पंजाब की सियासत में आख़िर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के ख़िलाफ़ उनकी ही पार्टी के लोगों ने मोर्चा क्यों खोला हुआ है। क्या यह सिर्फ़ उनकी सियासी महत्वाकांक्षा है या फिर जो वे आरोप लगा रहे हैं, उनमें कुछ दम है।
अमरिंदर के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने वालों में पहला नाम उनकी ही हुक़ूमत में वज़ीर रहे नवजोत सिंह सिद्धू का है। सिद्धू की नाराज़गी की सबसे बड़ी वज़ह है- गुरू ग्रंथ साहिब के बेअदबी मामले के दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई न होना। इसके अलावा नशे के कारोबार का धड़ल्ले से चलना, ट्रांसपोर्ट माफ़िया के ख़िलाफ़ कार्रवाई न होना भी बड़े मुद्दे हैं।
सिद्धू, प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़, पूर्व अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा सहित कांग्रेस के कई विधायकों ने इन मुद्दों को पार्टी की ओर से पंजाब के झगड़े को सुलझाने के लिए बनाए गए तीन सदस्यों वाले पैनल के सामने भी रखा था।
क्या है बेअदबी मामला?
अक्टूबर, 2015 में फरीदकोट जिले के गांव बरगाड़ी के गुरुद्वारा साहिब के बाहर श्री गुरु ग्रंथ साहिब के अंग बिखरे हुए मिले थे। इस घटना के बाद सिख समाज ने पूरे पंजाब में जबरदस्त प्रदर्शन किया था। साथ ही विदेशों में रहने वाले सिखों ने भी इस घटना को लेकर रोष का इजहार किया था।
इसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे सिखों पर पुलिस ने कोटकपुरा में लाठीचार्ज कर दिया था और गोली भी चलाई थी। इससे कोटकपुरा में दो लोगों की मौत हो गई थी और इसके बाद यह मामला तूल पकड़ गया था। पंजाब के अंदर आगजनी और हिंसा की कई घटनाएं हुई थीं।
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अकाली दल की हार की वज़ह!
2017 के विधानसभा चुनाव में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी का मामला बड़ा मुद्दा बना था और इस घटना को लेकर सिख समुदाय तब की शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी सरकार से ख़ासा नाराज़ था। इसी वजह से 2017 में अकाली दल-बीजेपी गठबंधन को क़रारी हार मिली थी और वह मुख्य विपक्षी दल भी नहीं बन पाया था।
सिद्धू हों या जाखड़ या कुछ और विधायक व मंत्री, सभी इस बात से नाराज़ हैं कि सत्ता में आने के साढ़े चार साल बाद भी बेअदबी के मामले के दोषियों को सजा क्यों नहीं हुई।
बादल परिवार से मिलीभगत?
सिद्धू कैप्टन अमरिंदर का वह वीडियो भी शेयर कर चुके हैं जिसमें कैप्टन ने 2017 के विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान वादा किया था कि वह सत्ता में आने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उनके परिवार के ख़िलाफ़ बेअदबी मामले में कार्रवाई करेंगे। सिद्धू और बाक़ी नेता आरोप लगाते हैं कि कैप्टन की बादल परिवार से मिलीभगत है और इसी वज़ह से उन्होंने जानबूझकर इनके ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं की।
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2017 में सत्ता में आने के बाद कांग्रेस ने कोटकपुरा गोलीकांड के मामले में विशेष जांच दल (एसआईटी) क़ायम किया। इस एसआईटी की जांच के दायरे में पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल, पूर्व पुलिस महानिदेशक सुमेध सिंह सैनी सहित कई पुलिस अधिकारी और विधायक तथा अकाली नेता रहे और कई गिरफ्तारियां भी हुई।
तत्कालीन अकाली दल-बीजेपी गठबंधन सरकार ने भी एक एसआईटी एवं न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था।
एसआईटी की रिपोर्ट खारिज
लेकिन सिद्धू, जाखड़ सहित कुछ और कांग्रेस नेताओं का ग़ुस्सा तब भड़का जब इस साल अप्रैल में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने अमरिंदर सरकार की ओर से बनाई गई एसआईटी की रिपोर्ट को खारिज कर दिया और पंजाब सरकार से कहा कि वह नई एसआईटी क़ायम करे।
इसके बाद सिद्धू ने ट्वीट कर कहा कि पंजाब के गृह मंत्री की अक्षमता के कारण राज्य सरकार हाई कोर्ट का आदेश मानने को मजबूर है। क्रिकेटर से राजनेता बने सिद्धू ने कहा था, “नई एसआईटी को छह महीने का वक़्त देने से पंजाब में जनता से चुनाव से पहले किया वादा पूरा नहीं हो सकेगा और ऐसा जान बूझकर किया जा रहा है।”
उसके बाद पंजाब के जेल मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने भी बेअदबी और कोटकपुरा गोलीकांड में चल रही जांच से नाराज़ होकर इस्तीफ़ा दे दिया था और कई और सिख व हिंदू नेताओं ने सरकार के ख़िलाफ़ नाराज़गी जाहिर की थी।
कैप्टन ने 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान हाथ में सिखों की पवित्र पुस्तक गुटका साहिब लेकर जनता के सामने वादा किया था कि वह चार हफ़्ते में पंजाब में नशे को बंद करवा देंगे लेकिन आज भी पंजाब में ज़हरीली शराब और नशे से मौत होने की ख़बरें सामने आती रहती हैं।
कार्रवाई करेंगे कैप्टन?
कुल मिलाकर कैप्टन के सामने ढेरों सवाल हैं कि आख़िरकार वह इन मसलों को हल क्यों नहीं कर पाए और जनता ही नहीं कांग्रेस के विधायक-मंत्री उनसे इसका जवाब मांग रहे हैं। कांग्रेस आलाकमान की ओर से बनाए गए पैनल ने भी कैप्टन से कहा है कि वह विधायकों की नाराज़गी वाले जितने भी मुद्दे हैं, उन पर तेज़ी से काम शुरू करे और विधानसभा चुनाव से पहले कुछ रिजल्ट मिलता दिखाई दे।
सिद्धू अपने बयानों, इंटरव्यू में कैप्टन और बादल परिवार के बीच साठगांठ होने के आरोप लगाते रहते हैं। लेकिन इतना तय है कि अब कैप्टन को नशे के सौदागरों, ट्रांसपोर्ट माफ़िया और बेअदबी मामले में जल्द से जल्द कड़ी कार्रवाई ज़रूर करनी होगी, वरना वह कांग्रेस के जहाज को डूबने से नहीं बचा पाएंगे।
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