हर देश-काल में ऐसी विभूतियां हुई हैं, जिन्हें बहुत छोटा जीवन मिला, लेकिन छोटे से जीवनकाल में ही उन्होंने अपने समय के समाज में हलचल पैदा करने का काम किया। सुदूर अतीत में ईसा मसीह और आदि शंकर, ज्ञानेश्वर, चैतन्य आदि हुए तो आधुनिक इतिहास में शहीद भगत सिह, मार्टिन लूथर किंग जूनियर और स्वामी विवेकानंद जैसे नाम सामने आते हैं।
विवेकानंद- यह सोचना पागलपन है कि हिंदुओं को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाया गया!
- विचार
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- 12 Jan, 2022

सांप्रदायिकता, संकीर्णता और धार्मिक उन्माद पर विवेकानंद ने जो कुछ कहा है, वह आज के दौर में पढ़ा जाना जरूरी है।
बाद की पीढ़ियों में ऐसे लोगों की 'लार्जर दैन लाइफ’ छवियां लोकमन में बनने लगती हैं। उनकी वैचारिक विरासतों को समझने, सहेजने और आगे बढ़ाने का सिलसिला भी चल पड़ता है। उनके सूत्र वाक्यों को उद्धरणों के तौर पर बार-बार पेश किया जाता है।
समाज को इसका थोड़ा फायदा भी मिल जाता है, लेकिन ऐसे मनीषियों का दोहन जब सियासी प्रतीकों के रूप में होने लगता है, तो उनके जीवन का तटस्थ मूल्यांकन नहीं हो पाता। इससे नए अध्येताओं के लिए भी भटकाव की पूरी संभावना बन जाती है। स्वामी विवेकानंद के साथ भी ऐसा ही होता दिख रहा है।