क्या है मायावती की बदली हुई राजनीति? लंबे समय तक लगभग अज्ञातवास में रहने के बाद मायावती इधर फिर सक्रिय हुई हैं। सक्रिय होने से मुराद, प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से है। आंदोलन करना और कार्यकर्ताओं के बीच जाना तो उन्होंने बहुत पहले त्याग दिया है। अब कूटनीति के ज़रिए ही वह यूपी की राजनीति में ख़ुद को प्रासंगिक बनाने की कोशिश कर रही हैं। इसमें उन्हें आंशिक सफलता भी मिल रही है।

अगर अन्य पिछड़ी जातियों को भी मायावती अपने साथ जोड़ पाती हैं, तो एक नया फ़ॉर्मूला यूपी की राजनीति में दिखाई देगा। यह नया फ़ॉर्मूला क्या नई 'सोशल इंजीनियरिंग' होगी? या किसी राजनीतिक दल के साथ उनकी गठजोड़ की रणनीति होगी? मायावती के लिए क्या यह राह आसान होगी और क्या वह ऐसा करने में कामयाब होंगी?
मायावती जिस तरह से संगठन चलाती हैं और चुनाव में टिकट वितरण करती हैं, उससे राजनीतिक विश्लेषक उन्हें हर चुनाव से पहले चुका हुआ मान लेते हैं। उनकी पारी की समाप्ति की घोषणा होने लगती है। लेकिन वह हर बार बाधा पार करते हुए कुशल तैराक की तरह बहाव के विपरीत देर-सबेर किनारे पहुँच ही जाती हैं। इसके लिए उन्होंने कांशीराम के मिशन से लेकर अपनी वैचारिकी तक से समझौता किया है। धुर विरोधियों से हाथ भी मिलाया। कभी पर्दे के पीछे सौदेबाज़ी या समझौते किए।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।