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क्या अपने विधायकों को पाला बदलने से रोक पाएगी कांग्रेस? 

पिछले कुछ सालों के दौरान लगातार देखा गया है कि जिस भी राज्य के विधानसभा चुनाव में स्पष्ट जनादेश नहीं आता है वहाँ भारतीय जनता पार्टी विधायकों की जोड़तोड़ और खरीद-फरोख्त के ज़रिए अपना बहुमत बनाने की कोशिश करती है। जब ऐसी कोशिश कामयाब हो जाती है तो दरबारी मीडिया उसे बीजेपी का 'मास्टर स्ट्रोक’ बताता है।

पांच साल पहले मणिपुर और गोवा के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बहुमत के नजदीक पहुंच कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी, लेकिन अपने ज़िम्मेदार केंद्रीय नेताओं की ग़लतियों और लापरवाही के चलते वह सरकार नहीं बना पाई थी। बीजेपी को दोनों ही राज्यों में कांग्रेस के मुक़ाबले कम सीटें मिली थीं लेकिन उसने अपने 'मास्टर स्ट्रोक’ और राज्यपालों के सक्रिय सहयोग से दोनों राज्यों में सरकार बना ली थी।

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पिछली बार दूध की जली कांग्रेस इस बार छाछ को फूंक-फूंक कर पी रही है। हालांकि तमाम टीवी चैनलों और एजेंसियों के एग्जिट पोल में कांग्रेस के लिए कहीं कोई संभावना नहीं बताई गई है, लेकिन एग्जिट पोल के अनुमानों को नकारते हुए कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व काफी सर्तक है। उसे लगता है कि उत्तर प्रदेश के अलावा बाकी चार राज्यों में कांग्रेस की सरकार बन सकती है।

लेकिन इस उम्मीद के साथ ही उसे यह डर भी सता रहा है कि बीजेपी पांच साल पुराने अपने खेल को इस बार भी पाँचों चुनावी राज्यों में दोहरा सकती है। इसलिए उसने ऐसी स्थिति से निबटने की तैयारी शुरू कर दी है। वह इस बार बीजेपी को ऐसा कोई मौक़ा नहीं देना चाहती है कि वह कांग्रेस के विधायकों किसी भी तरह से तोड़ सके। इसके लिए चुनाव नतीजे आने के तुरंत बाद चुनावी राज्यों के नवनिर्वाचित कांग्रेस विधायकों को कुछ समय के लिए कांग्रेस शासित राज्यों- छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भेजे जाने की तैयारी है, ताकि पार्टी नेतृत्व के अलावा कोई उन तक पहुँच न सके।

इस सिलसिले में पार्टी के अघोषित सर्वेसर्वा राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने हाल ही में अपनी पार्टी के दो मुख्यमंत्रियों- राजस्थान के अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के भूपेश बघेल को दिल्ली बुला कर उनसे 10 को चुनाव नतीजों के बाद की संभावित स्थिति पर विस्तार से बातचीत की है। 

अगर कहीं त्रिशंकु विधानसभा बनती है तो कांग्रेस के विधायकों को कैसे एकजुट रखना है और स्थानीय स्तर की दूसरी पार्टियों से बातचीत करके सरकार बनाने के लिए कैसे समर्थन जुटाना है, इस बारे में भी विचार विमर्श किया गया।

ख़बर है कि कांग्रेस नेतृत्व ने पार्टी के कुछ नेताओं को मणिपुर और गोवा की छोटी पार्टियों से बात करने में अभी से लगा दिया है।

कांग्रेस नेतृत्व को लगता है कि पार्टी इस बार उत्तर प्रदेश को छोड़कर बाक़ी चुनावी राज्यों में सरकार बना सकती है। लेकिन पिछले कुछ सालों के दौरान जिस तरह विभिन्न राज्यों में कांग्रेस विधायक बड़े पैमाने पर टूट कर बीजेपी में गए हैं, उससे साफ़ संकेत गया है कि पार्टी नेतृत्व की अपनी राज्य इकाइयों और प्रादेशिक नेताओं पर पहले जैसी पकड़ नहीं रह गई है। पार्टी नेतृत्व की इसी कमजोरी की वजह से बीजेपी उसके विधायकों में सेंध लगाने और जनादेश का अपहरण करने में कामयाब हो जाती है।

