प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दस साल के कार्यकाल में भाजपा के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने उन पर सबसे तीखा प्रहार किया है। यह प्रहार कुछ वैसा ही है जैसा प्रहार 2002 में गोधरा कांड के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में काम करने वाले नरेंद्र मोदी को `राजधर्म’ की याद दिलाई थी। मोदी को सत्ता से तब भी नहीं हटाया जा सका था और इस बार भी वे सत्ता पर काबिज ही हो गए हैं और अगर सब कुछ ठीक ठाक चला तो वे अगले पांच साल खींच भी सकते हैं।
मोदी बनाम भागवत का लोकतंत्रः हमें क्या चाहिए?
- विचार
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- 12 Jun, 2024

हमें जो चाहिए क्या उसे देने के लिए इंडिया (गठबंधन) तैयार है? क्या उसने लोकसभा चुनाव में गठबंधन बनाकर आंशिक सफलता अर्जित करके अपना संतोष पा लिया है और सत्ता न मिलने पर बिखरने को तैयार है या फिर वह लोकतंत्र और संविधान की लड़ाई को लंबे समय तक लड़ने के लिए तैयार है?
लेकिन संघ परिवार के भीतर मची इस खींचतान का परिणाम यह है कि लोकतंत्र की जो बहस उसके बाहर उठी थी वह और भी तीव्र हुई है। हालांकि कुछ विश्लेषकों का मानना है कि मोहन भागवत ने नरेंद्र मोदी की कठोर आलोचना संघ की छवि को बचाने और मोदी के लिए सेफ्टी वाल्व के रूप में काम करने के लिए की है। इरादों और साजिशों की इन बहसों की `क्रोनोलॉजी’ और उसके सैद्धांतिक और व्यावहारिक पक्ष पर विचार करना ही होगा। उससे पहले यह बता देना जरूरी है कि आखिर मोहन भागवत ने कहा क्या है। क्योंकि संघ परिवारियों से भरे हुए गोदी मीडिया ने या तो उनके बयान को सुदूर उत्तर पूर्व यानी मणिपुर की ओर फेंक दिया है या फिर उसे ब्लैकआउट कर दिया है।
मोहन भागवत ने लगभग वही बातें कही हैं जो विपक्ष के नेता और विशेषकर राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और अखिलेश यादव जैसे राजनेता कई सालों से कह रहे हैं। नागपुर में आयोजित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ताओं के विकास वर्ग के समापन समारोह में सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा, `` जो वास्तविक सेवक है, जिसको वास्तविक सेवा कहा जा सकता है वह मर्यादा से चलती है। उस मर्यादा का पालन करके जो चलता है वो कर्म करता है, लेकिन कर्मों में लिप्त नहीं होता, उसमें अहंकार नहीं आता कि ये मैंने किया है और वही सेवक कहलाने का अधिकारी है।’’
लेखक महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं।