नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी ने गिरते-पड़ते गठबंधन वाली एक लंगड़ी सरकार बना डाली और उस पर खूब धूम धड़ाके और खुशी का इजहार किया गया। लेकिन इस दिखावटी खुशी के पीछे जो टीस और दर्द है वो है फैजाबाद की लोकसभा सीट के हारने का। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को 37 सीटें मिलने और कांग्रेस के छह सीटें जीतने की कहानी लंबी है लेकिन सबसे गहरी कहानी है फैजाबाद की सीट पर भारतीय जनता पार्टी के सवर्ण उम्मीदवार लल्लू सिंह के हारने और समाजवादी पार्टी (इंडिया) के दलित उम्मीदवार अवधेश प्रसाद के जीतने की। 22 जनवरी 2024 को राममंदिर के उद्घाटन के साथ जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए युग यानी त्रेता युग के आरंभ की घोषणा की थी, उसे अयोध्या के लोगों ने ठुकरा दिया है। अयोध्या और रामराज्य का मुद्दा न तो उत्तर प्रदेश में चला, न अवध में चला और न ही अयोध्या-फैजाबाद में।
अयोध्यावासियों से हार गए अयोध्यावादी
- विचार
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- 11 Jun, 2024

अयोध्या में बीजेपी के उम्मीदवार लल्लू सिंह की हार ने हिंदुत्ववादियों को हिला कर रख दिया है, लेकिन क्या यह अयोध्यावासियों के लिए भी ऐसा ही है? जानिए, फैजाबाद लोकसभा सीट पर चुनाव नतीजे के मायने क्या।
अब रामभक्ति की आड़ में मोदी भक्ति करने वाले भाजपा समर्थक दलितों और पिछड़ों को पानी पी-पीकर कोस रहे हैं। वे इन जातियों को हिंदू धर्म का गद्दार बता रहे हैं और कह रहे हैं कि यह लोग डॉ. भीमराव आंबेडकर को भगवान मानते हैं न कि भगवान राम को। फैजाबाद लोकसभा ने अपने जनादेश से एक नया विमर्श खड़ा किया है और उसकी धमक सिर्फ उत्तर प्रदेश और दिल्ली ही नहीं, पूरी दुनिया में महसूस की जा रही है। अयोध्या के लोगों ने यह संदेश दे दिया है कि उन्हें वह राम नहीं चाहिए जो गुजरात के कॉरपोरेट घराने और महाराष्ट्र के हिंदुत्ववादी संगठन नरेंद्र मोदी के सहारे लाने का दावा कर रहे हैं। वास्तव में अयोध्यावासियों को अपने राम चाहिए न कि अयोध्यावादियों के राम चाहिए।
लेखक महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं।