कोरोना के बहाने आजकल सभी को अपनी पीठ थपथपाने का मौक़ा मिल गया है। यह मौक़ा सही हो भी जाता, अगर मरकज़ निजामुद्दीन में तब्लीग़ी जमात से जुड़ा यह कांड न हुआ होता। कांड तो और भी हुए हैं लेकिन इस मुश्किल वक्त में शायद उनकी ओर किसी को देखने की फुरसत नहीं है या फिर जानबूझ कर देखा ही नहीं जा रहा।
मरकज़ निजामुद्दीन की घटना के लिए किसे दोष दिया जाए और कौन इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार होगा, यह सवाल सभी के दिमाग में है। हैरानी की बात यह है कि देश की राजधानी में एक अंतरराष्ट्रीय समारोह हो जिसमें 8 से 9 हज़ार लोग शामिल हों, कई देशों से प्रतिनिधि उसमें आ जाएं, देश के हर हिस्से से लोग उसमें शिरकत करें और किसी को कानों-कान ख़बर तक नहीं हो। तो फिर ऐसी अंधेरगर्दी-चौपट राजा वाली स्थिति भारत में ही हो सकती है।
विदेशों से करीब दो हज़ार लोग भारत में आ जाएं और उनमें से बहुत-से ऐसे भी हों जिनके देश में पहले से ही कोरोना वायरस ने पांव फैला लिए हों और उन्हें कहीं कोई रोक नहीं रहा हो तो फिर यह सवाल अवश्य उठता है कि कोरोना से लड़ने की हम कैसी तैयारी कर रहे थे।
यह तो गनीमत है कि तेलंगाना में जमात से जुड़े 6 लोगों की और जम्मू-कश्मीर में एक व्यक्ति की मौत होने के बाद किसी अकलमंद ने उनकी हिस्ट्री को खंगाला। इसमें पता चला कि ये सब लोग दिल्ली में मरकज़ निज़ामुद्दीन के धार्मिक सम्मेलन में शामिल होने के लिए आए थे। तब यह राज खुला कि दिल्ली में ऐसा कोई सम्मेलन भी हुआ है। सम्मेलन में शामिल होने के बाद ये लोग पूरे देश में फैल गए।
इसका मक़सद तो धार्मिक प्रचार बताया गया लेकिन जिस तरह उनके कारण कोरोना फैल गया है, इस मक़सद पर भी संदेह पैदा होने लगे हैं। इस मामले में केंद्र सरकार की सारी इंटेलिजेंस एजेंसियां पूरी तरह फ़ेल नजर आ रही हैं। किसी को भी इस मामले में भनक न लगना यह नहीं बताता कि मरकज़ के लोग बड़े ही नियोजित या गोपनीय तरीके से काम कर रहे थे बल्कि इससे यही पता चलता है कि अपनी इंटेलिजेंस एजेंसियां हाथ पर हाथ रखे बैठी हुई हैं।
हैरानी की बात यह है कि जिस बिल्डिंग में ये हज़ारों लोग आकर रहने लगे और करीब एक महीने तक रहते रहे, इसके बगल में निजामुद्दीन पुलिस थाना है। थाने के लोगों को भी यह पता नहीं चला कि आख़िर बगल में क्या हो रहा है। जब सारे मामले का खुलासा हो गया, तब स्थानीय एसएचओ की तरफ से एक सीसीटीवी फुटेज ज़रूर जारी की गई जिसमें तब्लीग़ी जमात के लोग खुद मान रहे हैं कि एक हज़ार के करीब लोग उस बिल्डिंग में उस समय भी मौजूद थे। जबकि बाद में जब बिल्डिंग को खाली कराया गया तो उसमें से 2346 लोगों को निकाला गया।
अगर कोई अवैध निर्माण करता है तो पुलिस झट से उसका सारा सामान, बिल्डिंग मैटीरियल और मजदूरों तक को उठा ले जाती है लेकिन इस मामले में पुलिस सिर्फ नोटिस जारी करके हाथ पर हाथ रखे बैठी रही।
मौन क्यों हो गये ‘आप’ नेता?
केंद्र सरकार और उसकी पुलिस पर आम आदमी पार्टी (आप) आरोप लगा सकती थी कि उसकी लापरवाही से ऐसा हुआ है लेकिन आप गौर करेंगे कि इस मामले में ‘आप’ ने कोई आक्रामक रुख नहीं अपनाया। उठते-बैठते केंद्र सरकार, उपराज्यपाल और केंद्र की पुलिस पर दोषारोपण करने वाले दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल इस मामले में इतने मौन क्यों हो गए। उन्हें तो यह सुनहरा मौक़ा मिला था लेकिन सभी को सांप सूंघ गया। केजरीवाल तो खैर आजकल मोदी जी को कोसने से परहेज करते हैं लेकिन उनकी सेना भी जैसे क्वरेंटीन में चली गई।
इसके भी कई कारण हैं। इसकी वजह यह है कि इस हमाम में सभी नंगे हैं। दरअसल, ‘आप’ के ही एक नेता ने इलाक़े के ‘आप’ विधायक प्रवीण कुमार को ट्विटर पर 6 मार्च को ही यह सूचना दे दी थी कि हजरत निज़ामुद्दीन मरकज़ में इंडोनेशिया, मलेशिया और कई देशों के लोग आए हुए हैं। उस नेता ने कहा था कि आप इस जगह का भी ध्यान रखें। ट्वीट में उस नेता यह भी कहा था कि इस मामले में सीएम साहब को भी सूचित कर दिया जाए। क्या ऐसा हो सकता है कि सीएम केजरीवाल को इस बारे में सूचना ही न दी गई हो या फिर सूचना मिलने के बाद भी केजरीवाल का अमला अनजान बना रहा।
केजरीवाल को क्यों नहीं बताया?
अब ‘आप’ विधायक अमानतुल्ला ख़ान कह रहे हैं कि उन्होंने 23 मार्च को ही डीसीपी (ईस्ट) और निज़ामुद्दीन के एसीपी को बता दिया था कि मरकज़ में कोरोना के मरीज हैं तो फिर उन्होंने यह बात अपने सीएम को क्यों नहीं बताई? और अगर उन्होंने बताई थी तो फिर वहां के एसडीएम, डीएम और दिल्ली सरकार के बाकी अफ़सर क्या कर रहे थे। अगर वे सभी लापरवाही के दोषी हैं तो फिर दिल्ली सरकार ने उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की।
कुमार विश्वास का गंभीर आरोप
‘आप’ के पूर्व नेता कुमार विश्वास यह आरोप लगा रहे हैं कि केजरीवाल ने मुसलिमों के मामले में इसलिये दखल नहीं दिया कि कहीं वे नाराज न हो जाएं और उन्हें वोट की क़ीमत भी चुकानी थी। कुमार विश्वास को भले ही आप पूर्वाग्रह से पीड़ित कह लें लेकिन इस दोष से दिल्ली की ‘आप’ सरकार मुक्त नहीं हो सकती कि इस सारी लापरवाही में वह भी केंद्र के साथ बराबर की भागीदार है।
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