जय हिन्द साथियों, जेल की सलाखों के पीछे कई दिन बीत चुके है। हर दिन के साथ निरंकुश सत्ता से लड़ने की इच्छाशक्ति और मजबूत हो रही है। इन दिनो का सदुपयोग मैने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की "सत्य के प्रयोग", डा. राममनोहर लोहिया की "जाति प्रथा" और नेल्सन मंडेला की जीवनी पढ़ने से की। इन महापुरुषों के संघर्ष, राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण को पढ़कर लगा कि हर दौर में जुर्म और तानाशाही के खिलाफ लड़ने वाले लोगों को हुकूमत ने अपने दमन का शिकार बनाया है लेकिन यह भी सच है कि "दमन जितना उग्र होता है विरोध और जन आक्रोश भी उतना ही तीव्र होता है।"