल को साथ रखना चाहता है, लेकिन ममता बनर्जी ने अब तक कांग्रेस के साथ जाने का कोई संकेत नहीं दिया है। बंगाल में कांग्रेस और वामपंथी गठबंधन पहले से ही ठंडा पड़ा है। नवीन पटनायक के सामने ख़ुद को कांग्रेस और बीजेपी दोनों का विरोधी साबित करने की चुनौती तो है, लेकिन तीसरे मोर्चे में उनकी भी सक्रिय दिलचस्पी नहीं दिखाई दे रही है।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
शैलेश
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विश्लेषण से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें