इमरजेंसी भारत के संवैधानिक लोकतंत्र की एक भयानक दुर्घटना थी जिससे उबरने में उसे 19 महीने लग गए। लेकिन आज उसे लेकर सत्ता और विपक्ष में जिस तरह का वाकयुद्ध चल रहा है उसे देखकर लगता है कि मौजूदा राजनेता न तो उसकी गंभीरता को समझ रहे हैं और न ही उससे कोई सबक लेने वाले हैं। वे एक तरह से इमरजेंसी इमरजेंसी खेल रहे हैं। वो इंदिरा गांधी की इमरजेंसी थी और यह मोदी की इमरजेंसी है। दोनों में कौन बुरी थी और कौन अच्छी है इसी पर डिबेट हुए जा रही है।