29 जनवरी को सिंघु बॉर्डर पर हुए पथराव की तमाम सचाइयाँ सामने आ गई हैं। यह साफ़ हो गया है कि किसानों के आंदोलन से नाराज़ स्थानीय लोग इस प्रायोजित हिंसा में शामिल नहीं थे। जिन्होंने इस वारदात में हिस्सा लिया था वे बाहर से आए थे और आरोप है कि ये बीजेपी और उससे जुड़े कार्यकर्ता थे। वीडियो और तस्वीरों की शक्ल में इसके कई प्रमाण सामने आ चुके हैं।
लगातार हो रही हिंसा का यह पैटर्न क्या फासीवाद की आहट है?
- विचार
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- 31 Jan, 2021

क्या गुंडों की ये टोलियाँ फासीवादी अभियान के शुरुआती दस्ते हैं? अभी इस तरह की भविष्यवाणी को अनुचित और जल्दबाज़ी कहा जाएगा। बहुत से लोगों को यक़ीन है कि भारत के लोगों का सामूहिक विवेक अभी उस हद तक नहीं गिरा है जहाँ हम मान लें कि लोकतांत्रिक व्यवस्था ढह जाएगी और फासीवाद सत्ता के शिखर पर चढ़कर अट्टहास करने लगेगा।
ऑल्ट न्यूज़ ने अपनी पड़ताल से कई चेहरों को बेनक़ाब कर दिया है। किसानों पर हमले में शामिल अमन डबास नामक व्यक्ति की उसने विभिन्न स्रोतों से तस्दीक करके बताया है कि वह बीजेपी का सक्रिय कार्यकर्ता है और इस तरह के उपद्रवों में पहले भी हिस्सा लेता रहा है। इसी तरह बीजेपी के एक और कार्यकर्ता कृष्ण डबास की भी उसने पक्की खोज-ख़बर ली है।