“यूपी में सवा करोड़ लोगों को रोज़गार देने की पीएम की 'यूपी आत्मनिर्भर रोज़गार अभियान' घोषणा का भला कौन स्वागत नहीं करेगा? यह एक नेक मंशा है। लेकिन वह यह तो बताएँ कि वो ये सब लाएँगे कहाँ से? पहले उनके पास बाँटने को कौड़ी तो हो। वह यूपी में पैकेज की घोषणा कर देते हैं, वह बिहार में भी ऐसी ही घोषणा कर चुके हैं लेकिन कहीं कागज़ पर दिखाएँ तो सही कि इस सबके लिए पैसा कहाँ से बटोरेंगे?" यह कहना है देश के सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. संतोष कुमार मेहरोत्रा का।
यूपी: बेरोज़गारी पर क्या सुनहरे सपने सजाने का खेल खेला जा रहा है?
- विचार
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- अनिल शुक्ल
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- 28 Jun, 2020


अनिल शुक्ल
यूपी में बेरोज़गारी का दंगल पहले से ही रचा हुआ है। 3 हफ्ते पहले मुख्यमंत्री 'प्रवासी श्रमिक रोज़गार आयोग' बनाये जाने की घोषणा कर चुके हैं। अब पीएम भी उसी दंगल में ताल ठोंकने उतरे हैं। देखना यह होगा कि मनरेगा के छंट जाने के बाद आने वाले महीनों में प्रदेश में बेरोज़गारी का आँकड़ा कहाँ तक तक पहुँचता है।
प्रो. मेहरोत्रा योजना आयोग से संबद्ध 'इंस्टिट्यूट ऑफ़ एप्लाइड मैनपॉवर रिसर्च' के बीते 5 साल महानिदेशक रहे हैं। उनकी गिनती देश के गिने-चुने 'मानव विकास' अर्थशास्त्रियों में होती है। 'मज़दूर और उनका रोज़गार' उनके अध्ययन के विशिष्ट क्षेत्र हैं और वह इस क्षेत्र में भारत सरकार, 'यूनिसेफ़' और 'यूएनडीपी' सहित 63 देशों के सलाहकार की भूमिका निभा चुके हैं। यूपी की प्रधानमंत्री की सवा करोड़ की घोषणा पर वह बड़ी हैरानी प्रकट करते हैं। “देखिये इन्हें 'माइक्रो इकोनॉमिक्स' ही नहीं समझ में आ रही है। ये जो इतनी विकट विपदा है, उसके संकट को समझ ही नहीं रहे। क्यों नहीं वह आरबीआई को 'इंस्ट्रक्ट' करते हैं कि वह कुछ 'बॉरो' करे। ये दमड़ी नहीं ख़र्च करना चाहते हैं। आप कहते हैं आप के पास ज़मीन की कमी है नहीं। आप सड़क बनाने के लिए, घर बनाने के लिए, कुछ तो ख़र्चा करो।”