विपक्षी एकता का मंच पटना में सजकर तैयार है। बैठक कल 23 जून को है। जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती इस बैठक के लिए पहुंचने वालों में सबसे पहली नेता हैं। मीडिया में पहले नीतीश की बीमारी की खबर उड़ी। अब आज सुबह मीडिया ने बार-बार बताया कि आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी इस बैठक में शामिल नहीं होंगे। लेकिन वही मीडिया यह नहीं बता रहा है कि जयंत चौधरी इस समय अमेरिका में हैं। उन्होंने 12 जून को ही इस आशय का पत्र नीतीश कुमार को लिखा था कि वो अमेरिका में उस दौरान होने के कारण 23 जून की बैठक में शामिल नहीं होंगे।
कांग्रेस के आज के रुख से यह साफ हो गया कि वो इस बैठक को हर हाल में सफल बनाना चाहती है। बिहार कांग्रेस प्रमुख अखिलेश प्रसाद सिंह ने बैठक से पहले आज गुरुवार को कहा- ''सीटें (चुनाव में आवंटन) महत्वपूर्ण है, लेकिन भाजपा को हराने के लिए गठबंधन बनाना कांग्रेस पार्टी के लिए कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।' कांग्रेस नेता के इस बयान से इस बैठक का महत्व समझा जा सकता है।
नीतीश के नेतृत्व में पूरा जेडीयू आज भी इंतजाम को अंतिम रूप देने में लगा हुआ है। जेडीयू ने कहा है कि वो मीडिया की फर्जी खबरों का अब संज्ञान भी नहीं लेगा। पश्चिम बंगाल और दिल्ली के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्य मंत्री भगवंत सिंह मान , आम आदमी पार्टी के राज्य सभा सांसद संजय सिंह और राघव चड्ढा भी आज शाम तक पटना पहुंच जाएंगे। ममता बनर्जी आज पटना आने के बाद सबसे पहले लालू यादव के आवास पर उनका हालचाल लेने जाएंगी। ममता के साथ उनके भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी और कुछ अन्य वरिष्ठ टीएमसी नेता भी होंगे।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, भाकपा महासचिव डी.राजा तथा भाकपा माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य गुरुवार के भी आज 22 जून को ही पटना आने की संभावना जताई गई है।
कांग्रेस ने अभी पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के पटना जाने का कार्यक्रम जारी नहीं किया है लेकिन समझा जाता है कि दोनों नेता एकसाथ कल शुक्रवार को 10 बजे पटना के लिए रवाना हो जाएंगे। एनसीपी प्रमुख शरद पवार भी 23 जून को सीधे पटना पहुंचेंगे।
भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता की बैठक शुक्रवार को पटना में मुख्यमंत्री के सरकारी आवास 1 अणे मार्ग स्थित आवास में होगी।
कांग्रेस की ओर से कहा जा रहा है कि विपक्ष एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय करके अपना काम शुरू कर दे। बातचीत की खास लाइन, भाजपा व उसके सहयोगियों के खिलाफ संयुक्त विपक्ष का एक ही उम्मीदवार देने की होगी। ‘भाजपा हराओ’ का संकल्प पारित हो सकता है।
तेजस्वी का हमला
मेगा बैठक से पहले, बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि देश में और विपक्ष में कई नेता हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहीं अधिक अनुभवी हैं और हर कोई बैठक में अपनी राय रखेगा। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि पीएम मोदी से डरकर विपक्ष एकजुट नहीं हो रहा है या मोर्चा नहीं बना रहा है। यह समान सोच वाले लोगों की बैठक है। आखिर उन्होंने भी तो एनडीए बना रखा है और उसमें कई दल है। एनडीए किससे डर कर बना है। इसी तरह यूपीए भी बना था। कोई किसी से नहीं डरता है।
बिहार के उपमुख्यमंत्री ने गुरुवार को एएनआई से कहा- "इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि विपक्ष में ऐसे कई नेता हैं जो पीएम मोदी से कहीं अधिक अनुभवी हैं। बैठक में हर कोई अपनी राय रखेगा। अगले साल लोकसभा चुनाव लोगों के मुद्दों पर लड़ा जाएगा, न कि "पीएम मोदी के नाम पर।"
मीडियाकर्मियों से बात करते हुए तेजस्वी ने कहा, 'हर किसी को स्पष्ट है कि बैठक (शुक्रवार को) आने वाले दिनों में होने वाले चुनाव में बदलाव के लिए टोन सेट करेगी। बदलाव समय की जरूरत है क्योंकि लोगों के मुद्दों को जनता के सामने लाने की जरूरत है। अगला आम चुनाव जनता को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर लड़ा जाना चाहिए।"
उन्होंने आगे कहा, 'यह एक बड़ा कदम है, जब से नीतीश कुमार और मैं एक साथ आए हैं, हमने यथासंभव अधिक से अधिक विपक्षी दलों को एक साथ लाने की कोशिश की है।' बैठक का उद्देश्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ समान विचारधारा वाले विपक्षी दलों के एक साथ आने के लिए आधार तैयार करना है।
भाजपा का हमला
विपक्षी एकता की बैठक पर बिहार के वरिष्ठ भाजपा सुशील मोदी ने निशाना साधा। उन्होंने कहा कि लोकसभा में जिस पार्टी की एक भी सीट नहीं है, वह पार्टी 303 सीटों वाली पार्टी (BJP) को चुनौती दे रही है। लोकतंत्र को बचाने के लिए नहीं, परिवार को बचाने के लिए ये सम्मेलन हो रहा है। बिहार 40 में से 40 लोकसभा सीट पीएम मोदी को ही देगा। वहीं उपेंद्र कुशवाहा ने बैठक को लेकर कहा कि सत्ताधारी दल से इतर देश के समक्ष कोई नया वैकल्पिक मॉडल प्रस्तुत किए बिना सिर्फ नकारात्मकता को आधार बनाकर बनाई गई विपक्षी एकता का हश्र मध्यावधि चुनाव के रूप में 1977 और 1989 में देश भुगत चुका है। एक बार फिर उसी तरह के घिसे-पिटे प्रयोग के परिणाम से जनता वाकिफ है।उन्होंने कहा कि मेरी समझ से ऐसे किसी प्रयोग पर जनता तभी भरोसा कर सकेगी जब नये और सकारात्मक वैकल्पिक मॉडल के साथ किसी बड़े दल के भरोसेमंद नेता के नेतृत्व को स्वीकार कर छोटे व क्षेत्रीय दल उनके साथ खड़े हों। शायद भविष्य में कांग्रेस इस रूप में अपने को खड़ा कर पाए। कांग्रेस के नेता को अभी और तपना होगा। फिलहाल अर्थात 2024 में तो नरेंद्र मोदी के समक्ष कोई चुनौती नहीं है।
पटना में 23 जून को होने वाली विपक्षी एकता की बैठक से पहले अरविंद केजरीवाल ने भी अपनी शर्त रख दी है। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने सभी पार्टियों को चिट्ठी लिखकर कहा- मीटिंग में सबसे पहले केंद्र के अध्यादेश पर चर्चा होनी चाहिए। केजरीवाल ने चिट्ठी में गैर भाजपा शासित राज्यों की सरकारों को डराया भी है।
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