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ग़ौरतलब है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मणिपुर और गोवा में सबसे ज़्यादा सीटें जीतने के बाद भी सरकार नहीं बना सकी थी, क्योंकि बड़े पैमाने पर उसके विधायक टूट कर बीजेपी के साथ चले गए थे। इसके अलावा मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भी बीजेपी ने बड़ी संख्या में विधायकों को तोड़ कर कांग्रेस और उसके सहयोगी दल की सरकार गिरा दी थी। 

विधायकों की खरीद-फरोख्त करके ही उसने उत्तराखंड में भी कांग्रेस को नुक़सान पहुँचाया था। बीजेपी ने कांग्रेस में तोड़-फोड़ करने की कोशिश तो राजस्थान में भी की थी और इसके लिए उसने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) तथा आयकर विभाग जैसी केंद्रीय एजेंसियों का भी सहारा लिया था, लेकिन वहां वह कामयाब नहीं हो पाई। 

पाँच साल पहले 60 सदस्यों वाली मणिपुर विधानसभा में कांग्रेस ने 28 सीटें जीती थीं। उसे सरकार बनाने के लिए सिर्फ़ तीन विधायकों के समर्थन की ज़रूरत थी, जो कि हासिल करना उसके लिए मुश्किल हो रहा था।

ऐसे में कांग्रेस आलाकमान ने अहमद पटेल और कुछ अन्य नेताओं को मणिपुर भेजा था। लेकिन तब तक देर हो गई थी। वे कुछ नहीं कर पाए। वे पीए संगमा के बेटे कॉनराड संगमा को समर्थन देने के लिए राजी नहीं कर पाए थे। बीजेपी के 21 विधायक थे और उसने 10 विधायकों का समर्थन जुटा कर सरकार बना ली थी। बाद में बीजेपी ने कांग्रेस के भी कई विधायकों को तोड़ लिया था। 

यही खेल गोवा में भी दोहराया गया था। उस समय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह गोवा के प्रभारी थे लेकिन पता नहीं उन्होंने कैसी राजनीति की, जो बीजेपी ने बहुमत से दूर और कांग्रेस से पीछे रहने के बावजूद सरकार बना ली थी और बाद में भी कांग्रेस अपने विधायकों को एकजुट नहीं रख पाई। उसके लगभग सारे विधायक पाला बदल कर कांग्रेस के साथ चले गए।

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उस समय मणिपुर और गोवा में कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने में इन राज्यों के राज्यपालों ने भी अहम भूमिका निभाई थी। दोनों ही राज्यों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी और इस नाते स्थापित तथा मान्य परंपराओं के मुताबिक़ राज्यपाल को चाहिए था कि वे कांग्रेस को सरकार बनाने का न्योता देते लेकिन उन्होंने ऐसा करने के बजाय बीजेपी को जोड़-तोड़ के जरिए बहुमत का जुगाड़ करने के लिए पूरा मौक़ा दिया।

इस बार पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजों से पहले कांग्रेस नेतृत्व जिस तरह गंभीरतापूर्वक तैयारी कर रहा है, अगर ऐसी ही मुश्तैदी पांच साल पहले दिखाई होती तो मणिपुर और गोवा में उसकी सरकार बन जाती। लेकिन उस समय अपनी लापरवाही के चलते कांग्रेस ने दो राज्य गंवा दिए थे। 

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राजनीतिक दल अकसर चुनावों के बाद त्रिशंकु विधानसभा बनने पर अपनी पार्टी में टूट होने की आशंका के चलते अपने विधायकों को दूसरे राज्यों में भेजते रहे हैं। लेकिन बीते कुछ सालों के दौरान बीजेपी ने जिस तरह लगातार कई राज्यों में कांग्रेस के विधायकों को तोड़ा है उससे सबक लेते हुए अब कांग्रेस चौकस हो गई है और वह किसी भी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहती। इसीलिए कांग्रेस आलाकमान चुनाव नतीजे आते ही अपने नवनिर्वाचित विधायकों को बीजेपी के 'मास्टर स्ट्रोक’ से बचाने के लिए राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सुरक्षित ठिकानों पर ले जाने के काम को अंजाम देने की तैयारी में जुट गया है।

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अनिल जैन
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