इमरजेंसी भारत के संवैधानिक लोकतंत्र की एक भयानक दुर्घटना थी जिससे उबरने में उसे 19 महीने लग गए। लेकिन आज उसे लेकर सत्ता और विपक्ष में जिस तरह का वाकयुद्ध चल रहा है उसे देखकर लगता है कि मौजूदा राजनेता न तो उसकी गंभीरता को समझ रहे हैं और न ही उससे कोई सबक लेने वाले हैं। वे एक तरह से इमरजेंसी इमरजेंसी खेल रहे हैं। वो इंदिरा गांधी की इमरजेंसी थी और यह मोदी की इमरजेंसी है। दोनों में कौन बुरी थी और कौन अच्छी है इसी पर डिबेट हुए जा रही है।
कृपया इमरजेंसी-इमरजेंसी न खेलें
- विचार
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- 25 Jun, 2024

इमरजेंसी पर 50 साल बाद राजनीति करने की कोशिश की जा रही है। वो नरेंद्र मोदी इसे लेकर बयान दे रहे हैं जो खुद पहले गुजरात में और अब राष्ट्रीय स्तर पर अघोषित आपातकाल के आरोपों से घिरे हुए हैं। लेखक अरुण कुमार त्रिपाठी ने यह सवाल सही उठाया है कि इमरजेंसी पर राजनीति क्यों खेली जा रही है। पढ़िए और जानिए ताजा इतिहासः
लेखक महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं।