राजधानी के सबसे घनी आबादी वाले इलाक़े उत्तर-पूर्वी दिल्ली में तीन दिन तक जारी रही हिंसा की ख़बरें देखने-सुनने और समझने के बाद आपके जेहन में एक सवाल ज़रूर आ रहा होगा। सवाल यह कि दिल्ली पुलिस आख़िर तीन दिन तक ख़ामोश क्यों रही। उपद्रवी मनमानी करते रहे और पुलिस मूकदर्शक बनी रही। उसने कभी ज़मीन पर लाठी फटकारी तो कभी दूर से आंसू गैस के गोले छोड़े। दंगाई फ़ायरिंग कर रहे थे। पुलिसवालों के सामने आगजनी हो रही थी। लेकिन पुलिस असहाय होकर देख रही थी।
दिल्ली हिंसा: आख़िर तीन दिन तक क्यों ख़ामोश बैठी रही दिल्ली पुलिस?
- विचार
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- 26 Feb, 2020

नागरिकता क़ानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच हुई हिंसा को लेकर तीन दिन तक दिल्ली जलती रही। हर आदमी के मन में सवाल है कि तीन दिन पुलिस आख़िर क्यों निष्क्रिय क्यों बैठी रही? आख़िर पुलिस ने दंगाइयों को रोकने की कोशिश क्यों नहीं की? यह भी साफ़ हो गया है कि दिल्ली पुलिस का ख़ुफिया तंत्र पूरी तरह नाकाम रहा।
मंगलवार को गृह मंत्री अमित शाह को दिल्ली की याद आई और आनन-फानन में सीआरपीएफ़ के 1985 बैच के वरिष्ठ आईपीएस अफ़सर एस.एन. श्रीवास्तव को दिल्ली की क़ानून-व्यवस्था की कमान सौंपी गई। जम्मू-कश्मीर से लेकर दिल्ली तक की कानून-व्यवस्था के जानकार एस.एन. श्रीवास्तव दिल्ली के कमिश्नर पद के दावेदार हैं। वह ग्राउंड पर काम करने में विश्वास रखते हैं। मंगलवार की शाम को नियुक्ति होने से अब तक वह लगातार उत्तर पूर्वी-दिल्ली में ही जमे हुए हैं।