समाजवादी पार्टी के सब्र का बांध आखिरकार टूट ही गया। मार्च में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही बागी तेवर दिखा रहे प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के संबंध में सपा ने पत्र जारी कर दिया है। अलग-अलग जारी किए गए पत्र में दोनों ही नेताओं से कहा गया है कि अगर उन्हें लगता है कि उन्हें कहीं ज्यादा सम्मान मिलेगा तो वह वहां जाने के लिए स्वतंत्र हैं।
ओमप्रकाश राजभर को दो दिन पहले ही वाई श्रेणी की सुरक्षा दी गई थी। बताना होगा कि शिवपाल सिंह यादव अखिलेश यादव के चाचा भी हैं।
निश्चित रूप से समाजवादी पार्टी ने खुला खत जारी कर शिवपाल सिंह यादव और ओमप्रकाश राजभर की ओर से की जा रही बयानबाजी के बाद पलटवार किया है।
शिवपाल सिंह यादव को लिखे गए पत्र में जहां एक लाइन लिखी गई है कि अगर आपको लगता है कि कहीं ज्यादा सम्मान मिलेगा तो वहां जाने के लिए स्वतंत्र हैं तो ओमप्रकाश राजभर को लिखे पत्र में उन पर बीजेपी से गठजोड़ करने का आरोप लगाया गया है।
राजभर से कहा गया है कि आप लगातार बीजेपी को मजबूत करने के लिए काम कर रहे हैं।
अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव में शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया), जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोक दल, ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, केशव देव मौर्य के महान दल, कृष्णा पटेल के अपना दल (कमेरावादी) के साथ मिलकर एक मजबूत गठबंधन बनाया था। लेकिन यह गठबंधन विधानसभा चुनाव में जीत हासिल नहीं कर सका था।
विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ही यह खबर आई थी कि ओमप्रकाश राजभर और शिवपाल सिंह यादव सपा गठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ जा सकते हैं। दोनों नेताओं की बीजेपी के बड़े नेताओं के संपर्क में होने की बात भी सामने आई थी।
अखिलेश एसी वाले नेता
कुछ दिन पहले उन्होंने कहा था कि अखिलेश को एसी कमरों से बाहर निकलना चाहिए। राजभर ने कहा था कि वह सपा के साथ गठबंधन को खत्म करने की दिशा में खुद कोई कदम नहीं उठाएंगे और अखिलेश यादव के द्वारा तलाक दिए जाने का इंतजार करेंगे। अब अखिलेश यादव ने उन्हें तलाक़ दे दिया है।
पूर्वांचल में है असर
ओम प्रकाश राजभर अपनी बुलंद आवाज़ और अलग तेवरों के लिए जाने जाते हैं। 2017 में योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बनने वाले ओम प्रकाश राजभर आए दिन सरकार से पिछड़ों के आरक्षण के बंटवारे को लेकर भिड़ते रहे और बाद में योगी सरकार से बाहर निकल गए थे। राजभर का पूर्वांचल के कुछ जिलों में अच्छा असर है और इसीलिए बीजेपी उन्हें एक बार फिर से अपने साथ लाना चाहती है।
सपा गठबंधन के एक और सहयोगी केशव देव मौर्य भी विधान परिषद चुनाव में टिकट के बंटवारे को लेकर नाराजगी जता चुके हैं और गठबंधन से दूरी बनाए हुए हैं।
भतीजे संग सियासी तकरार
शिवपाल और अखिलेश के बीच में साल 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले सियासी तकरार शुरू हुई थी और उसके बाद शिवपाल ने अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का गठन किया था। सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के मनाने के बाद शिवपाल ने इस विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश के साथ गठबंधन किया था।
शिवपाल चुनाव में अखिलेश से 100 सीटें मांग रहे थे लेकिन उन्हें सिर्फ एक सीट ही दी गई।
शिवपाल और ओम प्रकाश राजभर अगर बीजेपी के साथ जाते हैं तो यह उत्तर प्रदेश में विपक्षी गठबंधन के लिए बड़ा झटका होगा। शिवपाल उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री रहने के साथ ही सपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं और यादव बेल्ट में उनके समर्थकों की अच्छी-खासी संख्या है।
बीजेपी की कोशिश उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव में 80 में से 75 सीटें जीतने की है। बीजेपी को उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में यादव बेल्ट में खासा नुकसान हुआ है और 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए वह इसकी भरपाई करना चाहती है। ऐसी स्थिति में शिवपाल और ओम प्रकाश राजभर दोनों ही उसके लिए मुफीद साबित हो सकते हैं।
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