लखीमपुर खीरी में दलित बहनों के साथ बलात्कार और उनकी हत्या के मामले में गुस्सा उबाल ले रहा है। यह गुस्सा स्वागत योग्य होता अगर उसे ‘बलात्कार पर गुस्सा’ के रूप में दर्ज कराया जाता। दलित बहनों के साथ लगातार घट रही बलात्कार की घटनाओं को रोकने की गरज भी इस गुस्से में नहीं दिखती। यहां दिख रही है मुसलमानों के प्रति नफरत। इस गुस्से में मुसलमानों को अपराधी ठहराने का भाव है। ऐसा क्यों हो रहा है? क्या यह होना चाहिए?